प्रश्न. गांधीवादी नैतिकता से आप क्या समझते हैं? विभिन्न संघर्षों के समाधान में गांधीवादी नैतिकता की भूमिका की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- गांधीवादी नैतिकता पर कुछ पंक्तियाँ लिखकर परिचय दीजिये।
- गांधीवादी नैतिकता के प्रमुख सिद्धांतों की व्याख्या कीजिये।
- संघर्ष समाधान में गांधीवादी नैतिकता की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
गांधीवादी दर्शन एक दोधारी तलवार है जिसका उद्देश्य सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार व्यक्ति और समाज को एक साथ बदलना है। गांधीजी ने इन विचारधाराओं को विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों जैसे- भगवद्गीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से विकसित किया।
गांधीवादी विचार को नैतिकता से पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता। उनके विचार आमतौर पर नैतिक श्रेणियों या शब्दावली में व्यक्त किये जाते हैं। नैतिक सिद्धांत किसी भी क्षेत्र में गांधीवादी विचारों के लिये आधार प्रदान करते हैं।
प्रारूप
गांधीवादी नैतिकता के महत्त्वपूर्ण सिद्धांत:
- सत्याग्रह: यह सत्य की निरंतर प्राप्ति है। इसमें मुख्य रूप से आत्म-बलिदान, शांति और अहिंसा शामिल हैं। केवल इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प वाला व्यक्ति ही सत्याग्रह का पालन कर सकता है।
- ट्रस्टीशिप: यह अमीर लोगों को एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है जिसके द्वारा वे गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें।
- साध्य और साधन: गांधी ने हमेशा साधनों की शुद्धता पर जोर दिया। उचित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अनुचित साधनों को नहीं अपनाया जा सकता है। क्योंकि गलत रास्ता आपको सही मंजिल तक नहीं ले जा सकता।
- सात पापों की अवधारणा: परिश्रम के बिना संपत्ति, विवेक के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवता के बिना विज्ञान, त्याग के बिना धर्म, सिद्धांत के बिना राजनीति समाज में सात पाप हैं जिन्हें सुधारा जाना चाहिये।
- सर्वोदय: सर्वोदय शब्द का अर्थ है 'यूनिवर्सल उत्थान' या 'सभी की प्रगति'। समावेश से समाज की कई बुराइयों को दूर किया जा सकता है।
- श्रम की गरिमा: गांधी ने सभी के लिये रोटी हेतु श्रम को अनिवार्य बनाकर सभी के बीच समानता स्थापित करने का प्रयास किया।
संघर्ष समाधान में गांधीवादी नैतिकता की भूमिका:
- संघर्ष समाधान की गांधीवादी तकनीक सत्याग्रह पर आधारित है जिसकी व्याख्या निष्क्रिय प्रतिरोध, अहिंसक प्रतिरोध आदि के रूप में की गई है। गांधी के अनुसार सत्याग्रह सत्य पर कायम है।
- एक सत्याग्रही को ऐसी स्वतंत्रता प्राप्त है जो दूसरों के लिये संभव नहीं है, क्योंकि वह वास्तव में एक निडर व्यक्ति बन जाता है। एक बार उसका मन भय से मुक्त हो गया, तो वह कभी भी दूसरे का गुलाम बनने के लिये सहमत नहीं होगा। मन की इस स्थिति को प्राप्त करने के बाद वह कभी भी किसी भी मनमानी कार्रवाई के अधीन नहीं होगा।
- सत्याग्रह संघर्ष समाधान की एक विधि से कहीं अधिक है जो वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित है। यह वास्तव में एक नैतिक प्रणाली है जो व्यक्तियों के बीच संबंधों की गुणवत्ता पर अत्यधिक ज़ोर देती है।
- गांधीवादी नैतिकता के अनुसार संघर्ष समाधान के लिये परिणाम के साथ पारस्परिक संतुष्टि की भावना पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
- संघर्ष समाधान की प्रक्रिया में अहिंसक कार्रवाई सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है। अहिंसक कार्रवाई की तकनीक शारीरिक हिंसा के बिना विरोध, प्रतिरोध और हस्तक्षेप करती है।
निष्कर्ष:
आज के विश्व में संघर्ष जटिल हैं और इसमें शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक हिंसक उपकरणों का उपयोग शामिल है। गांधीवादी दृष्टिकोण व्यक्तिगत स्तर पर संघर्ष को संबोधित करता है। आधुनिक जटिल संघर्ष समाधान में गांधी का दृष्टिकोण अभी भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है और इसे वर्तमान में पुनः अपनाने की आवश्यकता है।