संजीत ने शून्य से एक व्यवसाय शुरू किया और अब वह एक मध्यम आकार की इंजीनियरिंग कंपनी का मालिक हो गया है। कंपनी में तकनीकी निदेशक का पद खाली हो गया क्योंकि इसके पदाधिकारी ने किसी अन्य कार्यभार को संभालने के लिये त्यागपत्र दे दिया है। संजीत ने बोर्ड के समक्ष प्रस्ताव दिया कि उसके छोटे बेटे सुभाष को तकनीकी निदेशक बनाया जाना चाहिये। एक सदस्य ने खुले तौर पर प्रस्ताव का विरोध किया और सुभाष की विश्वसनीयता पर संदेह जताया। संजीत ने जवाब दिया कि उसके बेटे ने रिमोट वेस्टब्रुक तकनीकी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। सदस्य के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि रिमोट वेस्टब्रुक तकनीकी विश्वविद्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका में एक मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय है। उसने कहा कि सुभाष ने डेट्रॉइट के पास कुछ कार्यशालाओं में भी प्रशिक्षण लिया है। जब अन्य सदस्यों का भी विरोध हुआ, तो उसने निवेदन किया कि उसका स्वास्थ्य खराब है और वह चाहता हैैं कि उसके परिवार का कोई व्यक्ति उसके बहुत बीमार हो जाने पर व्यवसाय से जुड़ा रहे। इसलिये वह अपने बेटे द्वारा धारित कंपनी के शेयर के आधार पर उसे एक तकनीकी निदेशक के रूप में चुने जाने का इच्छुक हैैं।
मान लीजिये कि आप कई वर्षों से कंपनी के सचिव हैं और संजीत के विश्वासपात्र हैं। आप उसे क्या सलाह देंगे?
उत्तर :
मामले में शामिल हितधारक:
- कंपनी के मालिक के रूप में संजीत।
- संजीत का बेटा सुभाष और कंपनी के शेयरधारक।
- कंपनी का सचिव।
- कंपनी के कर्मचारी।
- कंपनी के शेयरधारक।
नैतिक मुद्दे:
- सत्यनिष्ठा की कमी: संजीत अपने बेटे सुभाष को वरिष्ठ पद पर शामिल करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि वह उसके परिवार से है।
- शक्ति/आधिकारिक पद का दुरुपयोग: कंपनी का मालिक होने के नाते यह देखना उसकी प्रमुख ज़िम्मेदारी है कि वह व्यक्तिगत हित के बजाय कंपनी के हित में संसाधनों और शक्ति का उपयोग करे।
- निष्पक्षता का अभाव: कंपनी के मालिक के रूप में, उसे सभी कर्मचारियों के साथ एक-दूसरे का पक्ष लिये बिना समान व्यवहार करना चाहिये, लेकिन अपने बेटे को दूसरों पर प्राथमिकता देने का उसका कार्य निष्पक्षता की कमी को दर्शाता है।
- कॉर्पोरेट गवर्नेंस: परिवार चलाने वाली कंपनियों के मामले में, स्वामित्व को अलग करने और हितों के टकराव से बचने की आवश्यकता है।
सचिव के पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं:
- मैं संजीत को सलाह दूँगा कि कॉर्पोरेट जीवन में स्वतंत्र निदेशकों का ऐसा विरोध आम है। सुभाष को अपनी स्थिति नहीं बदलनी चाहिये।
- मेरी सलाह है कि सुभाष को प्रारंभिक स्तर की स्थिति से शुरू करना चाहिये और फिर धीरे-धीरे आगे की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।
- मैं अनुशंसा करूँगा कि कंपनी को प्रबंधन के अनुभव के साथ एक बुजुर्ग टेक्नोक्रेट नियुक्त करना चाहिये जो सेवानिवृत्ति के करीब है और उन्हें सुभाष को तैयार करने के लिये विशिष्ट मिशन के साथ नियुक्त किया जाना चाहिये।
- मैं संजीत को सुझाव दूँगा कि वह इस मामले से दूर रहे और सुभाष को कंपनी में शामिल करने के फैसले को टाल दें क्योंकि पारिवारिक मामलों में लोग तर्क पर ध्यान नहीं देते हैं।
एक सचिव के रूप में मुझे कंपनी के हित में कार्य करने की आवश्यकता है। संजीत को खुश रखना मेरे करियर की उन्नति के लिये महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन जाहिर तौर पर स्वतंत्र निदेशकों की राय को अनदेखा करना एक समझदारी भरा तरीका नहीं है। प्रमोटर के हितों और कंपनी के मामलों को नियंत्रित नहीं कर रहे अन्य शेयरधारकों के हितों को संतुलित करने के उद्देश्य से स्वतंत्र निदेशकों की आवश्यकता होती है। सचिव को स्वतंत्र निदेशकों की बहुमूल्य राय पर ध्यान देने की आवश्यकता है। जाहिर है, सुभाष के पास प्रबंधन के उस स्तर से शुरू करने के लिये अपेक्षित अनुभव और यहाँ तक कि शिक्षा भी नहीं है। यहाँ ठीक यही मुद्दा है।
इसके अलावा, संजीत एक समय सीमा में ठोस परिणाम देखना चाहेगा क्योंकि उसका स्वास्थ्य सही नहीं है और परिवार से उत्तराधिकारी पाने के लिये उत्सुक है। यह विकल्प कुछ अस्पष्ट है क्योंकि सुभाष को ऊपर तक पहुँचने में काफी समय लग सकता है। यह विकल्प स्थिति की मांग के अनुरूप नहीं है।
कार्रवाई :
- इसमें कोई शक नहीं कि संजीत व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं। हालाँकि यह मामला पूरी कंपनी को प्रभावित करता है। चूँकि संजीत का कंपनी में नियंत्रण है और उसका स्वास्थ्य खराब है, इसलिये उत्तराधिकार की चिंता समझ में आती है। उस स्थिति में अच्छी सलाह का निश्चित रूप से मूल्य होता है। यदि सचिव उस सलाह को देने से कतराता है, तो वह अपने कर्तव्य में विफल होगा। वह न तो कंपनी के लिये और न ही संजीत के लिये अजनबी है। वह मूक दर्शक बने रहने का जोखिम नहीं उठा सकता।
- मेरे द्वारा सुझाया गया कदम यह होगा कि जब कंपनी अच्छे अनुभव और परिपक्वतावाले कर्मचारी को नियुक्त करती है, तो इसके मौजूदा संचालन को नुकसान नहीं होगा। चूँकि पहले वाला कर्मचारी सेवानिवृत्ति के करीब है, इसलिये वह अपने करियर का विस्तार करने की कोशिश नहीं करेगा, बल्कि ईमानदारी से सुभाष को तैयार करेगा। करीब दो साल में सुभाष को अनुभवी बनाना संभव होगा। उसके बाद सुभाष बड़ी ज़िम्मेदारी संभाल सकता है। यदि सेवानिवृत्त होने वाला कर्मचारी अभी भी कुछ और समय के लिये जारी रखना चाहता है, तो उसे कोई सलाहकार पद दिया जा सकता है, जहाँ से वह सुभाष का समर्थन भी कर सकता है। यह कार्रवाई का व्यावहारिक तरीका है।