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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सांस्कृतिक सापेक्षतावाद क्या है? सांस्कृतिक सापेक्षतावाद से नैतिकता के समक्ष कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं? (150 शब्द)

    22 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद का वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद से संबंधित विभिन्न समस्याओं की चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद का आशय किसी संस्कृति को अपने मानदंडों पर समझने की क्षमता है न कि सार्वभौमिक मानदंडों के आधार पर उसकी व्याख्या करना। सांस्कृतिक सापेक्षतावाद के परिप्रेक्ष्य से देखें तो नैतिकता, कानून, राजनीति आदि के आधार पर कोई भी संस्कृति दूसरी संस्कृति से श्रेष्ठ नहीं है।

    मुख्य भाग:

    • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद का महत्त्व:
      • यह एक ऐसी अवधारणा है जिससे पता चलता है कि सांस्कृतिक मानदंड और मूल्य एक विशिष्ट सामाजिक संदर्भ में अपना आकार प्राप्त करते हैं।
      • यह इस विचार पर भी आधारित है कि अच्छाई या बुराई का कोई पूर्ण मानक नहीं है, इसलिये सही और गलत का हर निर्णय, प्रत्येक समाज में पृथक रूप से तय किया जाता है।
      • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद की अवधारणा का अर्थ यह भी है कि नैतिकता पर कोई भी राय प्रत्येक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य में उसकी विशेष संस्कृति से प्रेरित होती है।
      • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद का तात्पर्य अपरिचित सांस्कृतिक प्रथाओं की समझ को बढ़ावा देने का प्रयास करना है।
      • विश्व में सांस्कृतिक विविधता के बढ़ते ज्ञान से वस्तुनिष्ठ नैतिकता के बारे में संदेह पैदा हुआ है।
      • इससे सांस्कृतिक सापेक्षतावादियों को यह निष्कर्ष निकालने में सहायता मिली है कि सभी संस्कृतियों की व्याख्या करने में कोई सार्वभौमिक नैतिक प्रतिमान नहीं हैं।
    • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद से संबंधित समस्या:
      • सांस्कृतिक सापेक्षतावाद के कई नकारात्मक प्रभाव होते हैं जैसे:
        • किसी संस्कृति में अल्पसंख्यकों को हाशिये पर रखने की कोशिश की जा सकती है। इसे इस आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि उस समाज के प्रतिमानों में इसको स्वीकार्यता मिली हुई है।
        • इससे इस विचार को बल मिलता है कि मतभेदों को बहुमत द्वारा और उस संस्कृति की स्वीकृत विशेषता के आधार पर ही सुलझाया जाना चाहिये।
        • यदि किसी संस्कृति में दासता या शिशु हत्या का प्रचलन हो तब ऐसी स्थिति में नैतिकता के सार्वभौमिक प्रतिमानों के आधार पर इसे गलत ठहराना असफल साबित हो सकता है।

    निष्कर्ष:

    सही या गलत का निर्धारण सार्वभौमिक मानकों के आधार पर नहीं होने से सांस्कृतिक सापेक्षतावाद के द्वारा नैतिकता के समक्ष चुनौती उत्पन्न होती है क्योंकि इसके अनुसार, नैतिक निर्णय व्यक्ति या समाज विशेष के सापेक्ष होते हैं और सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं हो सकते हैं।

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