भारत के संविधान को आकार देने और इसकी व्याख्या करने में न्यायपालिका की भूमिका एवं देश में लोकतांत्रिक संस्थानों की कार्यप्रणाली पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संविधान को आकार देने और इसकी व्याख्या करने में भारत की न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर न्यायपालिका के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- भारत का संविधान, सर्वोच्च कानून है जो भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में कार्य करता है। राज्य के तीन अंगों में से एक के रूप में न्यायपालिका, संविधान को आकार देने और उसकी व्याख्या करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायपालिका द्वारा संविधान की व्याख्या का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि इससे लोकतांत्रिक संस्थानों की कार्यप्रणाली के साथ विवादों को हल करने का आधार मिलता है।
मुख्य भाग:
- भारत के संविधान को आकार देने और उसकी व्याख्या करने में न्यायपालिका की भूमिका:
- भारत में न्यायपालिका के पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति है और यह संविधान की अंतिम व्याख्या करने वाली संस्था भी है। न्यायिक समीक्षा की शक्ति न्यायपालिका को संविधान का उल्लंघन करने वाले कानून को असंवैधानिक घोषित करने में सक्षम बनाती है। यह शक्ति सुनिश्चित करती है कि संविधान, न्यायपालिका द्वारा संरक्षित है।
- न्यायपालिका द्वारा संविधान की व्याख्या यह सुनिश्चित करने के लिये की जाती है कि संविधान के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
- न्यायिक समीक्षा: भारत के संविधान को आकार देने और उसकी व्याख्या करने में न्यायपालिका की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक न्यायिक समीक्षा की शक्ति है।
- न्यायपालिका के पास किसी भी कानून या कार्यकारी कार्रवाई की समीक्षा करने की शक्ति होती है। इस शक्ति का प्रयोग न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है, जो न्यायपालिका की किसी कानून या कार्यकारी कार्रवाई को असंवैधानिक घोषित करने की शक्ति है।
- न्यायिक समीक्षा की यह शक्ति भारत के संविधान को आकार देने और संविधान के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने को सुनिश्चित करने में सहायक है।
- न्यायिक सक्रियता: इसके माध्यम से भारतीय न्यायपालिका संविधान को आकार देती है।
- न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करने में सक्रिय रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संविधान के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है और नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा की जा सके।
- ऐतिहासिक निर्णय:
- न्यायपालिका अपनी व्याख्याओं और निर्णयों के माध्यम से, भारत के संविधान को आकार देने में सहायक रही है।
- उदाहरण के लिये, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने आधारभूत संरचना नामक सिद्धांत दिया था जिसमें कहा गया था कि संविधान की कुछ आधारभूत विशेषताओं को संवैधानिक संशोधन द्वारा भी संशोधित नहीं किया जा सकता है। इस फैसले ने संविधान को आकार देने और इसकी बुनियादी विशेषताओं की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आगे चलकर मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले, 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है) एक अंतर्निहित अधिकार है। इस फैसले का भारत में लोकतांत्रिक संस्थानों के कामकाज पर गहरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसने नागरिकों को सरकार के कार्यों को चुनौती देने में सक्षम बनाया है।
- लोकतांत्रिक संस्थानों की कार्यप्रणाली पर प्रभाव:
- न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करके और यह सुनिश्चित करके भारत के लोकतंत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि राज्य के अंग, जैसे कि कार्यपालिका और विधायिका, संविधान के मापदंडों के तहत कार्य करते हैं। यह इन संस्थानों के लिये अपनी व्याख्याओं और निर्णयों के माध्यम से मानक निर्धारित करता है जैसे:
- सुशासन को बढ़ावा देना: न्यायपालिका के पास कानून के शासन को लागू करने और यह सुनिश्चित करने की शक्ति है कि सरकार संविधान के अनुसार कार्य करती है।
- यह सुशासन को बढ़ावा देने और सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में मदद करती है।
- उदाहरण के लिये, एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना और उचित कारण के बिना किसी राज्य सरकार को वर्खास्त नहीं कर सकते हैं।
- निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना: न्यायपालिका यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हों। इसके पास चुनाव संबंधी विवादों को सुनने और चुनाव परिणामों को मान्य या अमान्य घोषित करने की शक्ति होती है।
- उदाहरण के लिये, लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अपराधों के दोषी राजनेता चुनाव नहीं लड़ सकते हैं और उन्हें अपने पदों से इस्तीफा देना चाहिये।
- संस्थानों की स्वतंत्रता की रक्षा करना: न्यायपालिका के पास भारत निर्वाचन आयोग, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक और स्वयं न्यायपालिका जैसे विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की शक्ति है।
- उदाहरण के लिये एल चंद्र कुमार बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता है और सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
निष्कर्ष:
न्यायपालिका, भारत के संविधान को आकार देने और उसकी व्याख्या करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायिक समीक्षा और सक्रियता के माध्यम से न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, संविधान की बुनियादी विशेषताओं की रक्षा की जाए और नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जाए।