शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल करने के क्रम में तर्कसंगत दृष्टिकोण की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- तर्कसंगत सोच का संक्षेप में वर्णन करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि कैसे तर्कसंगत सोच शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल कर सकती है?
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
तर्कसंगत सोच समस्या-समाधान के लिये एक व्यवस्थित और तार्किक दृष्टिकोण है जिसमें स्थिति का विश्लेषण करना, शामिल नैतिक सिद्धांतों की पहचान करना और विभिन्न कार्यों के संभावित परिणामों का मूल्यांकन करना शामिल है।
मुख्य भाग:
- शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधा एक सामान्य घटना है, और कई बार उन्हें हल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- उदाहरण:
- भारत में शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं के उदाहरणों में शामिल हैं:
- भेदभाव: शिक्षा तक पहुँच में बाधाएँ और शिक्षक कदाचार या हाशिए में स्थित समुदायों के छात्रों तक शिक्षा न पहुँचना ।
- उदाहरण के लिये, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव शिक्षकों और प्रशासकों के लिये नैतिक दुविधा पैदा कर सकता है।
- इसी तरह, शिक्षक दुराचार जैसे यौन उत्पीड़न या छात्रों के साथ दुर्व्यवहार
- शारीरिक दंड: भारत सरकार ने 2010 में स्कूलों में शारीरिक दंड पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अभी भी कई स्कूलों में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- सामाजिक असमानता: स्कूलों का सामना करने वाले सबसे बड़े नैतिक मुद्दों में से एक सामाजिक असमानता है। शिक्षा संस्थान अक्सर उन समस्याओं का समाधान करने में विफल रहते हैं जो विभिन्न बच्चों के बीच उनकी आर्थिक, जातीय और अन्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण असमानताओं के कारण उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण के लिये, एक गरीब पृष्ठभूमि का बच्चा, जिसके पास पर्याप्त आवास या भोजन की व्यवस्था नहीं है, वह अन्य बच्चों की तुलना म इन स्कूल में कम सक्रिय रहेगा
- इसके अलावा, स्कूल प्रशासक वैकल्पिक रूप से सहायता की पेशकश करने के बजाय अक्सर इन बच्चों को खराब शैक्षणिक प्रदर्शन के लिये दंडित करते हैं।
- इसलिये, अहिंसा के नैतिक सिद्धांतों और मानवीय गरिमा के सम्मान पर विचार करके इन दुविधाओं को हल करने के लिये शिक्षा प्रणाली में तर्कसंगत सोच विकसित करने की आवश्यकता है।
तर्कसंगत सोच का उपयोग करके नैतिक दुविधाओं को हल करने के उपाय इस प्रकार हैं:
- नैतिक संवेदनशीलता: शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल करने का एक तरीका नैतिक संवेदनशीलता (आरआईएमएस) के लिये तर्कसंगत बातचीत का उपयोग है।
- इस रणनीति में स्थिति का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना और एक सुविचारित निर्णय लेने के लिये विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करना शामिल है। इसे शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक और व्यक्तिगत नैतिक दुविधाओं दोनों पर लागू किया जा सकता है।
- दयालुता: शिक्षा में दयालुता एक सकारात्मक और समावेशी कक्षा वातावरण बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह छात्रों को महत्त्वपूर्ण सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद कर सकती है,
- यह एक सकारात्मक और समावेशी कक्षा के माहौल को बढ़ावा देने, भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देने और छात्रों में महत्त्वपूर्ण सामाजिक एवं भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- कृतज्ञता: विभिन्न अध्ययनों ने कृतज्ञता को प्रसन्नता में वृद्धि, मजबूत रिश्तों और बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य से जोड़ा है तथा हाल के वर्षों में, युवाओं के बीच कृतज्ञता पर किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि यह लंबी अवधि में उन्हें अधिक सकारात्मक भावनाओं और स्कूल तथा दुनिया के प्रति बेहतर दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता (ईआई): यह स्वयं की भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं को पहचानने, समझने और प्रबंधित करने की क्षमता है। इसे शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना जाता है, क्योंकि यह तय करने में भूमिका निभाता है कि छात्र अपने साथियों और शिक्षकों के साथ कैसे बातचीत करते हैं तथा यह कक्षा में उनके समग्र प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।
- करुणा का विकास: शिक्षा में करुणा का विकास दूसरों की पीड़ा के प्रति एक सतत्, परोपकारी रवैया विकसित करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसमें न केवल दूसरों की भावनाओं को पहचानना और समझना शामिल है, बल्कि उनकी पीड़ा को कम करने के लिये कार्रवाई करना भी शामिल है।
- यह छात्रों को अपनी भावनाओं को समझने और नियंत्रित करने में की कला सीखने में भी मदद कर सकता है, क्योंकि स्वयं की भावनाओं के बारे में आत्म-जागरूकता समानुभूति का एक प्रमुख घटक है।
- नैतिक मूल्य: शिक्षा में नैतिक मूल्यों को शामिल करना शिक्षण की प्रक्रिया को संदर्भित करता है और नैतिक सिद्धांतों को स्थापित करता है तथा छात्रों में भाईचारे और टीम वर्क मानकों को बढ़ावा देता है।
- सहानुभूति: शिक्षा में सहानुभूति दूसरों की भावनाओं को समझने और साझा करने की क्षमता को संदर्भित करती है और इसे सकारात्मक तथा सीखने हेतु समावेशी वातावरण बनाने के लिये एक आवश्यक कौशल माना जाता है।
- शिक्षा में सहानुभूति के लाभ, जिनमें शामिल हैं:
- साथियों और शिक्षकों के साथ बेहतर संबंध
- विविध दृष्टिकोणों की समझ में वृद्धि
- दूसरों पर अपने कार्यों के प्रभाव के बारे में अधिक जागरूकता।
निष्कर्ष
शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल करने में तर्कसंगत सोच महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। निर्णय लेने के लिये स्पष्ट ढाँचों और दिशा-निर्देशों का उपयोग करके, शिक्षक और प्रशासक अच्छी तरह से सूचित निर्णय ले सकते हैं जो सभी हितधारकों की भलाई को बढ़ावा देते हैं।