प्रश्न. हिंदू धर्म के चार नैतिक लक्ष्य क्या हैं? उन्हें संक्षेप में बताइये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षेप में हिंदू धर्म के चार नैतिक लक्ष्यों के विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रत्येक नैतिक लक्ष्य पर स्पष्ट रूप से चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
हिंदू धर्म के अनुसार जीवन में चार प्रमुख नैतिक लक्ष्यों की अवधारणा हैं:
धर्म (नैतिक कानून), अर्थ (धन), काम (इच्छा), और मोक्ष (मोक्ष)। ये नैतिक लक्ष्य मनुष्य को एक सुखी नैतिक जीवन जीने और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं।
प्रारूप:
हिंदू धर्म के चार नैतिक लक्ष्यों को इस प्रकार समझाया गया है:
- धर्म: धर्म मानवीय जुनून, शोहरत और इच्छाओं के तर्कसंगत नियंत्रण का प्रतीक है। धर्म वह सही तरीका है जिसके माध्यम से मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत, सामाजिक और नैतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है।
- इसके अलावा, धर्म अपने रूप में सद्गुण की तरह ही अंतिम मूल्य के समान है। हिंदू धर्म का अंतिम लक्ष्य यह है कि आत्मा को भौतिक संसार के बंधनों और उसकी असंख्य समस्याओं से मुक्त किया जाए।
- अर्थ: यह कल्याण के लिये भौतिक साधनों से संबंधित है, क्योंकि मनुष्य को अपने परिवार को बनाए रखने और अपनी पूर्ण इच्छाओं को पूरा करने के लिये न्यूनतम धन की आवश्यकता होती है।
- अर्थ एक अधिग्रहणकारी समाज की जड़ में लालच का समर्थन नहीं है। यह न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करने और कलात्मक तथा सौंदर्य गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिये धन की आवश्यकता को पहचानता है।
- काम: हालाँकि काम को इच्छा के रूप में संदर्भित किया जाता है, इसे इच्छाओं की संतुष्टि से उत्पन्न होने वाली खुशी के रूप में माना जा सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि अंतहीन इच्छाओं के पीछे भागना है, बल्कि काम ऐसा होना चहिये जो परिवार के भीतर रहने वाले मनुष्यों के लिये भी आम हो।
- हिंदू नैतिकता में खुशी को धर्म या गुण के अधीन माना जाता है। नैतिक आचरण पुण्य या लाभकारी कर्म प्रभाव पैदा करता है। बुरे आचरण से पाप या बुरे कर्म प्रभाव पैदा होते हैं। पुण्य मनुष्य को स्वर्ग और पाप नर्क में ले जाता है। लेकिन अस्तित्व की ये अवस्थाएँ अनित्य प्रतीत होती हैं क्योंकि पुरुषों का पुनर्जन्म उनके पुण्य अथवा पाप संबंधी त्रुटियों के बाद होगा।
- मोक्ष: मोक्ष का अर्थ है जीव का जन्म और मरण के बन्धन से छूट जाना। यह इंद्रियों की भौतिक दुनिया या अंतरिक्ष और समय के भौतिक ब्रह्मांड के बंधनों से मुक्ति है।
- इसके अनुसार, आत्मा अपने महत्त्वपूर्ण और बौद्धिक गुणों को खो देती है जो शरीर में निवास करते समय उसके पास थे। यह शाश्वत और अमर हो जाती है।
- शंकर की व्याख्या में, आत्मा ब्रह्म में विलीन हो जाती है। यह भगवान में अनंत आनंद का एहसास कराता है।
निष्कर्ष:
चार नैतिक लक्ष्य हिंदू नैतिकता के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह एक व्यक्ति के जीवन जीने के तरीके से संबंधित है, जिसमें उसे धर्म की सीमा के भीतर सांसारिक अस्तित्व का आनंद लेना चहिये और स्वयं को मोक्ष के लिये तैयार करना चहिये।