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प्रश्न :
प्रश्न. औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कृषि पर ब्रिटिश नीतियों के प्रभाव की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
30 Jan, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय कृषि पर ब्रिटिश नीतियों के बारे में संक्षेप में चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- इनके नकारात्मक और सकारात्मक प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का देश के कृषि क्षेत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई नीतियों का कृषि उत्पादन, व्यापार और वितरण पर स्थायी प्रभाव पड़ा था। इसके कुछ प्रमुख प्रभावों की चर्चा नीचे की गई है।
मुख्य भाग:
- भारतीय कृषि पर ब्रिटिश नीतियों का प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- कृषि का व्यावसायीकरण: ब्रिटिश नीतियों ने नकदी फसलों को बढ़ावा देकर तथा उनकी बिक्री के लिये बाजार उपलब्ध कराकर भारत में कृषि के व्यावसायीकरण को प्रेरित किया था।
- इससे उत्पादन में वृद्धि हुई और किसानों की आय में वृद्धि हुई। उदाहरण के लिये ब्रिटिशों द्वारा बंगाल में नील की खेती की शुरूआत की गई थी जो एक प्रमुख नकदी फसल बन गई।
- आधुनिक उपकरणों और तकनीकों का उपयोग: ब्रिटिश नीतियों से कृषि में आधुनिक उपकरणों और तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहन मिला था। इससे कृषि दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि हुई।
- उदाहरण के लिये ब्रिटिशों ने ड्रिलिंग कुओं और नहर सिंचाई जैसी नई सिंचाई तकनीकों की शुरुआत की थी जिससे कृषि उत्पादन में सुधार हुआ था।
- शोषणकारी जमींदारों से मुक्ति: कई मामलों में ब्रिटिश नीतियों ने गरीब किसानों को शोषणकारी जमींदारों से मुक्त कराया था। ब्रिटिशों द्वारा शुरू की गई राजस्व नीतियों से जमींदारों की शक्ति में कमीं आई और किसानों को अधिक सुरक्षा मिली थी।
- कृषि का व्यावसायीकरण: ब्रिटिश नीतियों ने नकदी फसलों को बढ़ावा देकर तथा उनकी बिक्री के लिये बाजार उपलब्ध कराकर भारत में कृषि के व्यावसायीकरण को प्रेरित किया था।
- नकारात्मक प्रभाव:
- भूमि पर बढ़ता दबाव: ब्रिटिश नीतियों के कारण भूमि पर दबाव बढ़ा क्योंकि कई कारीगरों ने कम लाभ और दमनकारी नीतियों के कारण अपने व्यवसायों को छोड़ दिया और कृषि में लग गए।
- इससे शिल्प क्षेत्र में गिरावट आई तथा कृषि पर दबाव बढ़ा। जिससे उत्पादकता और लाभप्रदता में कमी आई थी।
- कृषि क्षेत्र पर अत्यधिक बोझ: कृषि क्षेत्र पर अत्यधिक बोझ बढ़ने से ब्रिटिश शासन के दौरान गरीबी में वृद्धि हुई थी।
- ब्रिटिशों ने ऐसी नीतियाँ लागू की थीं जिससे किसानों पर राजस्व दर को बढ़ा दिया गया था। इससे बीज और उर्वरक जैसे इनपुट पर खर्च कम किये जाने के कारण पैदावार और किसानों की आय में कमी आई थी।
- किसानों की स्थिति में गिरावट आना: ब्रिटिश नीतियों के कारण किसानों की स्थिति में गिरावट आई थी। इन नीतियों द्वारा खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों का समर्थन किया गया जिससे खाद्यान्न की कमी पैदा हुई और खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई थी।
- इसके अतिरिक्त रैयतवाड़ी जैसी राजस्व प्रणाली द्वारा भूमि के स्वामित्व का अधिकार किसानों को सौंप दिया गया था और राज्य द्वारा सीधे किसानों से राजस्व एकत्र किया गया था।
- इस प्रणाली में राजस्व की दर गैर-सिंचित भूमि के लिये 50% तथा सिंचित भूमि के लिये 60% थी। जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक करों के कारण किसान और गरीब हो गए थे।
- आत्मनिर्भर ग्रामीण क्षेत्र का पतन होना: ब्रिटिश नीतियों के कारण आत्मनिर्भर ग्रामीण क्षेत्र का पतन हुआ था।
- ब्रिटिश नीतियों का उद्देश्य भारतीय कृषि को विश्व बाजार से एकीकृत करना था, जिससे उत्पादन के तरीकों में बदलाव होने के साथ पारंपरिक प्रणालियों का पतन हुआ था।
- इससे पारंपरिक, आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गिरावट आई और मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था का उदय हुआ था।
- भूमि पर बढ़ता दबाव: ब्रिटिश नीतियों के कारण भूमि पर दबाव बढ़ा क्योंकि कई कारीगरों ने कम लाभ और दमनकारी नीतियों के कारण अपने व्यवसायों को छोड़ दिया और कृषि में लग गए।
- सकारात्मक प्रभाव:
निष्कर्ष:
- भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों का सकारात्मक और नकारात्मक प्रकृति के साथ देश के कृषि क्षेत्र पर स्थायी प्रभाव पड़ा था। ब्रिटिश नीतियों से कृषि के व्यावसायीकरण एवं इसमें आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा मिलने के साथ किसानों को शोषक जमींदारों से कुछ राहत मिली थी।
- दूसरी ओर इन नीतियों से भूमि और कृषि पर बोझ बढ़ने के साथ किसानों की स्थिति दयनीय हुई तथा आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पतन हुआ था। ये प्रभाव आज भी भारत के कृषि क्षेत्र को आकार देने के रूप में परिलक्षित होते हैं।
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