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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘नरमदलीय आर्थिक चिंतन प्रभावपूर्ण होते हुए भी सीमाओं से रहित नहीं था, फिर भी इसने एक ऐसी ओजस्वी धारा को प्रस्फुटित किया जो कालांतर में राष्ट्रवाद के समस्त चरणों में विदेशी शासन की भारतीय समीक्षा का सार रहा।’ व्याख्या करें।

    22 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा : 

    • नरमदलीय आर्थिक चिंतन व इसकी सीमाओं की संक्षिप्त व्याख्या 
    • आर्थिक चिंतन का राष्ट्रवाद पर प्रभाव

    1. विभिन्न आन्दोलनों को आधार प्रदान किया।
    2. राष्ट्रवाद के सभी चरणों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    • निष्कर्ष- सभी आन्दोलनों को प्रेरणा दी।

    नरमदलीय नेताओं ने 19वीं सदी के अपने समकालीन अन्य आन्दोलनों के मुकाबले सबसे पहले उपनिवेशवाद के आर्थिक पहलुओं को विश्लेषित किया। ‘धन निकासी के सिद्धान्त’ की व्याख्या कर इन नेताओं ने भाषणों, पर्चों, सभाओं आदि के माध्यम से जन-जन तक यह बात पहुँचाने का प्रयत्न किया कि किस प्रकार उपनिवेशवाद प्रत्येक स्तर पर आर्थिक शोषण करता है।

    यद्यपि नरमदलीय नेताओं के आर्थिक चिंतन की कुछ सीमाएँ थीं, जैसे- इस चिंतन के आधार पर 19वीं शताब्दी में कोई बड़ा आन्दोलन नहीं कर पाए। इसके अतिरिक्त उनका चिंतन 19वीं सदी तक बौद्धिक वर्ग तक ही सीमित रहा। यह चिंतन केवल ब्रिटिश शोषण की व्याख्या करता था, आर्थिक समानता की नहीं।

    परन्तु इस आर्थिक चिंतन ने 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद की विचारधारा को आर्थिक आधार प्रदान कर उग्र एवं प्रसारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रवादी नेताओं ने प्रत्येक महत्त्वपूर्ण आर्थिक मुद्दे को देश की राजनीतिक गुलामी के सवाल से जोड़ा। इस प्रकार राष्ट्रवादी नेताओं ने भारतीयों के दिल-दिमाग में यह बात बैठा दी कि चूँकि ब्रिटिश सरकार का प्रशासन ‘महज शोषण का हथियार है’ इसलिये भारतीय हितों के अनुकूल नीतियाँ एवं कार्यक्रम तभी मुमकिन है जब राजनीतिक सत्ता और प्रशासन पूरी तरह भारतीयों के नियन्त्रण में ही हों। ऐसे विचारों ने भारतीय जनता को स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये उद्वेलित कर उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से जोड़ा तथा विद्रोह के बीज भी बो दिये।

    यद्यपि राष्ट्रवाद के चरणों के क्रम में 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में यह आन्दोलन राजनीतिक सत्ता में भागीदारी तथा सरकारी कोष तक ही सीमित रहा परन्तु 20वीं सदी के प्रारम्भ में ‘अर्थतंत्र’ को आधार बनाकर स्वशासन की मांग की गई। गांधी युग में इस चेतना को जन-जन तक पहुँचाया गया तथा समाजवादी दौर में इस अवधारणा को व्यापक कर ब्रिटिश अर्थतंत्र ही नहीं अपितु सभी वे कारक जो आर्थिक शोषण के कारण बनते हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित कर ‘समाजवाद’ पर बल दिया गया।

    अतः स्पष्ट है कि यद्यपि प्रारम्भिक आर्थिक चिंतन उग्र नहीं था परन्तु इसी चिन्तन ने 20वीं सदी में सभी ‘राष्ट्रवादी आन्दोलनों तथा आन्दोलनकारियों’ को प्रेरणा दी जिससे ये आन्दोलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद की अथाह शक्ति का मुकाबला कर सके एवं अन्ततः स्वंतन्त्रता प्राप्त कर सके।

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