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प्रश्न :
प्रश्न. धर्मनिरपेक्ष मामलों को नियंत्रित करने वाले निजी कानूनों में एकरूपता की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
03 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- समान नागरिक संहिता की संक्षेप में व्याख्या करते हुए परिचय दीजिये।
- नागरिक कानूनों में एकरूपता की आवश्यकता की विवेचना कीजिये।
- पर्सनल लॉ में एकरूपता के लाभों और चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
भारतीय संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निदेशक तत्त्व) के तहत अनुच्छेद 44 के अनुसार भारत के समस्त नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता होगी। इसका व्यावहारिक अर्थ है कि, भारत के सभी धर्मों के नागरिकों के लिये एक समान धर्मनिरपेक्ष कानून होना चाहिये। संविधान के संस्थापकों ने राज्य के नीति निदेशक तत्त्व के माध्यम से इसको लागू करने की ज़िम्मेदारी बाद की सरकारों को हस्तांतरित कर दी थी।
भारत में समान नागरिक संहिता की स्थिति
- वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 आदि।
- हालाँकि राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किये हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है।
- हाल ही में कई राज्यों ने एक समान रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 2019 को लागू करने से इनकार कर दिया था।
- वर्तमान में गोवा, भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ UCC लागू है।
नागरिक कानूनों में एकरूपता की आवश्यकता:
- वर्तमान कानून प्रकृति में भेदभावपूर्ण हैं: वर्तमान पर्सनल लॉ महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करते हैं, जैसे शरिया कानून एक मुस्लिम पुरुष को अपनी मौजूदा पत्नियों की सहमति के बिना चार विवाह करने की अनुमति देता है। यह पूर्ण उन्मुक्ति अन्य समुदायों के पतियों को इस्लाम में परिवर्तित करके अपनी पत्नियों को छोड़ने और कानूनी कार्यवाही से बचने में सक्षम बनाती है।
- पीढ़ीगत प्रगति: एक समकालीन भारत पूरी तरह से एक नया समाज है जिसकी 55% आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है। उनके सामाजिक दृष्टिकोण और आकांक्षाओं को समानता, मानवता और आधुनिकता के सार्वभौमिक और वैश्विक सिद्धांतों द्वारा आकार दिया गया है। किसी भी धर्म के आधार पर पहचान खोने के उनके विचार पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये ताकि राष्ट्र निर्माण की दिशा में उनकी पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सके
- राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देता है: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यूसीसी कानून के प्रति असमान निष्ठाओं को दूर करके राष्ट्रीय एकीकरण के लिये एक साधन के रूप में काम कर सकता है, जिसमें परस्पर विरोधी विचारधाराएँ हैं।
व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता का निहितार्थ:
- समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण:
- समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
- कानूनों का सरलीकरण
- समान नागरिक संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।
- धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल:
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिये।
- लैंगिक न्याय
- यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।
चुनौतियाँ
- विविध व्यक्तिगत कानून:
- विभिन्न समुदायों के बीच रीति-रिवाज़ बहुत भिन्न होते हैं।
- यह भी एक मिथक है कि हिंदू एक समान कानून द्वारा शासित होते हैं। उत्तर में निकट संबंधियों के बीच विवाह वर्जित है लेकिन दक्षिण में इसे शुभ माना जाता है।
- पर्सनल लॉ में एकरूपता का अभाव मुसलमानों और ईसाइयों के लिये भी सही है।
- संविधान द्वारा नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के स्थानीय रीति-रिवाजोंं को सुरक्षा दी गई है।
- व्यक्तिगत कानूनों की अत्यधिक विविधता (जिस भाव के साथ उनका पालन किया जाता है) किसी भी प्रकार की एकरूपता को प्राप्त करना बहुत कठिन बना देते हैं। विभिन्न समुदायों के बीच साझे विचार स्थापित करना जटिल कार्य है।
- विभिन्न समुदायों के बीच रीति-रिवाज़ बहुत भिन्न होते हैं।
- सांप्रदायिकता की राजनीति:
- कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिकता की राजनीति के संदर्भ में की जाती है।
- समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।
- संवैधानिक बाधा:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।
निष्कर्ष
परस्पर विश्वास के निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी, किंतु इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादियों के बजाय इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए। एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार विवाह, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे अलग-अलग पहलुओं को चरणबद्ध तरीके से समान नागरिक संहिता में शामिल कर सकती है।
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