वर्तमान समय में हिन्द व प्रशांत महासागर में कोरल ब्लीचिंग की घटनाओ में अत्यधिक वृद्धि हुई है। कोरल ब्लीचिंग के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए इसके रोकथाम के कुछ उपाय सुझाइये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- कोरल ब्लीचिंग का आशय
- कोरल ब्लीचिंग के कारण
- कोरल ब्लीचिंग की रोकथाम हेतु सुझाव
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जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण कोरल तनाव महसूस करते हैं तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल जूजैनथेले को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं।
हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और कैरिबियाई महासागर में कोरल ब्लीचिंग की घटनाएँ सामान्य रूप से घटित होती रही हैं परंतु वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार समुद्र के बढ़ते तापमान व अल-नीनो के कारण प्रवाल या मूंगे का बढ़े पैमाने पर क्षय हो रहा है।
कोरल ब्लीचिंग के कारण
- कोरल की वृद्धि गर्म उथले पानी में होती है, जिसे प्रचुर मात्र में प्रकाश प्राप्त होता है। हालाँकि इसकी कुछ प्रजातियाँ ठंडे व गहरे जल में भी जीवित रहती है। कुछ कोरल प्रजातियाँ गहरे व ठंडे जल में भी जीवित रहती हैं। ज्यादातर कोरल उस जल में पाए जाते हैं जो अधिकतम संभावित तापमान (जिसे यह बर्दाश्त कर सकता है) 29ºC के करीब हो। इसका अर्थ यह है कि महासागर के तापमान में मामूली वृद्धि भी कोरल को क्षति पहुँचा सकती है। अल-नीनो की घटना के द्वारा भी समुद्री तापमान में वृद्धि होती है, प्रवाल या मूंगे का क्षय होता है।
- औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप वातावरण में लगातार कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है जिसका महासागरों के द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर अवशोषण किया जाता है। इस कारण से महासागरीय जल में अम्लीयता बढ़ती है। इससे प्रवालों की कंकाल निर्माण की क्षमता घटती है और यह प्रवालों के अस्तित्व के लिये हानिकारक होता है।
- सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण कोरल ब्लीचिंग को बढ़ावा देती है।
- रासायनिक प्रदूषण और बढ़ी हुई मौलिक पोषक तत्त्वों की सांद्रता जूजैनथेली के घनत्व में वृद्धि कर देती है। इससे कोरल की रोगों के प्रति प्रतिरोधकता में कमी आती है।
- अति मत्स्यन, कृषि व औद्योगिक अपवाह का प्रदूषण, कोरल खनन, कोरल पारिस्थितिक तंत्र के आस-पास औद्योगिक गतिविधियाँ आदि भी कोरल ब्लीचिंग के प्रमुख कारण हैं।
कोरल ब्लीचिंग की रोकथाम हेतु सुझाव
- रासायनिक रूप से उन्नत उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के उपयोग को न्यून करना।
- खतरनाक औद्योगिक अपशिष्टों को जल स्रोतों में प्रवाहित करने से पहले उन्हें उपचारित करना।
- जहाँ तक संभव हो जल प्रदूषण से बचना चाहिये। रासायनों एवं तेलों को जल में नहीं बहाना चाहिये।
- अति मत्स्यन पर रोक लगानी चाहिये क्योंकि इससे प्राणी प्लवक में कमी आती है और परिणामतः कोरल भुखमरी का शिकार होते हैं।