20 Oct, 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
सद्गुण को संक्षेप में समझाकर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
सद्गुण के सिद्धांत पर चर्चा कीजिये।
सद्गुण पर सुकरात, प्लेटो और अरस्तू द्वारा दिये गए विचारों की चर्चा कीजिये।
उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
नैतिक कर्तव्यों या विशेष कार्यों के परिणामों से पृथक्क सद्गुण को किसी कार्य को करने वाले व्यक्ति के नैतिक चरित्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
दयालुता का गुण रखने वाला व्यक्ति दूसरों के प्रति दया व्यवहार करेगा। वह मुख्य रूप से इसलिये कार्य नहीं करेगा क्योंकि वह सोचता है कि ऐसा करना उसका कर्तव्य है या दयालुता का कार्य करने से समाज में अधिकतम उपयोगिता होगी। वह दयालुता से कार्य करता है क्योंकि उसके पास दया का गुण है।
प्रारूप:
सद्गुण सिद्धांत: सद्गुण का सिद्धांत नैतिक गुणों और गैर-नैतिक गुणों के बीच अंतर करता है। नैतिक गुणों में दया, परोपकार, करुणा, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और कृतज्ञता शामिल हैं। गैर-नैतिक गुणों के उदाहरण आत्म-संयम, धैर्य, साहस, धीरज, दृढ़ता आदि हैं। अनैतिक उद्देश्यों के लिये गैर-नैतिक गुणों का उपयोग किया जा सकता है।
सुकरात के अनुसार सद्गुण ही ज्ञान है क्योंकि सद्गुण के माध्यम से आप अपना जीवन सर्वोत्तम तरीके से जी सकते हैं। स्वयं के सद्गुण के महत्त्व को समझाते हुए वह कहते हैं- “मैं आपसे आग्रह करने के अलावा और कुछ नहीं कहता हूँ कि आत्माओं की सिद्धता से ज़्यादा अपने व्यक्तियों या संपत्ति की परवाह न करें और मैं आपको बताता हूँ कि सद्गुण धन से प्राप्त नहीं होता है, बल्कि सद्गुण स्वयं व्यक्ति और राज्य दोनों के लिये धन तथा अन्य सभी हितों का स्रोत है"।
इसके अलावा, प्लेटो ने अपने सद्गुण के सिद्धांत द्वारा सद्गुण की व्याख्या की, जो कि सुकरात के सिद्धांत से प्रेरित है, क्योंकि वह ज्ञान के साथ सद्गुण की पहचान करता है। उनके अनुसार, सद्गुण सिखाने योग्य है और मनुष्य नैतिकता को उसी तरह सीख सकता हैै जैसे वह किसी अन्य विषय को सीखता है।
प्लेटो के सद्गुण के सिद्धांत के अनुसार, वह नैतिकता को 4 सद्गुणों में विभाजित करता है और उन्हें आत्मा के विभिन्न भागों से जोड़ता है।
चार गुण- ज्ञान या विवेक, साहस, संयम और न्याय है।
अरस्तू को सद्गुण नैतिकता का पहला व्यवस्थित प्रस्तावक माना जाता है और उनके अनुसार सद्गुण को चरित्र की उत्कृष्टता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो किसी को नैतिक रूप से कार्य करने के लिये प्रेरित करता है।
अरस्तू की नैतिकता के मुख्य तत्त्वों में निम्नलिखित शामिल हैं:
मानव का उद्देश्य 'यूडिमोनिया' प्राप्त करना होना चाहिये जिसे खुशी या उत्कर्ष के रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है।
सामाजिक प्राणी के रूप में पुरुष समुदायों में रहकर इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
तर्कसंगत प्राणियों के रूप में पुरुषों को तर्कपूर्ण जीवन जीना पड़ता है।
ऐसे जीवन में नैतिक गुणों और बौद्धिक गुणों में सुधार की आवश्यकता होती है। इसमें निरंतर अभ्यास शामिल है।
सद्गुण दो चरम सीमाओं के बीच एक स्वर्णिम माध्यम है और इसे व्यावहारिक ज्ञान के माध्यम से पाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
सुकरात के अनुसार सद्गुण सिखाने योग्य है और जो गलत काम करते हैं उन्हें ज्ञान नहीं होता है, वे अज्ञानी होते हैं। ज्ञान रूपी संपत्ति वाला मनुष्य खुद को नुकसान नहीं पहुँचा सकता है और जीवन को सर्वोत्तम तरीके से जीना चाहता है। सद्गुण सहित ज्ञान अपने आप में पूर्ण और आत्मनिर्भर है।