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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    कृषि में कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग से मधुमक्खियों एवं तितलियों जैसे परागणकों की संख्या में कमी आई है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    25 Jan, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मधुमक्खियों और तितलियों पर कीटनाशकों और उर्वरकों के प्रभावों की संक्षिप्त चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • इन मुद्दों को हल करने के लिये कुछ उपाय सुझाइए और इस दिशा में की गई सरकारी पहल की चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    कृषि, मानव सभ्यता का एक अनिवार्य हिस्सा है जिससे मानव अस्तित्व के लिये भोजन और अन्य संसाधन उपलब्ध होते हैं। हालांकि कृषि में कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं (विशेष रूप से मधुमक्खियों और तितलियों जैसे परागणकों के लिये)। यह परागणक पौधों के प्रजनन के लिये आवश्यक हैं और इनकी गिरावट से खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता को खतरा है।

    मुख्य भाग:

    • परागणकों पर कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रभाव:
      • फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने एवं फसल की पैदावार बढ़ाने के लिये कृषि में कीटनाशकों तथा उर्वरकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि इन रसायनों का परागणकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है जैसे:
      • स्वास्थ्य के लिये हानिकारक: कीटनाशक, मधुमक्खियों और तितलियों को बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाकर नुकसान पहुँचा सकते हैं।
      • फूलों के स्वरूप में परिवर्तन: उर्वरकों से फूलों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है जिससे वे परागणकर्ताओं के लिये कम आकर्षक हो जाते हैं।
      • पराग और नेक्टर स्रोतों का संदूषण: विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार कृषि परिदृश्य में मधुमक्खी के छत्ते से लिये गए 90% से अधिक पराग नमूने एक से अधिक कीटनाशकों से दूषित थे।
        • इससे मधुमक्खियों, तितलियों और अन्य कीटों सहित परागणकों के स्वास्थ्य एवं इनकी संख्या में गिरावट आ सकती है।
      • समूह विनाश से संबंधित विकार (CCD): यह किसी एक छत्ते से मधुमक्खियों के अचानक विनाश की घटना है। यह एक जटिल समस्या है जो संभवतः कीटनाशकों, बीमारी, निवास स्थान के नुकसान और अन्य कारकों के संयोजन से उत्पन्न होती है।
    • परागणकों पर कीटनाशकों और उर्वरकों के प्रभाव को कम करना:
      • परागणकों पर कीटनाशकों और उर्वरकों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये कई रणनीतियाँ हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है जैसे:
      • वैकल्पिक विधियों का प्रयोग करना: इसका एक दृष्टिकोण वैकल्पिक कीट प्रबंधन विधियों का उपयोग करना है जैसे कि जैविक नियंत्रण या एकीकृत कीट प्रबंधन।
        • ये विधियाँ कीटों को नियंत्रित करने के लिये रसायनों के बजाय प्राकृतिक जीवों, परजीवियों या रोगजनकों पर निर्भर होती हैं।
        • इसके अतिरिक्त किसान लक्षित कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं, जो विशिष्ट कीटों या पौधों को लक्षित करते हैं तथा गैर-लक्षित जीवों पर कम प्रभाव डालते हैं।
      • परागणकों के आवास को पुनर्स्थापित करना: परागणकों के आवासों की रक्षा और इन्हें पुनर्स्थापित करने का एक और तरीका यह है कि फूलों और अन्य पौधों को लगाने के साथ इन क्षेत्रों में कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग को कम या समाप्त किया जाए।
        • इसके अतिरिक्त किसान अपनी भूमि पर परागणकर्ताओं के लिये विभिन्न प्रकार के संसाधन प्रदान करने हेतु कुछ बदलाव कर सकते हैं।
    • इससे संबंधित सरकारी पहल:
      • भारत सरकार ने परागणकर्ताओं के महत्त्व को पहचानते हुए उन्हें कीटनाशकों एवं उर्वरकों के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिये कई पहलें शुरू की हैं। जैसे:
        • राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (NBHM): इस मिशन का उद्देश्य भारत में मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन को बढ़ावा देना है। इसके तहत मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खी पालन के उपकरणों की खरीद के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
        • एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM): कृषि में कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करने के लिये सरकार ने IPM कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम कीटों को नियंत्रित करने के लिये प्राकृतिक तरीकों के उपयोग को बढ़ावा देता है।
        • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): इसके तहत परागणकर्ताओं के लिये अनुकूलित सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा दिया जाता है। यह मिशन कृषि में रसायनों के उपयोग को कम करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
        • नेशनल एक्शन प्लान फॉर पोलिनेटर (NAPP): एनएपीपी भारत में परागणकर्ताओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये एक व्यापक योजना है। इस योजना में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने तथा परागणकों एवं उनके आवासों के संरक्षण को बढ़ावा देने के उपाय शामिल हैं।

    निष्कर्ष:

    परागणकों के नुकसान का खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और पर्यावरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। भारत सरकार ने परागणकर्ताओं के महत्त्व को पहचानते हुए उन्हें कीटनाशकों एवं उर्वरकों के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिये कई पहलें शुरू की हैं। हालांकि परागणकों पर कीटनाशकों और उर्वरकों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने एवं सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

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