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प्रश्न :
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर टिप्पणी कीजिये। नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के उपाय सुझाइये? (250 शब्द)
29 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
दृष्टिकोण:
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) का संक्षेप में वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया और संबंधित चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
- इसकी नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के लिये कुछ उपाय सुझाइए।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य स्तर पर निर्वाचन प्रक्रियाओं को संचालित करने के लिये जिम्मेदार है।
- यह निकाय देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पद के निर्वाचनों का संचालन करता है।
- निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया:
- संविधान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्ति के लिये कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं दी गई है। कार्य आवंटन नियमों के तहत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर CEC और EC की नियुक्ति करेगा।
- इसलिये CEC और EC की नियुक्ति करना राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्ति होती है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है। उनका दर्जा भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का होता है तथा उन्हें उनके समतुल्य ही वेतन और अनुलाभ मिलते हैं।
- भारत निर्वाचन आयोग को संविधान से ही अधिकार प्राप्त होता है। अनुच्छेद 324 के तहत "चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण" की शक्तियाँ एक निर्वाचन आयोग में निहित होती हैं।
- संविधान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्ति के लिये कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं दी गई है। कार्य आवंटन नियमों के तहत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर CEC और EC की नियुक्ति करेगा।
- चुनौतियाँ:
- संवैधानिक द्वंद: अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा तब तक इसकी नियुक्ति की जाएगी जब तक कि इस उद्देश्य के लिये संसद द्वारा कोई कानून नहीं बनाया जाता है।
- इस तरह के कानून की अनुपस्थिति के कारण संभावित वैधानिक नियुक्ति प्रक्रिया, राष्ट्रपति द्वारा होने वाली संवैधानिक नियुक्ति (कार्यकारी अंग द्वारा की गई नियुक्ति) प्रक्रिया बन गई है।
- संविधान सभा की बहसों में भी यह तर्क दिया गया था कि यह नियुक्तियाँ संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के दो-तिहाई बहुमत से प्रधानमंत्री के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिये।
- CEC और EC के बीच अंतर: CEC और EC की स्थिति के बीच अंतर है। दोनों पदों के लिये नियुक्तियाँ उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य के अनुसार भिन्न हो सकती हैं। इसलिये नियुक्ति की प्रक्रिया में अंतर करना जो अभी भी तदर्थ आधार पर की जाती है (किसी संवैधानिक कानून की अनुपस्थिति के कारण) एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है। आयोग की स्वतंत्र कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के लिये इनकी नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
- आधारभूत योग्यता का निर्धारित ना होना: संविधान में निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की गई है।
- भविष्य में सरकार के अंतर्गत कोई अन्य पद धारित करने से नहीं रोका गया है: संविधान में सेवानिवृत्त निर्वाचन आयुक्तों को सरकार के अंतर्गत किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
- संवैधानिक द्वंद: अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा तब तक इसकी नियुक्ति की जाएगी जब तक कि इस उद्देश्य के लिये संसद द्वारा कोई कानून नहीं बनाया जाता है।
- इनकी नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के उपाय:
- स्वतंत्रता: CEC और EC के चुने जाने और हटाने की प्रक्रिया समरूप होनी चाहिये और जब तक कानून द्वारा विशेष रूप से निर्धारित नहीं किया जाता है तब तक इन्हें समान शक्तियाँ प्रदान करनी चाहिये। साथ ही ECI के खर्चों को भारत की संचित निधि पर भारित किया जाना चाहिये।
- पारदर्शिता: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश वाले तीन सदस्यीय कॉलेजियम द्वारा की जा सकती है। इससे नियुक्ति प्रक्रिया में और भी पारदर्शिता आ सकती है।
- स्वायत्तता: यहाँ तक कि निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के क्रम में निर्वाचन सुधारों (2015) पर विधि आयोग ने अपनी 255वीं रिपोर्ट में, एक चयन समिति के गठन की सिफारिश की है।
निष्कर्ष:
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की संवैधानिक जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करने लिये एक निष्पक्ष और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया की आवश्यकता है जिससे भारतीय राजनीति के इस महत्वपूर्ण स्तंभ में लोगों के विश्वास में वृद्धि होगी। निर्वाचन आयुक्तों की वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया भारत की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।
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