प्रश्न. एक प्रभावी विवाद समाधान प्रणाली के रूप में लोक अदालत के महत्त्व पर चर्चा कीजिये? (150 शब्द)
25 Oct, 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर :
हल करने के दृष्टिकोण:
लोक अदालतों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
लोक अदालतों के संघटन और शक्ति संरचना पर चर्चा कीजिये।
विवादों को सुलझाने के लिये एक प्रभावी उपकरण के रूप में लोक अदालत के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
उचित निष्कर्ष प्रदान कीजिये।
पृष्ठभूमि:
'लोक अदालत' शब्द का अर्थ 'लोगों की अदालत' है जो गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित है और सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह प्राचीन भारत में प्रचलित न्याय व्यवस्था का एक पुराना रूप है जिसकी प्रासंगिकता आधुनिक समय में भी देखी जा सकती है।
इसके अलावा, यह वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) प्रणाली के घटकों में से एक है और आम लोगों को अनौपचारिक, सस्ता और शीघ्र न्याय प्रदान करता है।
समय के साथ इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत सांविधिक दर्ज़ा दिया गया था। इस अधिनियम के अंतर्गत लोक अदालतों के संगठन और कामकाज से संबंधित प्रावधान किया गया है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की कुल संख्या 71,411 है, लोक अदालत न्यायिक प्रणाली से दबाव को कम करने में मदद करेगी।
संगठन:
लोक अदालत का संघटन:
राज्य/ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय/तालुका विधिक सेवा समिति ऐसे अंतराल और स्थानों पर ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिये एवं ऐसे क्षेत्रों के लिये लोक अदालतों का संघटन कर सकती है जो वह उचित समझे।
किसी क्षेत्र के लिये आयोजित प्रत्येक लोक अदालत में उतनी संख्या में सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी और क्षेत्र के अन्य व्यक्ति शामिल होंगे, जैसा कि संघटन करने वाली एजेंसी द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
आम तौर पर, एक लोक अदालत में अध्यक्ष के रूप में एक न्यायिक अधिकारी और एक वकील (अधिवक्ता) और एक सामाजिक कार्यकर्ता सदस्य के रूप में होते हैं।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) अन्य कानूनी सेवा संस्थानों के साथ लोक अदालतों का भी संघटन करता है।
लोक अदालत के लाभ:
वहनीय: इसमें कोई अदालत शुल्क नहीं होता है और यदि अदालत शुल्क का भुगतान पहले ही कर दिया गया है तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा होने पर राशि वापस कर दी जाती है।
लचीली प्रक्रिया: प्रक्रियात्मक लचीलेपन के कारण विवादों का निपटारा त्वरित किया जाता है। लोक अदालत द्वारा दावे का आकलन करते समय प्रक्रियात्मक कानूनों का सख्त रूप में लागू नहीं होते है।
विवाद के पक्षकार अपने वकील के माध्यम से न्यायाधीश के साथ सीधे बातचीत कर सकते हैं जो कानून की नियमित अदालतों में संभव नहीं है।
अंतिम और बाध्यकारी निर्णय: लोक अदालत द्वारा दिया गया निर्णय दोनों पक्षों के लिये बाध्यकारी होता है और यह दीवानी न्यायालय का निर्णय होता है। यह गैर-अपीलीय है, जो अंततः विवादों के निपटारे में देरी का कारण नहीं बनता है।
सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना: लोक अदालतों का मुख्य उद्देश्य पक्षों के बीच समझौता करना होता है। कार्यवाही का संचालन करते समय, लोक अदालत एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है न कि एक निर्णायक के रूप में। इसकी भूमिका पक्षों को एक समाधान तक पहुँचने के लिये राज़ी करना और उनके विवादित मतभेदों को सुलझाने में मदद करना है।
यह सहमतिजन्य व्यवस्था को प्रोत्साहित करता है। इसलिये, विवादों को न केवल सुलझाया जाता है, बल्कि पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध भी रखा जा सकता है। इसलिये, यह विवाद समाधान का एक बहुत ही उत्तम तरीका है।
निष्कर्ष:
लोक अदालतें बड़े स्तर पर कार्य कर सकती हैं यदि लोग इसके महत्त्व और लाभों के प्रति इच्छुक और जागरूक हों। इसके अलावा, अधिक प्रावधानों और नवीन उपयोग की आवश्यकता है, जो स्थायी लोक अदालतों को सशक्त बना सके और उन लोगों के लिये मुकदमेबाजी का पूरक रूप बना दिया जाये, जो न्यायालयों का सहारा नहीं ले सकते।