प्रश्न. भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता पर हाल की बहस के आलोक में, व्यक्तिगत विनियमों से संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों तथा देश की राजनीति एवं शासन पर इनके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में समान नागरिक संहिता से संबंधित प्रावधानों पर संक्षेप में चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- व्यक्तिगत विनियमों से संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों और उनके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा दशकों से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। UCC व्यक्तिगत मामलों जैसे शादी, तलाक, गोद लेने और विरासत संबंधित मुद्दों को नियंत्रित करने वाले कानूनों को सामान बनाने से संबंधित है।
- हाल ही में भारत में UCC की आवश्यकता पर नए सिरे से बहस हुई है इसमें कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह सभी नागरिकों के लिये समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है जबकि अन्य तर्क देते हैं कि यह अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा।
मुख्य भाग:
- भारत में UCC से संबंधित प्रावधान:
- संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
- संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और इसमें "सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार दिया गया है।"
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:
- शाह बानो बेगम बनाम भारत संघ (1985) के ऐतिहासिक मामले में न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों को भेदभावपूर्ण नहीं होना चाहिये और इन्हें लैंगिक समानता एवं गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिये।
- एक अन्य मामले में सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) में न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों का इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के लिये नहीं किया जाना चाहिये। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तिगत कानून लैंगिक समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होने चाहिये।
- विधि आयोग का दृष्टिकोण:
- भारत के विधि आयोग (जो सरकार को कानूनी सुधारों की सिफारिश करने के लिये जिम्मेदार है) ने समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता को संबोधित किया है।
- अपनी 85वीं रिपोर्ट (1978) और 170वीं रिपोर्ट (2008) में आयोग ने UCC के कार्यान्वयन की सिफारिश की, जिसमें कहा गया कि यह सभी नागरिकों के अधिकारों के साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने में सहायक है।
- इस आयोग ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत कानून हमेशा लैंगिक न्याय और समानता के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होते हैं।
- व्यक्तिगत विनियमों से संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान और उनका प्रभाव:
- भारत में व्यक्तिगत कानून ऐसे कानून हैं जो विशिष्ट धार्मिक समुदायों के विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे मामलों से संबंधित होते हैं।
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान समानता और गैर-भेदभाव के अधिकार की गारंटी देता है लेकिन अनुच्छेद 25 के माध्यम से व्यक्तिगत कानूनों की मान्यता की भी अनुमति प्राप्त है जो धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- व्यक्तिगत कानून तब तक संवैधानिक चुनौती के अधीन नहीं होते हैं जब तक कि वे संविधान के अन्य प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करते हैं।
- हालाँकि व्यक्तिगत कानून भारत में विवाद का स्रोत रहे हैं कुछ लोगों का तर्क है कि इनसे महिलाओं और निम्न जातियों के सदस्यों के साथ भेदभाव होता है।
- उदाहरण के लिये पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन तलाक की प्रथा की अनुमति थी और हिंदू पर्सनल लॉ की भी विरासत और संपत्ति के अधिकारों के संबंध में हिंदू महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण होने के लिये आलोचना की गई थी।
- व्यक्तिगत कानून के प्रभाव:
- प्रकृति में भेदभावपूर्ण: ये कानून विवाद का एक स्रोत रहे हैं क्योंकि माना जाता है कि इनसे महिलाओं और निम्न जातियों के सदस्यों के साथ भेदभाव होता है।
- सामाजिक प्रभाव: भारत में व्यक्तिगत कानूनों का व्यक्तियों, (विशेष रूप से महिलाओं और निम्न जातियों के सदस्यों) के जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और यह निरंतर बहस और चर्चा का विषय बना रहता है।
- संतुलन बनाना: सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता के साथ व्यक्तिगत कानूनों को संतुलित करना एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।
- व्यक्तिगत कानूनों की तुलना में UCC के लाभ:
- समानता: भारत में व्यक्तिगत कानून प्रायः महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं (विशेष रूप से विवाह, तलाक और उत्तराधिकार से संबंधित मामलों में)। समान नागरिक संहिता इस तरह के भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
- कानूनों की सरलता और स्पष्टता: समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों के मौजूदा असंतुलित तंत्र को प्रतिस्थापित कर विधिक प्रणाली को सरल बनाएगी जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होगी। इससे सभी नागरिकों के लिये कानून अधिक सुलभ हो जाएँगे और वे इसे आसानी से समझ पाएँगे।
- एकरूपता और निरंतरता: समान नागरिक संहिता कानून के अनुप्रयोग में निरंतरता सुनिश्चित करेगी, क्योंकि यह सभी के लिये समान रूप से लागू होगी। यह कानून के अनुप्रयोग में भेदभाव को कम करेगी।
- आधुनिकीकरण और सुधार: समान नागरिक संहिता से भारतीय विधिक प्रणाली के आधुनिकीकरण के साथ इसमें सुधार होगा क्योंकि यह समकालीन मूल्यों एवं सिद्धांतों के साथ कानूनों को अद्यतन करने और सामंजस्य बनाने का अवसर प्रदान करेगी।
- लैंगिक न्याय: इससे विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करके अधिक न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित हो सकती है।
- आर्थिक विकास: यह कानूनी अनिश्चितता को कम करने के साथ व्यापार और निवेश को आसान बनाने एवं निवेशकों का विश्वास बढ़ाकर, आर्थिक विकास में भी सहायक हो सकती है।
निष्कर्ष:
भारत में व्यक्तिगत कानूनों के संवैधानिक और कानूनी प्रावधान देश के विविध धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को दर्शाते हैं लेकिन इनसे समानता और गैर-भेदभाव के मुद्दों का भी उदय होता है। समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों पर धर्म और जाति से परे सामान रूप से लागू होगी।