नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हिंदू नैतिकता के उन पहलुओं पर चर्चा कीजिये जो आधुनिक प्रशासन के लिये प्रासंगिक हैं। अपने उत्तर की पुष्टि के लिये उदाहरण दीजिये। (150 शब्द)

    24 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हिन्दू नैतिकता का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • आधुनिक नैतिकता के लिये प्रासंगिक हिंदू पहलुओं के कुछ उदाहरणों पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • वैदिक काल से शुरु होकर हिंदू नैतिकता के प्रतिमान विकास की लंबी अवधि में स्थापित हुए हैं। नैतिकता के यह प्रतिमान विभिन्न स्रोतों जैसे वेद, उपनिषद, धर्मशास्त्र, पुराण, महाकाव्य और इतिहास से संबंधित हैं।

    मुख्य भाग:

    • आधुनिक नैतिकता के लिये प्रासंगिक हिंदू पहलुओं के कुछ उदाहरण:
      • कर्त्तव्य के प्रति समर्पण:
        • भगवत गीता में कहा गया है कि मनुष्य को बिना किसी फल की इच्छा के, बिना आसक्ति और द्वेष के और बिना स्वार्थ और नकारात्मक उद्देश्यों के अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिये।
        • मानवता के कल्याण और सभी प्राणियों के कल्याण हेतु कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिये।
        • सर्वोच्च शुभ को प्राप्त करने के क्रम में मनुष्य ईश्वर के प्रति समर्पित होता है। गीता का संदेश है कि मनुष्य के जीवन का संपूर्ण आधार कर्म है। कर्म के बिना जीवन सार्थक नहीं हो सकता है। इसमें वैराग्य और निराशा से परे होकर कर्त्तव्य आधारित कर्म पर बल दिया गया है ।
      • विशेषज्ञता के अनुसार कार्य का विभाजन:
        • ऋग्वेद में मनुष्य के कार्य और स्थान को उसके वर्ण और मनोवैज्ञानिक गुणों से संलग्न किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, किसी योद्धा की मानसिकता ब्राह्मण और वैश्य से अलग होती है। यह बात कुछ अजीब लग सकती है कि किसी व्यक्ति की मानसिक विशेषताओं या मनोवैज्ञानिक प्रकृति को उसके वर्ण या पेशे से कैसे जोड़ा जा सकता है।
        • जैसा कि हम अनुभव से जानते हैं कि किसी का पेशा उसके चरित्र में प्रतिबिंबित होता है। हम इसे आधुनिक संदर्भ में मनोवैज्ञानिक प्रकृति में अंतरों के रुप में देख सकते हैं जैसे कि राजनेताओं और व्यापारियों की मनोवृत्ति अलग-अलग होती है।
      • फल की इच्छा के बिना कर्म (निष्काम कर्म):
        • गीता में फल की इच्छा के बिना कर्त्तव्यों को निभाने पर बल दिया गया है। कर्त्तव्य की भावना से लोगों को कार्य के प्रति प्रेरित होना चाहिये।
          • इसलिये लोगों को संभावित परिणामों के प्रति चिंतित न होते हुए शांत और संयमित तरीके से अपने कार्यों को करना चाहिये। कर्मों के सम्भावित परिणामों के साथ इनकी सफलता या असफलता की चिन्ता, व्यक्ति को निराशा की ओर ले जाती है।
      • भावनाओं का प्रबंधन:
        • गीता में वांछनीय सकारात्मक भावनाओं और अवांछित नकारात्मक भावनाओं पर भी चर्चा की गई है। हम इन्हें मानवीय सदगुणों और अवगुणों के प्रतिमानों के रूप में भी समझ सकते हैं। जैसे-
          • अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हमारा मन शांत और स्थिर हो।
          • हमें अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान सफलता या असफलता, खुशी या दुख, जीत या हार, लाभ या हानि और सम्मान या अपमान के बारे में चिंता से ग्रस्त नहीं होना चाहिये।
      • योग सूत्र में वर्णित नैतिकता के अनुसार सत दर्शन से आशय सत्यनिष्ठा से है जिसका तात्पर्य मन, वचन और कर्म में एकरूपता और ईमानदारी का होना है।
        • इसके साथ-साथ अस्तेय को चोरी न करने, लोभ न करने और ऋण न लेने के रुप में संदर्भित किया जा सकता है।

    निष्कर्ष:

    भगवत गीता में शामिल हिंदू नैतिकता के प्रतिमान न केवल मानव कल्याण को बढ़ावा देने में सहायक हैं बल्कि यह आधुनिक प्रशासन के ऐसे आदर्श के रुप में प्रासंगिक हैं जिन्हें सिविल सेवकों को अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान ध्यान में रखना चाहिये।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow