हाल ही में डिजी बैंक और बायोकॉइन का ऋण धोखाधड़ी का मामला चर्चा में था जिसमें डिजी बैंक द्वारा बायोकॉइन समूह को प्रदान किये गए ऋणों में अनियमितता की गई थी। इसकी सीईओ और प्रबंध निदेशक तीशा वर्मा थीं। वर्मा और उनके परिवार को कथित तौर पर बायोकॉइन समूह को ऋण देने के बदले रिश्वत मिली थी जिससे बैंक की गैर-निष्पादित संपत्ति (NPAs) में वृद्धि होने से 1,730 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। इसके अलावा तीशा वर्मा के पति, बायोकॉइन कंपनी में प्रमुख पद पर थे और इस ऋण से उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से लाभ हुआ था। इस संदर्भ में प्रवर्तन निदेशक को आगे की जाँच करने के लिये कहा जाता है और आप वरिष्ठ अधिकारी के रूप में इसका नेतृत्व कर रहे हैं। इस मामले में तीशा और उनके पति को निर्दोष ठहराने हेतु राजनीतिक दबाव भी डाला जा रहा है।
एक वरिष्ठ प्रवर्तन अधिकारी के रूप में आप इस स्थिति में क्या करेंगे? साथ ही इस प्रकार के नैतिक उल्लंघनों को रोकने के लिये आवश्यक सुझाव दीजिये।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- इस मामले का परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- इसमें शामिल हितधारकों पर चर्चा कीजिये।
- इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- इस संदर्भ में प्रवर्तन अधिकारी के समक्ष नैतिक दुविधा पर चर्चा कीजिये।
- प्रवर्तन अधिकारी के समक्ष उपलब्ध विभिन्न विकल्पों पर चर्चा करते हुए इन मुद्दों को रोकने के उपाय सुझाइये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- उपरोक्त मामला डिजी बैंक द्वारा बायोकॉइन समूह को प्रदान किये गए ऋण में धोखाधड़ी और अनियमितताओं से संबंधित है जिसमें सीईओ और प्रबंध निदेशक (तीशा वर्मा) तथा उनके परिवार को ऋण देने के बदले में कथित रूप से लाभ प्राप्त हुआ है। ये ऋण गैर-निष्पादित संपत्ति में तब्दील होने के साथ बैंक को इससे भारी नुकसान हुआ।
- वर्मा के पति (जो बायोकॉइन में प्रभावी पद पर थे) ने कथित तौर पर इस धन की हेराफेरी से लाभ प्राप्त किया। इस संदर्भ में प्रवर्तन निदेशक मामले की जाँच कर रहे हैं लेकिन इसमें वर्मा तथा उनके पति को बचाने के लिये राजनीतिक दबाव भी बनाया जा रहा है।
मुख्य भाग:
- इसमें शामिल हितधारक:
- डिजी बैंक
- बायोकॉइन समूह
- तीशा वर्मा
- तीशा वर्मा के पति
- राजनेता
- प्रवर्तन निदेशक
- मामले की जाँच कर रहे वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर स्वयं मैं।
- समाज
- इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दे:
- हितों का टकराव: डिजी बैंक की सीईओ और प्रबंध निदेशक के रूप में तीशा वर्मा का बायोकॉइन समूह को ऋण देने में हितों का टकराव था, क्योंकि उनके पति इसमें महत्त्वपूर्ण पद पर थे। इससे ऋण स्वीकृति प्रक्रिया की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा पर सवाल उठता है।
- व्यक्तिगत लाभ प्राप्त होना: बायोकॉइन समूह को ऋण देने के बदले में तीशा वर्मा और उनके परिवार द्वारा प्राप्त किये जा रहे व्यक्तिगत लाभ के आरोप, निजी हित में सार्वजनिक धन के उपयोग के बारे में नैतिक चिंताओं को उठाते हैं।
- धोखाधड़ी: बायोकॉइन समूह को प्रदान किया गया ऋण, गैर-निष्पादित संपत्ति में शामिल होना और इससे बैंक को 1,730 करोड़ रुपये का नुकसान होना यह बताता है कि धोखाधड़ी ऋण स्वीकृति प्रक्रिया में शामिल हो सकती है।
- राजनीतिक दबाव: इस मामले को हल करने तथा तीशा और उनके पति को बचाने का राजनीति दबाव, वित्तीय अपराधों की जाँच एवं अभियोजन में राजनीतिक भूमिका के बारे में नैतिक चिंता पैदा करता है।
- पारदर्शिता का अभाव: ऋण स्वीकृति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और धोखाधड़ी की कथित संलिप्तता से वित्तीय संस्थान की जवाबदेही एवं पारदर्शिता के बारे में नैतिक चिंताएँ पैदा होती हैं।
- उत्तरदायित्व का अभाव: आगे की जाँच करने के लिये प्रवर्तन निदेशक की जवाबदेही की कमी से अधिकारियों की वित्तीय अपराधों की प्रभावी ढंग से जाँच करने और उन पर मुकदमा चलाने की क्षमता के बारे में नैतिक चिंताएँ पैदा होती हैं।
- इस मामले में शामिल नैतिक द्वंद:
- कानून का शासन बनाम राजनीतिक दबाव: राजनेताओं के दबाव से प्रवर्तन अधिकारी द्वारा मामले को दबाने के क्रम में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। यह दबाव अधिकारी को मुश्किल स्थिति में डाल सकता है क्योंकि उसे सरकार के राजनीतिक एजेंडे में शामिल हुए बिना निष्पक्ष जाँच करनी चाहिये।
