प्रश्न. भारत में चीनी उद्योग के सामने आने वाली समस्याओं की व्याख्या करते हुए, सरकार द्वारा इसे समर्थन देने के लिये किये गए उपायों के बारे में बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत भारत में चीनी उद्योग को संक्षेप में समझाकर कीजिये।
- चीनी उद्योग में निहित समस्याओं का वर्णन कीजिये।
- चीनी उद्योग के संबंध में विभिन्न सरकारी पहलों का वर्णन कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भले ही भारत ब्राज़ील को पछाड़कर दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया हो, लेकिन चीनी क्षेत्र विभिन्न कारणों से मुश्किलों से जूझ रहा है।
चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
चीनी उद्योग कपास के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है।
- भारत में गन्ना उद्योग से संबंधित मुद्दे:
- अनिश्चित उत्पादन निर्गत: गन्ने को कई अन्य खाद्य और नकदी फसलों, जैसे- कपास, तिलहन, चावल इत्यादि से प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है। इससे मिलों को गन्ने की आपूर्ति प्रभावित होती है और चीनी का उत्पादन भी साल-दर-साल बदलता रहता है जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है। कम कीमतों के कारण अतिरिक्त उत्पादन के समय में चीनी मिलों को नुकसान उठाना पड़ता है।
- गन्ने की कम उपज: दुनिया के कुछ प्रमुख गन्ना उत्पादक देशों की तुलना में भारत में प्रति हेक्टेयर उपज बेहद कम है। उदाहरण के लिये जावा में 90 टन प्रति हेक्टेयर और हवाई में 121 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में भारत की उपज केवल 64.5 टन/ हेक्टेयर है।
- लघु पेराई अवधि: चीनी उत्पादन एक मौसमी उद्योग है जिसमें एक वर्ष में सामान्य रूप से 4 से 7 महीने की छोटी पेराई अवधि होती है।
- यह श्रमिकों के वित्तीय नुकसान और मौसमी रोज़गार के साथ चीनी मिलों के पूर्ण उपयोग न होने का कारण बनता है।
- चीनी की कम रिकवरी दर: भारत में गन्ने से चीनी की औसत रिकवरी दर 10% से कम है जो अन्य प्रमुख चीनी उत्पादक देशों की तुलना में काफी कम है।
- उत्पादन की उच्च लागत: गन्ने की उच्च लागत, अकुशल तकनीक, उत्पादन की अनौपचारिक प्रक्रिया और भारी उत्पाद शुल्क के कारण विनिर्माण की लागत बढ़ जाती है।
- भारत में अधिकांश चीनी मिलें छोटे आकार की हैं जिनकी पेराई क्षमता 1,000 से 1,500 टन प्रतिदिन है जिससे यह उचित लाभ उठाने में विफल रहती हैं।
सरकार द्वारा की गई पहलें
- इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहन: सरकार ने चीनी मिलों को चीनी को इथेनॉल में बदलने और अधिशेष चीनी का निर्यात करने के लिये प्रोत्साहित किया है ताकि मिलों के परिचालन जारी रखने के लिये उनकी बेहतर वित्तीय स्थिति हो।
- इसके अलावा तेज़ी से भुगतान, कम कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं और मिलों में अतिरिक्त चीनी की कमी के कारण कम नकदी ब्लॉकेज के कारण चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है।
- उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and remunerative price-FRP): FRP वह न्यूनतम मूल्य है जो चीनी मिलों को गन्ना किसानों को गन्ने की खरीद के लिये चुकानी पड़ती है। यह कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices-CACP) की सिफारिशों के आधार पर तथा राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के परामर्श के बाद निर्धारित किया जाता है।
- राज्य की सलाह का महत्त्व: हालाँकि केंद्र सरकार FRP तय करती है, राज्य सरकारें एक राज्य सलाहकारी मूल्य भी निर्धारित कर सकती हैं जो चीनी मिल को किसानों को चुकानी पड़ती है।
- चीनी उद्योग के नियमन पर सिफारिशें देने के लिये रंगराजन समिति (2012) द्वारा दी गई सिफारिशें:
- चीनी के निर्यात और आयात पर मात्रात्मक नियंत्रण को समाप्त करने के लिये इन्हें उचित टैरिफ द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
- उप-उत्पादों की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिये और कीमतें बाज़ार निर्धारित होनी चाहिये।
- मिलों को खोई से उत्पन्न विद्युत का उपयोग करने की अनुमति देने के लिये राज्यों को नीतिगत सुधार भी करने चाहिये।
निष्कर्ष:
सरकार को विभिन्न प्रस्तावों पर काम करने की आवश्यकता है ताकि समर्पित रूप से भारत चीनी की मातृभूमि के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त करने में सक्षम हो सके।