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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. पर्यावरणीय नैतिकता से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित समझाइये। (150 शब्द)

    13 Oct, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पर्यावरण नैतिकता के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिये।
    • पर्यावरण नैतिकता के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • पर्यावरण नैतिकता से संबंधित विभिन्न उदाहरणों के बारे में बताइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय :

    • पर्यावरणीय नीतिशास्त्र व्यावहारिक दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जिसके अंतर्गत आस-पास के पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित नैतिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात् मनुष्य एवं पर्यावरण के आपसी संबंधों का नैतिकता के सिद्धांतों एवं नैतिक मूल्यों के आलोक में अध्ययन किया जाता है

    प्रारूप:

    • पर्यावरणीय नैतिकता का महत्त्व:
      • पारिस्थितिक तंत्र के बिगड़ने और पर्यावरण की बदतर स्थिति को देखते हुए मनुष्यों ने महसूस किया है कि वे केवल आर्थिक, तकनीकी और न्यायिक साधनों से पर्यावरण प्रदूषण और पारिस्थितिक असंतुलन को ठीक नहीं कर सकते हैं। इसलिये हमारे पर्यावरण में मनुष्यों और अन्य प्राणियों के साथ समान व्यवहार यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • पर्यावरणीय नैतिकता के उदाहरण:
      • पर्यावरण बनाम विकास:
        • 1950 के दशक के दौरान दुनिया की आबादी लगभग 2.5 बिलियन बताई गई थी। वर्ष 2050 तक इसके नौ से 10 अरब के बीच होने की उम्मीद है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, बढ़ती मांग को समायोजित करने के लिये अवसंरचना विकास आवश्यक है, जिसका एक बड़ा बोझ पर्यावरण पर पड़ेगा। अधिकतर, विकास पर्यावरण की कीमत पर होता है
        • पर्यावरण के प्रति लापरवाह विकास और अज्ञानता ने अब मानव जाति के लिये नैतिक मुद्दों को उठाया है। आने वाली और युवा पीढ़ी जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे कम जिम्मेदार हैं, फिर भी वे इसके प्रभाव का सबसे बड़ा बोझ उठाएंगे।
      • पर्यावरणीय नैतिकता के संबंध में नीतिगत पहल:
        • पर्यावरण को अब एक ऐसे क्षेत्र के रूप में नहीं माना जाता है जिसे विशेष रूप से पर्यावरण संस्थाओं द्वारा प्रबंधित किया जाता है, बल्कि इसे विभिन्न नीति क्षेत्रों में शामिल किया जाता है जिसमें ऊर्जा, परिवहन, कृषि, उद्योग या व्यापार क्षेत्र शामिल हैं।
        • उदाहरण के लिये, भारत में, विकास और पर्यावरण को संतुलित करने के लिये, नीति निर्माताओं ने एनजीटी, केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड, राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण और कई अन्य संस्थानों की स्थापना की है।
      • पर्यावरण नैतिकता और सतत् विकास:
        • सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिये विकास और पर्यावरण के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना प्रमुख कारक है।
        • सतत् विकास का तात्पर्य जनसंख्या, संसाधनों, पर्यावरण और विकास के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों पर जोर देने के साथ मानव-पर्यावरण अन्योन्यक्रिया तथा अंतर-पीढ़ी की जिम्मेदारी के मध्य सामंजस्य है।
        • सतत् विकास की दिशा में पर्यावरणीय नैतिकता की भूमिका यह है कि यह न केवल जनसंख्या, संसाधन, पर्यावरण और आर्थिक विकास के संबंधों में सामंजस्य स्थापित करता है, बल्कि व्यवहार चयन को भी निर्देशित करता है, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन को आगे बढ़ाता है, कानूनी प्रणाली को मज़बूत करता है और पर्यावरण के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाता है।
      • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA):
        • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को निर्णय लेने से पूर्व किसी परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
        • खनन, थर्मल पावर प्लांट, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना (सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह और हवाई अड्डे) जैसी परियोजनाओं तथा बहुत छोटे इलेक्ट्रोप्लेटिंग या फाउंड्री इकाइयों सहित विभिन्न छोटे उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
        • ईआईए यह सुनिश्चित करता है कि विकास योजना पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ हो और पारिस्थितिकी तंत्र को आत्मसात करने और पुनर्जनन की क्षमता की सीमा के भीतर हो।
      • जलवायु नैतिकता:
        • जलवायु नैतिकता अनुसंधान का एक क्षेत्र है जो जलवायु परिवर्तन के नैतिक आयामों (जिसे ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी जाना जाता है) पर केंद्रित है।
        • उत्तर भारत में हाल ही में लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव या असम में अभूतपूर्व भूस्खलन के साथ विनाशकारी बाढ़ भारत में जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम हैं।

    निष्कर्ष:

    जहाँ दुनिया विचारधारा, राष्ट्र-राज्यों, धर्म, भाषा आदि के आधार पर विभाजित है, वहीं पर्यावरण नैतिकता ने इस विभाजित दुनिया को एकजुट किया है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, मरुस्थलीकरण आदि से उत्पन्न चुनौतियाँ किसी भी सीमा के बावजूद लोगों को प्रभावित करती हैं, इसलिये इसके लिये एक एकीकृत प्रयास की आवश्यकता है।

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