- अभियुक्त के प्रति सत्यनिष्ठा बनाम पक्षपात: प्रवर्तन अधिकारी का तीशा और उसके पति के प्रति पूर्वाग्रह हो सकता है। इससे जाँच में निष्पक्षता की कमी होने से आरोपी के खिलाफ सबूत में हेरफेर हो सकती है।
- सार्वजनिक हित बनाम व्यक्तिगत सुरक्षा: प्रवर्तन अधिकारी को धोखाधड़ी की जाँच करने तथा दोषी को सजा दिलाने या व्यक्तिगत सुरक्षा और भलाई हेतु मामले को दबाने के रूप में दुविधा का सामना करना पड़ सकता है।
- इसमें धमकी, डराना-धमकाना या यहाँ तक कि शारीरिक नुकसान भी शामिल हो सकता है जिससे निष्पक्ष जाँच करने की अधिकारी की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
- बैंक का हित बनाम स्वहित: धोखाधड़ी की जाँच करने और दोषी पक्षों को सजा दिलाने के सार्वजनिक हित के साथ अपनी निजी भलाई के लिये इसमें हेरफेर करने के रूप में प्रवर्तन अधिकारी को दुविधा का सामना करना पड़ सकता है।
- प्रवर्तन अधिकारी के समक्ष उपलब्ध विभिन्न विकल्प:
- प्रथम विकल्प:
- इस मामले की जाँच करना और इसमें शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करना: इस विकल्प में मामले की पूरी तरह से जाँच करना, सबूत इकट्ठा करना और धोखाधड़ी एवं अनियमितताओं के लिये जिम्मेदार पाए जाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना शामिल है।
- गुण: इससे जवाबदेही सुनिश्चित होने के साथ धन की वसूली में सहायता मिलेगी।
- दोष: इस विकल्प का दोष यह है कि प्रवर्तन अधिकारी को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है और उसका करियर समाप्त हो जाएगा।
- दूसरा विकल्प:
- आगे की जाँच किये बिना इस मामले को दबा देना: इस विकल्प में इस मामले में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कोई कार्रवाई किये बिना इसे बंद करना शामिल है।
- गुण: इससे राजनीतिक दबाव से बचने के साथ प्रवर्तन अधिकारी का व्यक्तिगत जीवन प्रभावित नहीं होगा, बल्कि उसे पदोन्नत भी किया जा सकता है।
- दोष: इसमें धोखाधड़ी और अनियमितताओं के लिये किसी को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकेगा और धन की वसूली न होने के साथ शासन प्रणाली में जनता के विश्वास में कमीं आएगी।
- तीसरा विकल्प:
- इस मामले को एक स्वतंत्र एजेंसी को संदर्भित करना: इस विकल्प में मामले की जाँच को केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) या गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (SFIO) जैसी स्वतंत्र एजेंसियों को मामले को संदर्भित करना शामिल है।
- गुण: इससे सुनिश्चित होगा कि जाँच निष्पक्ष और स्वतंत्र एजेंसी द्वारा होगी जो राजनीतिक दबाव से मुक्त हो।
- दोष: इसमें जाँच पूरी करने में लंबा समय लग सकता है और संबंधित एजेंसी के पास मामले की पूरी जाँच करने के लिये आवश्यक संसाधन या विशेषज्ञता नहीं भी हो सकती है।
- इस स्थिति में उपलब्ध सबसे बेहतर विकल्प:
- उपरोक्त विकल्पों में से उपलब्ध सबसे अच्छा विकल्प इस मामले की जाँच करना तथा इसमें शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करना है।
- हालांकि इससे प्रवर्तन अधिकारी का करियर नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है। यह जवाबदेही सुनिश्चित करने एवं खोई हुई धनराशि की वसूली के साथ बैंक के खाताधारकों को न्याय प्रदान करने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक कदम है।
- यह जनता के दृष्टिकोण से सबसे उचित और न्यायपूर्ण विकल्प भी है क्योंकि इसमें धोखाधड़ी एवं अनियमितताओं के लिये जिम्मेदार लोगों को उनके कार्यों के प्रति जबावदेह ठहराया जाएगा।
- इस प्रकार के नैतिक उल्लंघनों को रोकने और इनका समाधान करने के लिये उचित कार्रवाई:
- हितों के टकराव और आंतरिक स्तर पर उधार देने के संबंध में आंतरिक नीतियों का सख्ती से पालन करना।
- आंतरिक नीतियों की नियमित समीक्षा और उन्हें अद्यतन करना।
- मजबूत जोखिम प्रबंधन प्रणाली का कार्यान्वयन करना।
- शीर्ष प्रबंधन गतिविधियों की कड़ी निगरानी करना।
- संगठन के अंदर पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की संस्कृति को प्रोत्साहित करना।
- बैंकिंग और वित्त से संबंधित कानूनों और विनियमों का सख्त प्रवर्तन किया जाना।
निष्कर्ष:
डिजी बैंक और बायोकॉइन का ऋण धोखाधड़ी मामला, बैंकिंग क्षेत्र में उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। यह आंतरिक नीतियों और विनियमों के सख्त पालन की आवश्यकता के साथ-साथ संगठनों के अंदर पारदर्शिता एवं सत्यनिष्ठा को बनाए रखने के महत्त्व पर बल देता है। इस मामले से लिये गए सबक से भविष्य में इसी तरह के नैतिक उल्लंघनों को रोका जा सकता है।