आपदा प्रभावों को परिभाषित करने में भेद्यता मूल्यांकन (vulnerability assessment) की क्या भूमिका है और संवेदनशील समुदायों हेतु खतरे की पहचान करने के लिये इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भेद्यता मूल्यांकन और इसकी आवश्यकता को संक्षेप में समझाते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- आपदा को परिभाषित करने एवं कमजोर समुदायों के लिये खतरे की पहचान करने में इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
- भेद्यता मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक आपदाओं जैसे खतरों के प्रभावों के संदर्भ में किसी समुदाय या क्षेत्र की संवेदनशीलता का आकलन किया जाता है। इससे यह पहचानने में मदद मिलती है कि कौन से समुदाय सबसे अधिक जोखिम में हैं और क्यों, ताकि उनकी भेद्यता को कम करने के लिये उचित उपाय किये जा सकें। इसके मूल्यांकन में आमतौर पर भौतिक, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों का विश्लेषण शामिल होता है।
- भारत बाढ़, भूकंप और चक्रवात सहित विभिन्न प्रकार के खतरों से ग्रस्त है, जो लोगों पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं।
- इन आपदाओं के लिये प्रभावी रूप से तैयारी करने और प्रतिक्रिया देने हेतु संभावित प्रभावों एवं सबसे अधिक जोखिम वाले समुदायों को समझना आवश्यक है। इसलिये भेद्यता मूल्यांकन इन जोखिमों की पहचान करने में महत्त्वपूर्ण उपकरण है तथा यह भारत में आपदा प्रभावों को परिभाषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
मुख्य भाग:
- आपदा को परिभाषित करने में भेद्यता आकलन का प्रभाव:
- संसाधनों की प्राथमिकता निर्धारण करना: सबसे अधिक जोखिम वाले समुदायों की पहचान करके भारत में आपदा प्रभावों को परिभाषित करने में भेद्यता मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इससे संसाधनों को प्राथमिकता देने और आपदाओं के लिये तैयारी करने एवं प्रतिक्रिया देने के प्रयासों में सहायता मिलती है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सबसे कमजोर समुदायों को आवश्यक सहायता प्राप्त हो।
- आपदाओं की तैयारी और प्रतिक्रिया में सहायता: भारत में बाढ़, भूकंप और चक्रवातों के संभावित प्रभावों की पहचान करने के लिये भेद्यता मूल्यांकन का उपयोग किया जाता है।
- भारत सरकार ने सबसे कमजोर समुदायों की पहचान करने और आपदाओं के लिये तैयारी करने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु संसाधनों और प्रयासों को प्राथमिकता देने हेतु राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना और राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना II जैसे कई भेद्यता मूल्यांकन कार्यक्रम लागू किये हैं।
- निम्नलिखित कारकों के विश्लेषण के माध्यम से, भेद्यता आकलन का उपयोग कमजोर समुदायों के लिये खतरे की पहचान करने के लिये किया जा सकता है:
- भौतिक कारक: समुदाय की भौतिक विशेषताएँ जैसे कि आवास का प्रकार, बुनियादी ढाँचा और महत्त्वपूर्ण सुविधाओं की उपलब्धता से खतरों के प्रति भेद्यता बढ़ या घट सकती है।
- सामाजिक कारक: किसी समुदाय की सामाजिक विशेषताएँ जैसे जनसंख्या घनत्व, आयु संरचना और सामाजिक-आर्थिक स्थिति, व्यक्तियों और समुदायों की खतरों के लिये तैयार होने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं।
- आर्थिक कारक: आर्थिक कारक जैसे कि गरीबी, बेरोजगारी और एक ही उद्योग पर निर्भरता, किसी समुदाय की आपदा का सामना करने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
- पर्यावरणीय कारक: पर्यावरणीय कारक जैसे कि भूमि उपयोग प्रतिरूप, प्राकृतिक संसाधन और खतरनाक सामग्रियों की उपस्थिति, खतरों के प्रति समुदाय की भेद्यता को बढ़ा सकते हैं।
- उदाहरण के लिये एक तटीय समुदाय के भेद्यता मूल्यांकन से यह पता लग सकता है कि मुख्य खतरा समुद्र के स्तर में वृद्धि और तूफान की वृद्धि से है जबकि शहरी समुदाय में भेद्यता मूल्यांकन से आपातकालीन आश्रयों की कमी के रूप में मुख्य खतरे की पहचान की जा सकती है।
निष्कर्ष:
सबसे अधिक जोखिम वाले समुदायों की पहचान करके भारत में आपदा प्रभावों को परिभाषित करने में भेद्यता मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संसाधनों को प्राथमिकता देने और आपदाओं के लिये तैयारी करने और प्रतिक्रिया देने के प्रयासों में सहायक है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सबसे कमजोर समुदायों को आवश्यक सहायता प्राप्त हो।