प्रश्न. "पराली जलाने से चारा नष्ट होता है, वायु प्रदूषित होती है, श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं और ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि होती है"। इस कथन के आलोक में भारत में पराली जलाने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये और आगे की राह सुझाइये। (250 शब्द)
17 Oct, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण
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परिचय
पराली दहन, अगली फसल बोने के लिये फसल के अवशेषों को खेत में आग लगाने की क्रिया है।
इसी क्रम में सर्दियों की फसल (रबी की फसल) की बुवाई हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा कम अंतराल पर की जाती है तथा अगर सर्दी की छोटी अवधि के कारण फसल बुवाई में देरी होती है तो उन्हें काफी नुकसान हो सकता है, इसलिये पराली दहन पराली की समस्या का सबसे सस्ता और तीव्र तरीका है।
पराली दहन की यह प्रक्रिया अक्तूबर के आसपास शुरू होती है और नवंबर में अपने चरम पर होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी का समय भी है।
पराली दहन का प्रभाव:
पराली जलाने से निपटने के लिये सरकार की पहल:
निष्कर्ष:
जैसा कि हम जानते हैं, पराली दहन से उपयोगी कच्चा माल नष्ट हो जाता है, वायु प्रदूषित हो जाती है, श्वसन संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ जाता है। इसलिये समय की मांग है कि पराली का पशु आहार के रूप में रचनात्मक उपयोग किया जाए तथा टर्बो-हैप्पी सीडर मशीन एवं बायो-डीकंपोज़र आदि जैसे विभिन्न विकल्पों को सक्षम करके प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाए।