भारत में सामाजिक न्याय पर आर्थिक नीतियों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये और समावेशी एवं न्यायसंगत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने हेतु उपाय बताइये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक न्याय पर आर्थिक नीतियों के प्रभाव की व्याख्या करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- न्यायसंगत और समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- आर्थिक नीतियों का भारत के सामाजिक न्याय पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। भारत के संदर्भ में सामाजिक न्याय का तात्पर्य सभी नागरिकों के बीच उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के इतर धन, अवसरों और संसाधनों का उचित वितरण करना शामिल है।
- हालाँकि भारत में असमानता में वृद्धि, कुछ समूहों के हाशिए पर जाने और समावेशी आर्थिक विकास न होने के कारण वर्तमान आर्थिक व्यवस्था की आलोचना की जाती है। फिर भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहाँ विभिन्न सरकारी पहलों ने असमानताओं को कम करने और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की कोशिश की है।
मुख्य भाग:
- ऐसे प्रमुख क्षेत्र जहाँ आर्थिक नीतियों का भारत के सामाजिक न्याय पर प्रभाव पड़ता है:
- शिक्षा और साक्षरता: केंद्रीय बजट 2022-2023 के अनुसार भारत में शिक्षा के लिये आवंटन कुल जीडीपी का लगभग 3% होता है जो अन्य देशों की तुलना में काफी कम है।
- इसलिये बजट में शिक्षा के लिये आवंटन को जीडीपी के 6% तक बढ़ाने के प्रयास करने की आवश्यकता है।
- संपत्ति और आय वितरण: प्रगतिशील कराधान, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और सीमांत क्षेत्रों में लक्षित निवेश के माध्यम से वितरणात्मक न्याय को बढ़ावा देने वाली आर्थिक नीतियाँ यह सुनिश्चित करने में मदद करती हैं कि आर्थिक विकास के लाभों को अधिक समान रूप से साझा किया जाता है।
- उदाहरण के लिये भारत का महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक सौ दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
- पर्यावरणीय न्याय: आर्थिक नीतियों ने सतत विकास को बढ़ावा दिया है जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली है कि हाशिये पर रहने वाले समुदाय पर्यावरणीय गिरावट और संसाधनों की कमी से असमान रूप से प्रभावित नहीं हों।
- उदाहरण के लिये भारत में राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (NCEF) स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिये भारत सरकार द्वारा स्थापित एक कोष है।
- आर्थिक न्याय: धन के समान वितरण को बढ़ावा देने के लिये समावेशी आर्थिक नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा भारत में आर्थिक नीतियों की अक्सर सामाजिक समानता और कल्याण को बढ़ावा न देने के लिये आलोचना की जाती है। लेकिन ऐसी कई सरकारी पहलें हैं जो आर्थिक न्याय को बढ़ावा देती हैं ताकि नागरिकों की निष्पक्ष और न्यायसंगत आर्थिक अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित हो।
- उदाहरण के लिये भारत का भूमि अर्जन,पुनर्वासन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 उन प्रभावित व्यक्तियों हेतु उचित मुआवजे का प्रावधान करता है जिनकी भूमि का अधिग्रहण किया गया है और इसमें प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास के प्रावधान भी शामिल हैं।
- समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के उपाय:
- समावेशी, सतत और सहभागी विकास के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: नीति आयोग की रणनीति भी समावेशी, सतत और भागीदारीपूर्ण विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के महत्त्व पर जोर देती है।
- इसमें डिजिटल बुनियादी ढाँचे और सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और सामाजिक तथा आर्थिक परिणामों में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
- शिक्षा में सुधार: शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में सुधार और यह सुनिश्चित करना कि भारत में हर बच्चा साक्षर हो, के लिये समावेशी विकास एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। शिक्षा किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास की प्राथमिक आवश्यकता है।
- आय, धन और अवसरों में समानता: आय, धन और अवसरों में समानता की प्राप्ति, आर्थिक विकास और सामाजिक उन्नति का एक अभिन्न अंग होना चाहिये।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार: इस क्षेत्र में आवंटन, सकल घरेलू उत्पाद का 1-1.5% है। हालांकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह 6% के अनुशंसित आवंटन से काफी कम है।
निष्कर्ष:
आर्थिक नीतियों का भारत के सामाजिक न्याय पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वर्तमान आर्थिक नीतियों द्वारा समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर असमानता को कम करने की कोशिश की जा रही है।