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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)

    09 Jan, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव की संक्षिप्त चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • इन मुद्दों को हल करने के लिये कुछ उपायों पर चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    हाल के वर्षों में पर्यावरण पर मानव गतिविधियों के प्रभाव, चिंता का विषय रहे हैं। कृषि से लेकर शहरीकरण और संसाधन निष्कर्षण तक सभी मानवीय गतिविधियों का पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

    मुख्य भाग:

    • इन प्रभावों में शामिल हैं:
      • शहरीकरण: जैसे-जैसे शहर बढ़ते हैं इनसे अक्सर प्राकृतिक आवासों का विनाश होने के साथ स्थानीय परिदृश्य में परिवर्तन हो सकता है।
        • इसका स्थानीय जलवायु पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि इससे निर्मित वातावरण द्वारा ऊष्मा को अवशोषित करने के कारण आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में उच्च तापमान हो जाता है।
      • वनों की कटाई: कृषि, शहरीकरण और अन्य उद्देश्यों के लिये वनों की कटाई के कारण महत्त्वपूर्ण आवासों के साथ पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं जैसे कार्बन प्रच्छादन का नुकसान होने के साथ मृदा क्षरण होता है। इससे मिट्टी का कटाव, भूस्खलन होने के साथ स्थानीय जलवायु पैटर्न में बदलाव हो सकता है।
      • निष्कर्षण उद्योग: तेल, गैस और खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के निष्कर्षण में अक्सर सड़कों और पाइपलाइनों जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाता है जिससे स्थानीय परिदृश्य में बदलाव आ सकता है।
        • इन संसाधनों के निष्कर्षण से वायु और जल प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय प्रभाव भी हो सकते हैं।
      • प्रदूषण: मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण में औद्योगिक और कृषि रसायनों के मिलने के कारण पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर कई नकारात्मक प्रभाव हुए हैं।
      • ये रसायन मिट्टी, जल और हवा को दूषित कर सकते हैं। जिससे प्राकृतिक पर्यावरण पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
      • इसके अलावा भारत में पराली जलाने की परंपरा (जिसमें कृषि अपशिष्ट जलाना शामिल है) से भी प्रदूषण और श्वसन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
      • जलवायु परिवर्तन: मानव गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई ने पृथ्वी की बदलती जलवायु में योगदान दिया है। जिससे पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर कई प्रभाव पड़ रहे हैं।
        • इनमें ग्लेशियरों और ध्रुवीय बर्फ की चोटियों का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि और स्थानीय और क्षेत्रीय जलवायु में परिवर्तन शामिल हैं।
    • पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये कई कदम उठाए जा सकते हैं:
      • रिड्यूस, रीयूज और रिसायकल (R3): संसाधनों का उपयोग और पुन: उपयोग एवं पुनर्चक्रण करके हम पर्यावरण पर संसाधन निष्कर्षण तथा कचरे के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
      • नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करना: सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करके हम जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण में योगदान करते हैं।
      • प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना: वनों, आर्द्रभूमियों और घास के मैदानों जैसे प्राकृतिक आवासों की रक्षा और संरक्षण करके हम जैव विविधता को बनाए रखने और पर्यावरण पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।
      • व्यावहारिक प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना: कृषि, वानिकी और अन्य उद्योगों में व्यावहारिक प्रबंधन रणनीतियों को लागू करके हम पर्यावरण पर इन गतिविधियों के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
      • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके हम पर्यावरण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।
        • इसे ऊर्जा दक्षता में सुधार और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने जैसे उपायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
      • जल की खपत को कम करना: जल का कुशलतापूर्वक उपयोग करके और जल प्रदूषण को कम करके हम इस महत्त्वपूर्ण संसाधन को संरक्षित करने एवं जलमंडल पर मानव गतिविधियों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।
      • संरक्षण प्रयासों का समर्थन करना: संरक्षण पहलों का समर्थन करके हम पर्यावरण की रक्षा करने और पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानव गतिविधियों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।
    • इससे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय और भारत सरकार की पहलें:
      • अंतर्राष्ट्रीय:
        • पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानव गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से कई अंतर्राष्ट्रीय पहलें की गईं हैं। जैसे:
          • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC): यह विश्व के लगभग सभी देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य वातावरण में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को स्थिर करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है।
          • जैव विविधता पर सम्मेलन (CBD): यह वर्ष 1992 में रियो डि जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षरित एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। CBD का मुख्य उद्देश्य जैव विविधता (पृथ्वी पर जीवन की विविधता) के संरक्षण के साथ इसके सतत उपयोग को बढ़ावा देना है।
      • भारत सरकार ने पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानव गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये कई योजनाओं और पहलों को शुरु किया है। जैसे:
        • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना: इस योजना का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और भारत में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना है। इसमें विशिष्ट क्षेत्रों पर केंद्रित कई उप-योजनाएँ शामिल हैं जैसे कि सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और सतत आवास।
        • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना: इस योजना का उद्देश्य जल की गुणवत्ता में सुधार और प्रदूषण को कम करके भारत की नदियों की रक्षा और संरक्षण करना है। इसमें सीवेज उपचार संयंत्र, वनीकरण और रिवरफ्रंट विकास जैसे उपाय शामिल हैं।
        • स्वच्छ भारत अभियान: इस अभियान का उद्देश्य भारत के शहरों और कस्बों की सड़कों के साथ बुनियादी ढाँचे को स्वच्छ बनाना है। इसमें सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण, अपशिष्ट पृथक्करण एवं अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने जैसी पहलें शामिल हैं।

    निष्कर्ष:

    इन मुद्दों को हल करने के लिये सतत प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाना और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा देने वाली सरकारी पहलों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही अभिनव और परिणामोन्मुखी कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे हम पृथ्वी के भौतिक भूगोल पर मानव गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के साथ आने वाली पीढ़ियों के लिये पर्यावरण की रक्षा कर सकेंगे।

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