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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में न्यायिक नियुक्तियों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। क्या प्रस्तावित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक (National Judicial Commission Bill), न्यायपालिका में महत्त्वपूर्ण सुधार प्रशस्त कर सकता है? (250 शब्द)

    13 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति की संक्षिप्त में व्याख्या करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • भारत में न्यायिक नियुक्ति प्रणाली में सुधार के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक (एनजेसीबी) की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    • न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन महत्त्वपूर्ण स्तंभों में से एक है, इसलिए पीठ की गरिमा बनाए रखने के लिये सक्षम न्यायाधीशों की नियुक्ति की सही व्यवस्था होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। भारत में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती द्वारा वर्ष 1993 में शुरू की गई कॉलेजियम प्रणाली का पालन न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में किया जाता है।

    मुख्य भाग

    • उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया इस प्रकार है:
      • सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम एक पाँच सदस्यीय निकाय है, जिसकी अध्यक्षता भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) करते हैं, और इसमें उस समय न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
        • एक उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व वर्तमान मुख्य न्यायाधीश तथा उस न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
        • सरकार भी आपत्ति उठा सकती है और कॉलेजियम के विकल्पों के बारे में स्पष्टीकरण मांग सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम उन्हीं नामों को दोहराता है, तो सरकार उन्हें न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने के लिये बाध्य है।
      • इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित हैं।
        • नियुक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं, जिसमे"सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों" के साथ परामर्श करने की आवश्यकता होती है।
      • लेकिन संविधान में इन नियुक्तियों से संबंधित कोई भी प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है, बल्कि वे कॉलेजियम प्रणाली द्वारा शासित होते हैं।
    • अगस्त 2014 में संसद ने NJAC अधिनियम, 2014 के साथ संविधान (99वाँ संशोधन) अधिनियम, 2014 पारित किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक स्वतंत्र आयोग के गठन का प्रावधान है।
      • वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने 99वें संवैधानिक संशोधन और NJAC अधिनियम दोनों को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया।
    • वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ:
      • पक्षपात और भाई-भतीजावाद की संभावना:
        • कॉलेजियम प्रणाली सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिये उम्मीदवार के परीक्षण हेतु कोई विशिष्ट मानदंड प्रदान नहीं करती है जिसके कारण भाई-भतीजावाद और पक्षपात की व्यापक गुंज़ाइश पैदा हो जाती है।
        • यह न्यायिक प्रणाली की गैर-पारदर्शिता को जन्म देता है, जो देश में कानून व्यवस्था के नियमन के लिये बहुत हानिकारक है।
      • नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत के खिलाफ:
        • इस प्रणाली में नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत का उल्लंघन होता है। भारत में तीन अंग आंशिक रूप से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं लेकिन वे किसी भी अंग की अत्यधिक शक्तियों पर नियंत्रण और संतुलन रखते हैं।
        • हालाँकि, कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका को अपार शक्ति प्रदान करती है तथा नियंत्रण का बहुत कम अवसर देती है जिससे दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है।
      • ‘क्लोज़-डोर मैकेनिज़्म : आलोचकों ने रेखांकित किया है कि इस प्रणाली में कोई आधिकारिक सचिवालय शामिल नहीं है। इसे एक ‘क्लोज्ड डोर अफेयर’ के रूप में देखा जाता है, जहाँ कॉलेजियम की कार्य प्रणाली और निर्णयन प्रक्रिया के बारे कोई सार्वजनिक सूचना उपलब्ध नहीं होती।
        • इसके अलावा कॉलेजियम की कार्यवाही का कोई आधिकारिक कार्यवृत्त भी दर्ज नहीं होता।
      • असमान प्रतिनिधित्व:
        • चिंता का एक अन्य क्षेत्र उच्च न्यायपालिका की संरचना है, जहाँ महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है।
    • न्यायिक नियुक्ति प्रणाली में सुधार के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक (एनजेसीबी) की प्रासंगिकता:
      • नियुक्ति की प्रक्रिया को विनियमित करता है:
        • विधेयक का उद्देश्य भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों एवं अन्य न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति हेतु लोगों की सिफारिश करने हेतु राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को विनियमित करना है।
      • स्थानान्तरण को विनियमित करना:
        • इसका उद्देश्य उनके स्थानांतरण को विनियमित करना और न्यायिक मानकों को निर्धारित करना तथा न्यायाधीशों की जवाबदेही सुनिश्चित करना है। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के दुर्व्यवहार या अक्षमता के लिये व्यक्तिगत शिकायतों की जाँच हेतु विश्वसनीय और समीचीन तंत्र स्थापित करना और विनियमित करना है।
      • एक न्यायाधीश को हटाना:
        • यह एक न्यायाधीश को हटाने के लिये कार्यवाही के संबंध में और उससे जुड़े मामलों या प्रासंगिक मामलों के संबंध में राष्ट्रपति को संसद द्वारा एक अभिभाषण प्रस्तुत करने का भी प्रस्ताव करता है।

    निष्कर्ष

    • सरकार के तीनों रूपों जैसे न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायी के बीच उचित संतुलन बनाने की आवश्यकता है, आगे न्यायपालिका को अपनी संरचना को स्वीकार और सुधार कर उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिये, जिससे संबंधित कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
    • स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन: वास्तविक मुद्दा यह नहीं है कि कौन (न्यायपालिका या कार्यपालिका) न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है, बल्कि किस प्रकार से उन्हें नियुक्त किया जाता है।
      • इसके लिये न्यायिक नियुक्ति आयोग (JAC) की संरचना चाहे जो भी हो, न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक जवाबदेही के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।
        • नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका होनी चाहिये लेकिन JAC की संरचना ऐसी होनी चाहिये कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता न हो।
    • न्यायपालिका के अंदर न्याय: यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि न्याय प्रदान करने के लिये न्यायालय की संस्थागत अनिवार्यता न्यायपालिका के भीतर अवसर की समानता और न्यायाधीशों के चयन के लिये निश्चित मानदंडों के साथ बनी रहे।
    • NJAC की स्थापना पर पुनर्विचार: NJAC के अधिनियम में उन सुरक्षा उपायों को शामिल करने के लिये संशोधन किया जा सकता है जो इसे संवैधानिक रूप से वैध बनाएँगेे साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये पुनर्गठित किया जाएगा कि बहुमत नियंत्रण न्यायपालिका के पास बना रहे।

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