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प्रश्न :
अश्विनी सूद एक किसान हैं जो बिहार के सीतामढ़ी ज़िले के एक मध्यम आकार के गाँव में रहते हैं। उन्हें एक बार स्थानीय पंचायत का नेतृत्व करने के लिये भी चुना गया था। उनका एक 25 वर्षीय बेटा है- दिव्यांश। परिवार का इकलौता बेटा होने के कारण दिव्यांश को बहुत ही लाड़-प्यार मिला जिसके चलते वह बिगड़ैल हो चुका था। वह घमंडी था और हमेशा अपनी ही मर्ज़ी चलाना चाहता था और छोटी सी बात पर भी लड़ाई कर लेता था।
क्षेत्र के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक को दिव्यांश ने सिर में गोली मार दी जबकि वहाँ काफी संख्या में लोग उपस्थित थे। उसे इस मामले से बाहर निकालने के लिये किये गए विविध प्रयासों के बावजूद गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में ही रखा गया।
ज़िले के विधायक राज्य मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं तथा लंबे समय से अश्वनी के मित्र भी हैं और वर्तमान सरकार में वे काफी प्रभावशाली हैं। वर्तमान ज़िला मजिस्ट्रेट (संजीत) के मंत्री के साथ अच्छे संबंध हैं क्योंकि उन्होंने इस ज़िले में आने से पहले सचिवालय में इसी मंत्री के अधीन काम किया था और इनकी सिफारिश भी मंत्री द्वारा ही की गई थी।
बाद में ज़िले के कैबिनेट मंत्री ने संजीत से दिव्यांश को पैरोल देने की सिफारिश करने के लिये मुलाक़ात की।
मंत्री ने यह दावा नहीं किया कि दिव्यांश निर्दोष है; उनकी दलील उन परिस्थितियों तक सीमित थी जिनसे परिवार गुज़र रहा था क्योंकि हाल ही में उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी। मंत्री के अनुरोध ने संजीत के लिये कुछ कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर दी है। क्योंकि इस मंत्री ने शायद ही कभी प्रशासनिक दिनचर्या के कार्यों में हस्तक्षेप किया हो।
संजीत को क्या करना चाहिये और क्यों?
18 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- नैतिक मुद्दे की व्याख्या करते हुए अपने उत्तर को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
- मामले में शामिल विभिन्न हितधारकों के बारे में चर्चा कीजिये।
- अपनी कार्रवाई पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
इस केस स्टडी में पंचायत प्रमुख, अश्वनी द्वारा अपने कुख्यात बेटे को कैद से बचाने के लिये और पैरोल पर रिहा करने की कोशिश करने के लिये उनके राजनीतिक संबंधों और शक्ति का दुरुपयोग करने का मुद्दा शामिल था।
रूपरेखा :
- प्रकरण में शामिल हितधारक:
- अश्वनी, जो पंचायत के नेता हैं।
- दिव्यांश ,अश्वनी का बिगड़ैल बेटा है।
- विधायक, राज्य के कैबिनेट सदस्य हैं।
- संजीत, ज़िला मजिस्ट्रेट हैं।
नैतिक मुद्दे:
- निष्पक्षता: संजीत को इस मुद्दे से संबंधित किसी भी व्यक्ति का पक्ष लेने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि वह सभी के साथ समान व्यवहार करे और बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह और दुर्भावना के समान प्राथमिकताओं के साथ मुद्दों को हल करे।
- आचार संहिता: ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में संजीत की पेशेवर ज़िम्मेदारी है कि वह नियमों पालन करें, अगर वह विधायक की सलाह पर दिव्यांश को बचाने की कोशिश करता हं तो यह प्रक्रिया अखिल भारतीय सेवा के नियमों के विरुद्ध होगी ।
