भारत के लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा इनकी संवृद्धि हेतु सुझाव दीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर संक्षेप में चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- इनके विकास हेतु आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- लघु और मध्यम उद्यम (SMEs) भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो देश के औद्योगिक उत्पादन में 45% से अधिक एवं निर्यात में 40% योगदान करते हैं। हालाँकि इन व्यवसायों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है जिससे इनकी वृद्धि और विकास बाधित होता है।
मुख्य भाग:
- लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:
- वित्त तक सीमित पहुँच: कई एसएमई बैंकों और अन्य पारंपरिक ऋण संस्थानों से धन प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं जिससे उनके लिये निवेश करना मुश्किल हो जाता है।
- बाज़ारों तक पहुँच का अभाव: एसएमई को अक्सर ग्राहकों तक पहुँचने और बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किल होती है।
- खराब बुनियादी ढाँचा: अपर्याप्त परिवहन, बिजली आपूर्ति और अन्य बुनियादी ढाँचे एसएमई के संचालन एवं प्रतिस्पर्धा को मुश्किल बना सकते हैं।
- सरकारी समर्थन का अभाव: कई एसएमई को बढ़ने और सफल होने के लिये पर्याप्त सरकारी समर्थन या प्रोत्साहन प्राप्त नहीं हो पाता है।
- नियमों के अनुपालन में कठिनाई: एसएमई को जटिल और हमेशा बदलते नियमों का पालन करना मुश्किल हो सकता है जो इनके लिये महंगा और समय लेने वाला साबित हो सकता है।
- कुशल कार्यबल को काम पर रखने और बनाए रखने में कठिनाई: एसएमई को अक्सर कुशल श्रमिकों को आकर्षित करने और बनाए रखने में मुश्किल होती है जो उनकी वृद्धि तथा नवाचार की क्षमता को सीमित कर सकता है।
- संवृद्धि और विस्तार में कठिनाई: सीमित क्षमता के कारण कई एसएमई को अपने कार्यों को विस्तारित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: कई एसएमई के पास नवीनतम तकनीक में निवेश करने के लिये वित्तीय संसाधन या विशेषज्ञता तक पहुँच न होने के कारण उन्हें बाज़ार में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- भारत के लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) के विकास हेतु विभिन्न तरीके हैं जैसे:
- आसान वित्त और सुलभ ऋण योजनाओं तक पहुँच बनाना: कई बैंकों ने एसएमई को बिना किसी परेशानी के पूंजी प्राप्त करने में मदद करने के लिये आसान वित्त और ऋण योजनाएँ शुरू की हैं।
- अनुकूलित उत्पाद और सेवाएँ: प्रौद्योगिकी कंपनियों ने एसएमई की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करने के लिये उनके अनुरूप उत्पाद और सेवाओं को विकसित किया है।
- दीर्घकालिक योजना:
- एसएमई को दीर्घकालिक सफलता के लिये चार कदम उठाने चाहिये:
- मजबूत ब्रांड बनाना, प्रौद्योगिकी में निवेश करना, नवाचार की संस्कृति बनाना और मजबूत टीम विकसित करना।
- विभिन्न प्रकार के एसएमई की विशिष्ट आवश्यकताओं और चुनौतियों की पहचान करना और उनका समाधान करना: एसएमई आमतौर पर छह श्रेणियों में से एक में आते हैं और प्रत्येक श्रेणी की अपनी विशिष्ट ज़रूरतें और चुनौतियाँ होती हैं।
- इनकी पहचान करने और समाधान करने से संबंधित व्यवसायों में वृद्धि को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- प्रशिक्षण और शिक्षा के अवसर प्रदान करना: एसएमई को अपने प्रबंधन कौशल में सुधार करने और नई तकनीकों तक पहुँचने में मदद करने के लिये प्रशिक्षण तथा शिक्षा के अवसर प्रदान करने से उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से विकसित होने एवं प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिल सकती है।
- एक अनुकूल व्यावसायिक माहौल सृजित करना: सरकार की नीतियाँ और नियम एसएमई के विकास के लिये अनुकूल होने चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी एसएमई को वित्त, बाज़ार और अन्य संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने में मदद कर सकती है।
- लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) का समर्थन करने के लिये भारत सरकार द्वारा कई पहलें शुरू की गई हैं जैसे:
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): यह योजना छोटे व्यवसायों के लिये 10 लाख रुपये तक का ऋण (कोलैटरल फ्री) प्रदान करती है।
- स्टैंड अप इंडिया: इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों को धन और सहायता प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC) प्रदर्शन और क्रेडिट रेटिंग योजना: यह योजना एसएमई को उनके प्रदर्शन और साख के आधार पर रेटिंग प्रदान करती है जो उन्हें कम ब्याज दरों पर बैंकों से ऋण प्राप्त करने में मदद कर सकती है।
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC) विपणन सहायता योजना: यह योजना SMEs को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में भाग लेने में मदद करने के लिये विपणन सहायता प्रदान करती है।
- सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE): यह योजना क्रेडिट गारंटी के माध्यम से सूक्ष्म और लघु उद्यमों को कोलैटरल फ्री ऋण प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह योजना खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC), जिला उद्योग केंद्र (DIC) तथा राज्य खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड (KVIB) के माध्यम से छोटे और सूक्ष्म उद्यमों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSECDP): यह योजना सूक्ष्म और लघु उद्यमों के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- स्किल इंडिया योजना: इस पहल का उद्देश्य छोटे और सूक्ष्म उद्यमों सहित अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों को प्रशिक्षण एवं कौशल विकास के अवसर प्रदान करना है।
निष्कर्ष:
भारत के लघु और मध्यम उद्यम (SMEs) कई चुनौतियों का सामना करते हैं। एसएमई के विकास हेतु भारत सरकार ने विभिन्न पहलें शुरू की हैं लेकिन सरकार की नीतियों एवं विनियमों को एसएमई के विकास के लिये और भी अधिक अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही एसएमई को वित्त, बाज़ार और अन्य संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ाने की आवश्यकता है।