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प्रश्न :
पालने/जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के हर चरण में महिलाओं के खिलाफ हिंसा होती रहती है। चर्चा कीजिये (250 शब्द)
12 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के बारे में आँकड़ों को संक्षेप में उज़ागर करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित विभिन्न कारकों और कारणों पर चर्चा कीजिये।
- महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के उपाय सुझाते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के खिलाफ हिंसा को "लिंग आधारित हिंसा के किसी भी कार्य के रूप में परिभाषित करता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक, यौन या मानसिक नुकसान या पीड़ा होती है, या होने की संभावना है, जिसमें इस तरह के कृत्यों की धमकी, जबरदस्ती या मनमाने तरीके से स्वतंत्रता से वंचित करना शामिल है हिंसा सार्वजनिक रूप या निजी जीवन किसी में भी हो सकती है।
विश्व स्तर पर दुनिया भर में लगभग 3 में से 1 (30%) महिलाएँ अपने जीवनकाल में या तो शारीरिक और/या यौन अंतरंग साथी हिंसा या गैर-साथी यौन हिंसा का शिकार हुई हैं।
भारतीय राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर वर्ष 2020 में 56.5% से बढ़कर वर्ष 2021 में 64.5% हो गई है।
- इसके अलावा रिपोर्ट ने दहेज हत्या, यौन उत्पीड़न, यातना, बलात्कार और घरेलू हिंसा के रूप में भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में भारी वृद्धि पर भी प्रकाश डाला है।
मुख्य भाग
- महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक सामाजिक, आर्थिक, विकासात्मक, कानूनी, शैक्षिक, मानव अधिकार और स्वास्थ्य (शारीरिक और मानसिक) संबंधी मुद्दा है।
- जन्म से लेकर मृत्यु/कब्र तक महिलाओं को भारी मात्रा में मानसिक और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिनका वर्णन नीचे किया गया है:
- कन्या भ्रूण हत्या: इसे लड़कों के लिये प्राथमिकता और बालिकाओं के जन्म से जुड़े कम मूल्य के कारण जानबूझकर बच्चियों की हत्या के रूप में वर्णित किया गया है।
- वर्ष 1921 में भारत में प्रति 100 पुरुषों पर 97 से अधिक महिलाएँ थीं। सत्तर साल बाद यह संख्या घटकर 92.7 रह गई। यदि भारत में महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाता, तो वर्तमान एक अरब की आबादी में 512 मिलियन महिलाएँ होनी चाहिये थीं।
- इसके अलावा हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आबादी से 50 मिलियन लड़कियाँ और महिलाएँ गायब हैं, जो आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित यौन भेदभाव के कारण कन्या भ्रूण हत्या का परिणाम हैं।
- शिक्षा में कमी: आमतौर पर रूढ़िवादी भारतीय समाज में रहने वाले लोग अपनी लड़की को स्कूल भेजना पसंद नहीं करते हैं, जो आगे चलकर पुरुष और महिला शिक्षा के बीच असमानता पैदा करता है तथा भोजन एवं चिकित्सा देखभाल तक पहुँच को बढ़ावा देता है।
- बालिका विवाह: जो महिला जननांग विकृति, रिश्तेदारों या अजनबियों द्वारा यौन और मानसिक दुर्व्यवहार, भोजन एवं चिकित्सा देखभाल के लिये अलग-अलग पहुँच, बाल वेश्यावृत्ति और अश्लील साहित्य जैसे कई अन्य अत्याचारों की ओर ले जाता है।
- बालिका श्रम: बालिका बाल घरेलू कामगार के रूप में कार्य करती है, जिसे उनके नियोक्ताओं द्वारा शोषण किया जाता है, गर्म लोहे से उन्हें दागा जाता है या जंजीरों में जकड़ा जाता है। कई लड़कियों की या तो उनके दुखवादी नियोक्ताओं द्वारा हत्या कर दी गई है या उन्होंने आत्महत्या कर ली।
- दहेज हत्या: दहेज हत्या के अंतर्गत दहेज से संबंधित विवादों के कारण विवाहित महिलाओं की हत्या कर दी जाती है या आत्महत्या के लिये उन्हें मज़बूर कर दिया जाता है।
- घरेलू हिंसा: घरेलू हिंसा निजी क्षेत्र में आमतौर पर उन व्यक्तियों के बीच हिंसा है जो अंतरंगता, रक्त या कानून के माध्यम से संबंधित हैं। घरेलू हिंसा शब्द की स्पष्ट तटस्थता के बावजूद लगभग हमेशा एक लिंग विशिष्ट अपराध है, जो महिलाओं के खिलाफ पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न: विभिन्न रिपोर्टों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि प्राथमिक तौर पर पीड़ितों में अपनी पहली नौकरी कर रही युवा महिलाएँ या करियर ब्रेक के बाद कार्यस्थल पर लौटने वाली महिलाएँ हैं। उदाहरण के लिये उम्र या रोज़गार की स्थिति के कारण पीड़ित आमतौर पर कमज़ोर होता है।
- बुजुर्ग महिलाओं के खिलाफ हिंसा: वृद्ध महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और बलात्कार, परिवारों द्वारा वृद्धावस्था में महिलाओं को छोड़ना या उन्हें अमानवीय वृद्धाश्रम में भेज देना, जैसे कई मामले है जहाँ दुख और अपमान का जीवन उनका इंतजार करता है, महिलाओं का जीवन वास्तव में दुखद है।
- प्रतिकूल कानून और सामाजिक मानसिकता: भारतीय संविधान महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकारों की गारंटी देता है, लेकिन मज़बूत पितृसत्तात्मक परंपराएँ बनी हुई हैं। महिलाओं के जीवन को उन रीति-रिवाजों द्वारा आकार दिया जाता है जो सदियों पुराने हैं।
- अधिकांश भारतीय परिवारों में, एक बेटी को एक दायित्व के रूप में माना जाता है और उसे यह विश्वास करने के लिये अनुकूलित किया जाता है कि वह पुरुषों से कमतर और अधीनस्थ है। घर के बाहर की असुरक्षा महिलाओं की राह में सबसे बड़ी बाधा है। घर के बाहर होने वाले अत्याचारों की तुलना में घर के भीतर अत्याचार असहनीय हैं, महिलाएँ घर और समाज में अपनी हीनता को स्वीकार करती रहीं है।
निष्कर्ष
- लैंगिक समानता को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक उपाय इस प्रकार हैं:
- प्रवर्तन: समय की मांग है कि कानून को लागू किया जाए और उन नीतियों को विकसित और कार्यान्वित किया जाए जो विवाह, तलाक और हिरासत, उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों एवं संपत्ति के स्वामित्व में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करके लैंगिक समानता को बढ़ावा देती हैं।
- वित्तीय स्वतंत्रता: सवैतनिक रोज़गार तक महिलाओं की पहुँच में सुधार।
- राष्ट्रीय योजनाओं और नीतियों का विकास और संसाधन: इसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को संबोधित करना होगा।
- क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: यह महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों को नियंत्रित करने के लिये सेवा प्रदाताओं और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को बढ़ाएगा।
- पुरुष मध्यस्थता पहल: दुराचारियों के लिये कार्यक्रम तैयार करने में पुरुष की भागीदारी सुनिश्चित करना।
- हिंसा की पुनरावृत्ति को रोकना: हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं और बच्चों की शुरुआती पहचान के माध्यम से और उचित परामर्श के साथ सहायता प्रदान करना।
- समतावादी लिंग मानदंडों को बढ़ावा देना: इसे युवा लोगों को पढ़ाए जाने वाले जीवन कौशल और व्यापक कामुकता शिक्षा पाठ्यक्रम के एक हिस्से के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा।
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