चयनित कार्रवाई:
- प्रथम कार्रवाई: दिव्यांश को रिहा करने के मंत्री के अनुरोध को अस्वीकार करना :
- स्पष्ट अस्वीकृति मंत्री को पसंद नहीं आ सकती है। वह सभ्य लगता है और संजीत के प्रति उसका व्यवहार भी ठीक है हालाँकि, उसे इस आचरण के संभावित परिणामों और इस संभावना से अवगत होना चाहिये कि उसे जाँच से बर्खास्त किया जा सकता है, संजीत के लिये मंत्री के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखना सही समझ है क्योंकि समझौता कराने वाला कोई अन्य व्यक्ति मामले को अपने नियंत्रण में ले सकता है। इसलिये, पहला विकल्प अवांछनीय है।
- द्वितीय कार्रवाई: मंत्री को यह बताना होगा कि इस मामले में उनका हस्तक्षेप अनुचित है:
- कार्रवाई का यह तरीका अनावश्यक रूप से अपमानजनक होगा। जन प्रतिनिधि होने के नाते मंत्रियों से विभिन्न प्रकार की सिफारिशें करने की प्रवृत्ति होती है। सिविल सेवक मामले की जाँच करने के बाद ही अपने निर्णय ले सकते हैं, हालाँकि मंत्री को यह कहकर अनावश्यक रूप से नाराज करने की कोई आवश्यकता नहीं है कि मामले में उनका हस्तक्षेप अवांछनीय है।
- तृतीय कार्रवाई: बिना किसी विस्तृत जाँच के दिव्यांश को तीन महीने की पैरोल की सिफारिश करनी होगी:
- कार्रवाई का यह तरीका अनुचित है, चूँकि यह कानून के शासन और सिविल सेवक की आचार संहिता के विरुद्ध है, अतः यह बिना किसी जाँच के दिव्यांश की पैरोल स्वीकार करने के समान है।
- चतुर्थ कार्रवाई: दिव्यांश को विभिन्न एहतियाती शर्तों के साथ केवल 10 दिनों की छोटी अवधि के लिये पैरोल की सिफारिश करनी होगी।
- अगर दिव्यांश को लंबे समय के लिये पैरोल पर रिहा किया जाता है, तो सबसे खराब स्थिति यह होगी कि वह अपने अपराधों के गवाहों को तोड़ने की कोशिश कर सकता है जैसा कि उसने पहले किया था। अगर IPC के तहत चार्जशीट पहले ही दायर नहीं की गई है तो वह जाँच को गलत दिशा दे सकता है।
- ऐसी संभावनाओं को रोकने के लिये संजीत को सावधान रहना चाहिये । दिव्यांश एक हिंदू हैं और माता-पिता को खोने के बाद उसे हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करना पड़ेगा। इसलिये, संजीत केवल दस दिनों के लिये पैरोल की सिफारिश करने के लिये सुझाव दे सकता है ताकि सामाजिक रीति-रिवाजों का पालन किया जा सके। यह निर्णय संवेदनशील होगा और मंत्री भी संतुष्ट हो जाएगा। संजीत को यह शर्त भी रखनी चाहिये कि दिव्यांश के साथ हर समय दो हथियारबंद गार्ड रहेंगे ताकि वह भाग न जाए। इसके अलावा, संजीत को वरिष्ठ पुलिस कर्मियों को यह जाँचने के लिये साधारण कपड़े पहनने के लिये भी कहना चाहिये कि दिव्यांश गवाहों के पास जा रहा है या नहीं। इस तरह से पैरोल के दस दिन शांतिपूर्ण तरीके से बीत सकते हैं।।
निष्कर्ष :
इस प्रकार, चौथी कार्रवाई संजीत की अंतिम कार्रवाई होगी, क्योंकि यह कानून के शासन के कार्यान्वयन की आवश्यकता का भी ध्यान रखेगी और समाज के बीच गलत संकेत भी नहीं देगी और इसके अलावा संजीत तथा मंत्री के संबंध भी नही बिगड़ेंगे। इसके अलावा, यह कार्रवाई न्याय के रूप में प्रतीत होगी और दिव्यांश के राजनीतिक संबंध, बाहुबल और धन बल होने के बावजूद भी उसे कोई विशेष उपचार नहीं मिलेगा, अंत में केवल कानून का ही शासन होगा।
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