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प्रश्न :
वर्तमान समय में भारत जैसे विकासशील देशों में नगरीकरण की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। नगरीय बस्तियों के प्रकार पर प्रकाश डालते हुए विकासशील देशों में नगरीय बस्तियों की समस्याओं को स्पष्ट करें।
09 Feb, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- नगरीय बस्तियों के प्रकारों को स्पष्ट करें।
- भारत जैसे विकासशील देशों में नगरीय बस्तियों की समस्यों का उल्लेख करें।
आकार, जनसंख्या, प्रशासनिक सुविधा तथा वित्तीय सुविधाओं के आधार पर नगरीय बस्तियों को कई नामों से पुकारा जाता है। नगरीय बस्तियों के प्रकारों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है।
नगर: नगर का निर्माण ग्रामीण बस्तियों के विकसित होने से होता है। सामान्य रूप में 5000 से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र नगर की श्रेणी में शामिल हैं, किंतु केवल जनसंख्या को ही इसका आधार नहीं माना जा सकता। यहाँ निर्माण, खुदरा एवं थोक व्यापार तथा अन्य व्यावसायिक सेवाएँ ग्रामों की तुलना में अधिक होती है।
शहर: शहर अपेक्षाकृत विकसित नगर है। विकास के क्रम में यह अन्य नगरों को पीछे छोड़ देता है। यहाँ कई प्रमुख वित्तीय संस्थान, प्रशासकीय कार्यालय एवं यातायात के केंद्र होते हैं।
सन्नगर: यह विशाल और विकसित नगरीय क्षेत्र हैं जो कई अलग-अलग शहरों के आपस में मिल जाने से बनते हैं। ग्रेटर लंदन, शिकागो, मेनचेस्टर जैसे शहर इसके उदाहरण हैं।
विश्व नगरी: यह एक यूनानी शब्द मेगापोलीस से बना है। यह विशाल नगर है जो कई सन्नगरों के समूह से मिलकर बनता हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्तर में बोस्टन से दक्षिण में वाशिंगटन तक का क्षेत्र विश्व नगरी के रूप में विकसित है।
महानगर: ऐसे नगर जिनकी संख्या 10 लाख या उससे अधिक हो उसे महानगर कहते हैं। भारत में इंदौर, पणजी, दिल्ली तथा कोलकाता जैसे शहर महानगर की श्रेणी में शामिल हैं। 2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत में 53 महानगर हैं।
मेगा सिटी: ऐसे नगर जिनकी कुल जनसंख्या 1 करोड़ से अधिक हो मेगा सिटी कहलाते हैं। मुंबई, दिल्ली और कोलकाता भारत के प्रमुख मेगा सिटी हैं।
रोजगार के अवसर तथा नागरिक सुविधाओं के कारण भारत में नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। अत्यधिक जनसंख्या बोझ से नगरों में आर्थिक समस्याएँ, सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ तथा पर्यावरण संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। भारत में नगरों से संबंधित समस्याओं को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
आर्थिक समस्याएँ:
नगरों में आने वाली अधिकांश जनसंख्या अकुशल श्रमिकों की है। इससे ये रोजगार के उचित अवसर प्राप्त नहीं कर पाते और आर्थिक समस्या से जूझते रहते हैं ।इसके अलावा कार्य की बदलती प्रकृति के कारण बेरोजगारी बढ़ती है जिससे नगरों में आर्थिक समस्याओं में वृद्धि होती है।सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएँ:
नगरों की एक बड़ी समस्या सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या है। वास्तव में नगरों में विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न समुदायों के लोग आते हैं जिनके रीति-रिवाज, भाषा तथा धार्मिक विश्वास एक दूसरे से अलग होते हैं। यह विविधता आर्थिक एवं राजनीतिक कारणों से सामाजिक विभेद उत्पन्न करती है। इसके अलावा शहरों में शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधाओं के महँगे होने के कारण कमजोर वर्ग के लोग अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली जनसंख्या में पुरुषों की अधिकता के कारण नगरों की जनसंख्या का लैंगिक अनुपात भी असंतुलित हो जाता है। आर्थिक अभाव, परिवार से दूरी तथा उपभोक्ता वादी दृष्टिकोण के कारण शहरों में सामाजिक अपराध की संख्या बढ़ती जा रही है।पर्यावरण संबंधी समस्याएँ:
अत्यधिक जनसंख्या के दबाव के कारण शहरी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग गंदी बस्तियों में रहने के लिये अभिशप्त है। भारत में अधिकांश महानगरों के 25% निवासी अवैध बस्तियों में रहते हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण यहां प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अत्यधिक तीव्र गति से होता है। इससे आज अधिकांश महानगर जल की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, अवैध बस्तियों में स्वच्छता संबंधी सुविधाओं के अभाव के कारण नगरों में प्रदूषण की समस्या बढी है। जनसंख्या को आवास प्रदान कराने के लिये शहरों में विशाल ईमारत कंक्रीट से बनाए जाते हैं जो नगरों को उष्णद्वीप बनाने में सहायक की भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, परिवहन के साधनों का अत्यधिक प्रयोग शहरों में ध्वनि तथा वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। इससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं में वृद्धि होती है।शहरों की इन समस्याओं के समाधान हेतु एक एकीकृत तथा नियोजित नीति बनाने की आवश्यकता है। शहरों के आसपास के क्षेत्रों को विकसित कर यहां जनसंख्या बोझ में कमी लाई जा सकती है। वहीं, जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्या के प्रति लोगों को जागरूक करके शहरों में प्रदूषण की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
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