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प्रश्न :
भारतीय जेल, मानवाधिकारों की दुर्दशा को प्रतिबिंबित करती हैं और इनमें गंभीर सुधारों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
20 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत में जेलों की स्थिति का संक्षेप में वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में कैदियों द्वारा सामना किये जाने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चर्चा कीजिये।
- इन मुद्दों को हल करने के लिये कुछ उपायों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया (PSI) 2021 द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में गिरफ्तार किये गए लोगों की संख्या में 7.7 लाख की वृद्धि हुई है। जबकि वर्ष 2021 में 1.47 करोड़ लोगों को तथा वर्ष 2020 में 1.39 करोड़ लोगों को गिरफ्तार किया गया था। साथ ही 1,319 जेलों में कैदियों की आबादी दिसंबर 2020 में 488,511 से 13 प्रतिशत बढ़कर दिसंबर 2021 में 554,034 हो गई है।
मुख्य भाग
- भारत में जेलों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:
- भीड़-भाड़ संबंधी:
- जेल में अत्यधिक भीड़-भाड़ एक ऐसी घटना है, जब जेलों के क्षेत्राधिकार में जगह की मांग कैदियों की क्षमता से अधिक हो जाती है।
- इसके अलावा यह कैदियों के लिये चिकित्सा संबंधी समस्याएँ पैदा कर सकता है और उनके तनाव और आलस्य को बढ़ा सकता है।
- कारण: जेलों में भीड़, विशेष रूप से विचाराधीन कैदियों के बीच चिंता का एक स्रोत रहा है। कानून प्रवर्तन सहायता प्रशासन राष्ट्रीय जेल जनगणना ने खुलासा किया था कि जेल के 77% कैदी मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे थे।
- भ्रष्टाचार:
- जेल कर्मचारियों द्वारा भ्रष्टाचार तथा इसका कम आक्रामक परिणाम, गार्ड भ्रष्टाचार, जेलों में आम है।
- कारण: यह देखते हुए कि कैदियों पर पहरेदारों के लिये पर्याप्त शक्ति, इन समस्याओं का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर पहरेदारों को दिये जाने वाले कम वेतन ने उन्हें गंभीर रूप से बढ़ा दिया है। वर्जित या विशेष उपचार के बदले में कैदियों से घूस लेकर गार्ड अपने वेतन को पूरा करते हैं।
- स्वास्थ्य संबंधी स्थिति:
- जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के रहने की स्थिति असंतोषजनक है। देश भर की कई जेलों में आहार, वस्त्र और स्वच्छता, असंतोषजनक जीवन से संबंधित स्थितियों जैसे विभिन्न मुद्दे हैं।
- असमान व्यवहार:
- ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा प्रदान की गई रिपोर्ट के अनुसार विशेष रूप से भारत जैसे देशों का हवाला दिया जाता है जहाँ जेलों में "रिजिड क्लास" प्रणाली मौजूद है।
- इसमें कहा गया है कि इस प्रणाली के तहत, उच्च और मध्यम वर्ग से आने वाले कैदियों के अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार दिये जाते हैं, भले ही उन्होंने कोई भी अपराध किया हो।
- ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा प्रदान की गई रिपोर्ट के अनुसार विशेष रूप से भारत जैसे देशों का हवाला दिया जाता है जहाँ जेलों में "रिजिड क्लास" प्रणाली मौजूद है।
- स्वास्थ्य देखभाल हेतु कम बजट: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित 'प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021' के आँकड़ों से पता चलता है कि जेलों के लिये आवंटित कुल बजट में से केवल 54% कैदियों पर और लगभग 1.3% उनके चिकित्सा संबंधी मामलों पर खर्च किया जाता है।
- शारीरिक शोषण:
- पहरेदारों द्वारा कैदियों का शारीरिक शोषण भारत की जेलों में एक और पुरानी समस्या है।
- भारत में कई जेल प्रणालियों में अनुचित शोषण जेल जीवन का एक अभिन्न अंग है। इसके अलावा भारतीय जेलों में महिला कैदी विशेष रूप से हिरासत में यौन शोषण का शिकार होती हैं।
- अक्सर पुलिस अधिकारी हिरासत में कैदियों के साथ यातना और क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता हैं।
- इसके अलावा जेल की चारदीवारी के भीतर थर्ड डिग्री टॉर्चर अक्सर होते रहते हैं और कई बार उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है, ऐसे मामले तब सामने आते हैं जब मीडिया या मानवाधिकार आयोग इस पर कोई ध्यान देता है।
- भीड़-भाड़ संबंधी:
- पैमाने:
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: अगर जेल में भीड़-भाड़ को कम करना है तो विचाराधीन आबादी को काफी कम करना होगा। बेशक यह न्यायालयों और पुलिस के सहयोग के बिना नहीं हो सकता है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली के तीनों अंगों को सामंजस्यपूर्ण ढंग से कार्य करना होगा। उदाहरण के लिये स्पीडी ट्रायल, स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट आदि जैसे सुधार लाए जाएँ।
- रहन-सहन की स्थिति में सुधार: जेल की स्थिति में सुधार का मतलब यह नहीं है कि जेल के जीवन को नरम बना दिया जाए इसका मतलब यह है कि इसे कैदियों के लिये मानवीय और उचित बनाया जाना चाहिये।
- अभिनव पहल: कुछ नवीन पहलों की आवश्यकता है, उदाहरण के लिये आर्ट ऑफ़ लिविंग तिहाड़ जेल में एक स्मार्ट कार्यक्रम चला रहा है। इसमें प्रति माह दो पाठ्यक्रम शामिल हैं जो जेल कर्मचारियों के लिये सालाना आयोजित किये जाते हैं। लेकिन ये अपवादों और अभ्यासों के माध्यम से अधिक हो सकते हैं।
- इसके अलावा, सृजन परियोजना का उद्देश्य वहाँ सामाजिक पुनर्वास प्रदान करना है। अभी भी ऐसे कार्यक्रम कम हैं और भारतीय जेलों से दूर हैं।
- जेल नियमावली का मानकीकरण: यह समय की मांग है कि जेल नियमावली में वर्णित कैदियों की सुरक्षा के प्रावधानों का कड़ाई से पालन किया जाए और सुरक्षा उपायों को देखने के लिये अच्छी तरह से सुसज्जित और प्रशिक्षित जेल कर्मचारियों को नियुक्त किया जाए।
- समय पर निरीक्षण: न्यायिक अधिकारियों द्वारा नियमित और समय पर निरीक्षण किया जाना चाहिये। पुलिस और प्रशासन के सभी अंगों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिये ताकि कैदियों का प्रभावी सामाजिक पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: अगर जेल में भीड़-भाड़ को कम करना है तो विचाराधीन आबादी को काफी कम करना होगा। बेशक यह न्यायालयों और पुलिस के सहयोग के बिना नहीं हो सकता है।
निष्कर्ष
गिरफ्तार व्यक्तियों की बुनियादी गरिमा की रक्षा करने की आवश्यकता है साथ ही दोषी व्यक्ति को उचित सम्मान दिया जाना चाहिये। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के साथ-साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इनकी गरिमाओं की सुरक्षा का उल्लेख किया गया है। जेल सुधारों के लिये बजट बढ़ाने और पर्याप्त जगह प्रदान करने की आवश्यकता है उचित प्राथमिकता और आवंटन के बिना तमाम चर्चाओं के बावजूद जेलों में सुधार करना मुश्किल को सकता है।
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