प्रश्न- उन भारतीय संतों की चर्चा कीजिये, जो पश्चिमी विचारों से अछूते होते हुए भी प्रगतिशील आधुनिक दृष्टिकोण दिखाते हैं। (150 शब्द)।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पाश्चात्य विचारों की संक्षेप में चर्चा कीजिये।
- भारतीय संस्कृति से समझौता किये बिना आधुनिक विचारों का प्रचार करने वाले कम से कम दो भारतीय संतों की चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त रूप से निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
पश्चिमी विचार शब्द का उपयोग यूरोप के साथ कुछ मूल या उससे संबंधित सामाजिक मानदंडों, नैतिक मूल्यों, पारंपरिक रीति-रिवाजों, विश्वास प्रणालियों, राजनीतिक प्रणालियों और विशिष्ट कलाकृतियों तथा प्रौद्योगिकियों की विरासत को संदर्भित करने के लिये किया जाता है।
प्रारूप:
आधुनिक दृष्टिकोण वाले भारतीय संत:
स्वामी विवेकानंद:
- उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से पश्चिमी दुनिया को परिचित कराया और 19 वीं शताब्दी के अंत में हिंदू धर्म को विश्व मंच पर लाने के लिये अंतर-जागरूकता बढ़ाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है।
- उन्होंने 1987 में अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। संस्था ने भारत में व्यापक शैक्षिक और परोपकारी कार्य किये।
स्वामी विवेकानंद के दर्शन के मूल मूल्य:
नैतिकता
- व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन दोनों में नैतिकता अधिकतर सामाजिक निंदा के डर पर आधारित है।
- लेकिन विवेकानंद ने आत्मा की आंतरिक शुद्धता और एकता के आधार पर नैतिकता का एक नया सिद्धांत दिया।
- विवेकानंद के अनुसार नैतिकता एक आचार संहिता के अलावा और कुछ नहीं है जो एक आदमी को एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है।
- हमें आंतरिक रूप से पवित्र होना चाहिये क्योंकि पवित्रता ही हमारा वास्तविक स्वरूप है, हमारी सच्ची आत्मा है।
- इसी तरह, हमें अपने पड़ोसियों के साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिये और सबकी सहायता करनी चाहिये क्योंकि हम सभी परमात्मा या ब्रह्म के नाम से जाने जाने वाले सर्वोच्च आत्मा में एक हैं।
तर्कसंगतता:
- उन्होंने विश्वास के पक्ष में तर्क को नहीं छोड़ा।
- उन्होंने अंतरात्मा या प्रेरणा को तर्क से अधिक महत्त्वपूर्ण माना। लेकिन अंतरात्मा से प्राप्त सत्य को तर्क द्वारा समझाया और व्यवस्थित किया जाना था।
बुद्ध:
बौद्ध दर्शन के मूल मूल्य:
- बौद्ध नैतिकता किसी कार्रवाई की अच्छाई या बुराई का आकलन उस इरादे या प्रेरणा के आधार पर करती है जिससे यह उत्पन्न होता है।
- बुद्ध के दर्शन का दूसरा प्रमुख विचार ‘मध्यम मार्ग’ के नाम से जाना जाता है। सूक्ष्म दार्शनिक स्तर पर तो इसका अर्थ कुछ भिन्न है, किंतु लौकिकता के स्तर पर इसका अभिप्राय सिर्फ इतना है कि किसी भी प्रकार के अतिवादी व्यवहार से बचना चाहिये।
- सही दृष्टिकोण और इरादे नैतिक आचरण के मार्गदर्शक हैं तथा इनसे मानव सही बातचीत, सही कार्रवाई, सही आजीविका और सही प्रयास की ओर उन्मुख होता है।
मुख्य शिक्षाएँ:
चार महान सत्य:
(1) दुःख अर्थात् संसार दुःखमय है।
(2) दुःख-समुदय अर्थात् दुःखों का कारण भी हैं।
(3) दुःख-निरोध अर्थात् दुःखों का अन्त सम्भव है।
(4) इसे अथंगा मग्गा (आष्टांगिक मार्ग) का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है।
आष्टांगिक मार्ग
- सम्यक दृष्टि
- सम्यक संकल्प
- सम्यक वाणी
- सम्यक कर्मांत
- सम्यक आजीविका
- सम्यक व्यायाम
- सम्यक स्मृति
- सम्यक समाधि
निष्कर्ष:
- स्वामी विवेकानंद 19वीं शताब्दी के थे, फिर भी उनका संदेश और उनका जीवन अतीत की तुलना में आज अधिक प्रासंगिक है और शायद भविष्य में भी अधिक प्रासंगिक होगा।
- बौद्ध शिक्षाएँ मनुष्यों में करुणा, शांति और स्थिरता तथा आनंद उत्पन्न करती हैं और वे मनुष्य एवं प्रकृति के बीच एक स्थायी संतुलन बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।
- बुद्ध की शिक्षा का अंतिम लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति थी जो एक अनुभव था और इस जीवन में प्राप्त किया जा सकता था।