हाल ही में कई निजी उद्यमों को अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के क्रम में नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ रहा है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं? चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- निजी व्यवसायों द्वारा सामना की जाने वाली नैतिक दुविधा का वर्णन करते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
- इस मुद्दे पर अपनी राय बताइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
नैतिक दुविधा दो नैतिक अनिवार्यताओं के बीच निर्णय लेने की समस्या है जिनमें से कोई भी निर्णय स्थिति को नैतिक रूप से संतोषजनक तरीके से हल नहीं करता है। यह एक जटिल स्थिति है जिसमें अक्सर एक स्पष्ट मानसिक पहेली शामिल होती है जिसमें एक आज्ञा का पालन करने का परिणाम दूसरे की अवज्ञा करना होता है।
मुख्य भाग
वर्तमान में शीर्ष तकनीकी कंपनियों की सूची बढ़ रही है जो इस वर्ष धन की कमी के बीच नकदी के संरक्षण और लाभप्रदता पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास में कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं।
नैतिक दुविधा:
- ईमानदार कर्मचारी बनाम कंपनी: छंटनी की प्रक्रिया के दौरान ईमानदार कर्मचारी कंपनी में विश्वास खो देंगे और इससे कंपनी को दीर्घकालिक नुकसान होगा।
- नैतिकता v/s व्यावहारिकता: कंपनी को दुविधा का सामना करना पड़ेगा कि कर्मचारी के प्रति करुणा के नैतिक मूल्य को बनाए रखने के लिये उन्हें कंपनी में कार्यरत रखा जाए या व्यावहारिक रूप से बर्खास्त किया जाए।
शामिल नैतिक मुद्दे:
- व्यापार नैतिकता: अगर कंपनी छंटनी के साथ आगे बढ़ती है, तो छंटनी से पहले एक बार के मुआवज़े के साथ दो महीने की नोटिस अवधि होनी चाहिये।
- सहानुभूति: नियोक्ता को भी कर्मचारी के दृष्टिकोण से सोचना चाहिये, क्योंकि तभी उसे पता चलेगा कि कर्मचारी किस स्थिति में है।
- कॉरपोरेट गवर्नेंस: कॉरपोरेट गवर्नेंस हज़ारों शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिनके पास कंपनी में स्वामित्व है और इसमें कर्मचारियों के पहलू भी शामिल हैं, जो व्यावसायिक गतिविधियों में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
कंपनी और कर्मचारियों के समक्ष उपलब्ध विकल्प:
- लागत में बढ़ोतरी छंटनी के मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि कंपनियाँ अपने खर्चों को कवर करने के लिये पर्याप्त लाभ नहीं कमा रही हैं या क्योंकि उन्हें ऋण चुकाने के लिये पर्याप्त अतिरिक्त नकदी की आवश्यकता है।
- कंपनी को कर्मचारी की वित्तीय स्थिति के बारे में पता हो सकता है और उनमें से कई लोगों की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है और कंपनी से निकालना उसे नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।
- इसके अलावा, कर्मचारी को ऐसे समय में निकालना जब वे वित्तीय संकट से गुजर रहे हों और बाज़ार में आर्थिक मंदी के कारण उनके लिये कहीं और नौकरी ढूंढना मुश्किल हो जाए, यह अनैतिक है।
- अधिकतर, कर्मचारी अपने जीवन में वित्तीय स्थिरता के लिये काम करते हैं और उनसे रोज़गार छीनने से उनके घर में संसाधनों की कमी हो सकती है और वे गरीबीके गर्त में जा सकते हैं।
- जिस व्यक्ति को काम से निकाला जाता है वह सबसे अधिक संकट झेलता है, लेकिन शेष कर्मचारी भावनात्मक रूप से भी पीड़ित होते हैं। डर के मारे काम करने वाले कर्मचारियों का उत्पादकता स्तर नीचे जाने की संभावना है।
- नियोजित व्यक्ति और उसके परिवार की भलाई की ज़िम्मेदारी नियोक्ता पर आती है, यदि नियोक्ता के पास पर्याप्त व्यक्तिगत संपत्ति है, तो उसे सभी कर्मचारियों को बनाए रखना चाहिये। उदाहरण के लिये 2008 के वित्तीय संकट के दौरान टाटा समूह ने अपने सभी कर्मचारियों को बनाए रखा।
- ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि एक निजी संगठन अपने फायदे के लिये कर्मचारियों को नियोजित करता है और उन्हें संकट के समय बर्खास्त कर देता है ।
- इसलिये निगमों को अपने व्यवसाय के मूल सिद्धांतों पर काम करने की आवश्यकता है और आगे अपने कॉर्पोरेट प्रशासन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिये।
निष्कर्ष
समृद्ध समय की तुलना में कठिन समय में दयालु पूंजीवाद महत्त्वपूर्ण है। इसलिये, अपने कर्मचारियों को निकालने के बजाय, नियोक्ता को मंदी के शांत होने तक उनके वेतन में कटौती करनी चाहिये, जो कर्मचारियों को बनाए रखेगा और इस कठिन समय में कंपनी के खर्च को भी कम करेगा।