हाल ही में कैटरिंग सेवा में शामिल एक 19 वर्षीय दलित व्यक्ति के हाथ, शादी समारोह में उच्च जाति के व्यक्ति की भोजन की थाली में लग जाने के कारण उस पर हमला किया गया था। वहाँ पर उपस्थित लोगों द्वारा बीच-बचाव के बाद यह मामला शांत कराया गया और इसके बाद पीड़ित व्यक्ति अपने घर चला गया। इसके बाद भी आरोपी और उसके सहयोगियों ने पीड़ित व्यक्ति के घर जाकर उसके साथ मारपीट की। जब उसके परिवार के अन्य सदस्यों ने बीच-बचाव करने का प्रयास किया तो उनके साथ भी मारपीट की गई। इसके अलावा आरोपियों ने घर में खड़ी एक मोटरसाइकिल को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। इसके बावजूद पुलिस ने इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं की और इसे नजरंदाज़ किया। गिरफ्तारी में पुलिस की निष्क्रियता के कारण यह स्थिति और बिगड़ती जा रही है और इस क्रम में उच्च और निम्न जाति के दो विपरीत समूहों के बीच संघर्ष भी शुरू हो गया है।
A. एक आईपीएस अधिकारी के रूप में आप इस मुद्दे को कैसे सुलझाएंगे और इस संदर्भ में आपकी कार्रवाई का क्रम क्या होगा?
B. आप अपने जिले में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को कैसे रोक सकते हैं?
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दे की चर्चा करते हुए अपने उत्तर को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
- इस मामले में शामिल विभिन्न हितधारकों और नैतिक द्वंदों के बारे में चर्चा कीजिये।
- इस मामले में आईपीएस अधिकारी द्वारा की जाने वाली कार्रवाई के बारे में चर्चा कीजिये।
- इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश लगाने के बारे में सुझाव देते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
इस मामले में धोखे से दलित व्यक्ति द्वारा उच्च जाति के व्यक्ति की थाली छू जाने और दोनों पक्षों के समूह का हिंसा में लिप्त होना शामिल है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को इस मुद्दे को हल करने का कार्य सौंपा गया है।
मुख्य भाग:
- इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दे:
- संवैधानिक नैतिकता: नियम-विनियम का पालन करना वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कर्त्तव्य है।
- तटस्थता: इस मामले में लोक सेवकों द्वारा तटस्थता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। राज्य को हमेशा तटस्थ रहना चाहिये और धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर पक्षपात नहीं करना चाहिये।
- इस मामले में शामिल हितधारक:
- हिंसा का शिकार - 19 वर्षीय दलित युवक
- पीड़ित के परिवार के सदस्य।
- थाली छू जाने पर दलित युवक से मारपीट करने वाले आरोपी।
- मारपीट करने वाले आरोपी के परिजन
- इस मामले को सुलझाने के लिये नियुक्त किया जाने वाला आईपीएस अधिकारी
- समाज
- इसमें शामिल नैतिक द्वंद:
- सार्वजनिक उत्तरदायित्व बनाम कर्त्तव्य का निर्वहन न करना: आईपीएस अधिकारी के सामने यह द्वंद है कि क्या वह लोगों के प्रति अपने कर्तव्य को गंभीरता से न लेते हुए इस तरह के विरोध प्रदर्शनों को सामान्य बात समझे या फिर वास्तविक अर्थों में करुणा के साथ और बिना किसी पक्षपात के अपना कर्तव्य निभाए।
- स्थितिजन्य नैतिकता:
- संकट प्रबंधन: सीमित संसाधनों के साथ और स्थानीय समुदायों पर बिना या न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव के संकट का कुशलता से समाधान करना।
- कानून और व्यवस्था बनाए रखना: दो समूहों के बीच आपसी लड़ाई से सांप्रदायिक हिंसा और दंगे हो सकते हैं, इसलिये आईपीएस अधिकारी को इस तनावपूर्ण स्थिति में कानून और व्यवस्था बनाए रखने की आवश्यकता है।
- समय पर निर्णय लेना: समाज के स्वस्थ ताने-बाने को बनाए रखने और कुशल निर्णय लेने के साथ जनता के बीच विश्वास बढ़ाने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है।
- कार्रवाई का क्रम:
- कार्रवाई का पहला तरीका यह हो सकता है कि आईपीएस अधिकारी इस मामले को हल्के में लेते हुए प्रभावशाली सवर्ण पक्ष का समर्थन करे।
- कार्रवाई का यह तरीका पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है और यह कानून के शासन के सभी बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है और एक सभ्य समाज के अनुकूल नहीं लगता है।
- कार्रवाई का दूसरा तरीका यह हो सकता है कि आईपीएस अधिकारी आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और जाँच के बाद यह सुनिश्चित करे कि आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार धर्म,जाति और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। इसके अलावा यह अनुच्छेद -14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 21 (गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करने के साथ अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) के प्रतिकूल है।
- अगले चरण के रुप में आईपीएस अधिकारी को घोषणाओं और अभियानों के माध्यम से इस जागरूकता का प्रसार करना चाहिये कि भविष्य में इस तरह के भेदभाव करने के लिये उन्हें दंडित किया जाएगा।
- IPS अधिकारी को दोनों समुदायों के सभी सदस्यों के साथ बातचीत करने की कोशिश करनी चाहिये और उन्हें समझाना चाहिये कि किसी भी निम्न जाति के व्यक्ति के साथ भेदभाव और मारपीट करना गलत है और समाज में प्रत्येक व्यक्ति समान है और उसके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा आईपीएस अधिकारी द्वारा सरकार को सुझाव दिया जा सकता है कि सार्वजनिक स्थानों पर सामूहिक भोज और ऐसे अन्य कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए जिससे जातिवाद की कुरीतियों को खत्म किया जा सके।
निष्कर्ष:
इस स्थिति में कार्रवाई का दूसरा तरीका सबसे उपयुक्त है क्योंकि इससे सांप्रदायिक हिंसा के तनाव को कम करने के साथ रचनात्मक संवाद के माध्यम से दोनों पक्षों के बीच समन्वय को बढ़ावा मिलेगा। अंत में सार्वजनिक कार्यक्रमों के माध्यम से इस संबंध में जनता के बीच जागरूकता को बढ़ावा देकर इस प्रकार की अस्पृश्यता की समस्या का प्रभावी और दीर्घकालिक समाधान होगा।