प्रश्न. सांप्रदायिकता के प्रसार के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत साम्प्रदायिकता के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
- साम्प्रदायिकता के प्रसार के लिये उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिये।
- सांप्रदायिकता से निपटने के उपायों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
सांप्रदायिकता एक विचारधारा है जिसके अनुसार कोई समाज भिन्न-भिन्न हितों से युक्त विभिन्न धार्मिक समुदायों में विभाजित होता है।
सांप्रदायिकता से तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है, जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर पूरे समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध व्यक्ति को केवल अपने व्यक्तिगत धर्म के हितों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें संरक्षण देने की भावना को महत्त्व देती है।
एक समुदाय या धर्म के लोगों द्वारा दूसरे समुदाय या धर्म के विरुद्ध किये गए शत्रुभाव को सांप्रदायकिता के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
सांप्रदायिकता के कारण:
वर्तमान परिदृश्य में सांप्रदायिकता की उत्पत्ति के लिये किसी एक कारण को पूर्णत: ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि यह विभिन्न कारणों का एक मिला-जुला रूप बन गया है। सांप्रदायिकता के लिये ज़िम्मेदार कुछ महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं-
राजनीतिक कारण:
- वर्तमान समय में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने राजनीतिक लाभों की पूर्ति के लिये सांप्रदायिकता का सहारा लिया जाता है।
- एक प्रक्रिया के रूप में राजनीति का सांप्रदायिकरण भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ देश में सांप्रदायिक हिंसा की तीव्रता को बढ़ाता है।
आर्थिक कारण:
- विकास का असमान स्तर, वर्ग विभाजन, गरीबी और बेरोज़गारी आदि कारक सामान्य लोगों में असुरक्षा का भाव उत्पन्न करते हैं।
- असुरक्षा की भावना के चलते लोगों का सरकार पर विश्वास कम हो जाता है परिणामस्वरूप अपनी ज़रूरतों/हितों को पूरा करने के लिये लोगों द्वारा विभिन्न राजनीतिक दलों, जिनका गठन सांप्रदायिक आधार पर हुआ है, का सहारा लिया जाता है।
प्रशासनिक कारण:
- पुलिस एवं अन्य प्रशासनिक इकाइयों के बीच समन्वय की कमी।
- कभी-कभी पुलिस कर्मियों को उचित प्रशिक्षण प्राप्त न होना, पुलिस ज़्यादती इत्यादि भी सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले कारकों में शामिल होते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण:
- दो समुदायों के बीच विश्वास और आपसी समझ की कमी या एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के सदस्यों का उत्पीड़न,आदि के कारण उनमें भय, शंका और खतरे का भाव उत्पन्न होता है।
- इस मनोवैज्ञानिक भय के कारण लोगों के बीच विवाद, एक-दूसरे के प्रति नफरत, क्रोध और भय का माहौल पैदा होता है।
मीडिया संबंधी कारण:
- मिडिया द्वारा अक्सर सनसनीखेज आरोप लगाना तथा अफवाहों को समाचार के रूप में प्रसारित करना।
- इसका परिणाम कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी धार्मिक समूहों के बीच तनाव और दंगों के रूप में देखने को मिलता है।
- वहीं सोशल मीडिया भी देश के किसी भी हिस्से में सांप्रदायिक तनाव या दंगों से संबंधित संदेश को फैलाने का एक सशक्त माध्यम बन गया है।
समाधान:
- वर्तमान आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार करने के साथ-साथ, शीघ्र परीक्षणों और पीड़ितों को पर्याप्त मुआवज़ा दिये जाने की आवश्यकता है, जो पीड़ितों के लिये निवारक के रूप में कार्य कर सके।
- शांति, अहिंसा, करुणा, धर्मनिरपेक्षता और मानवतावाद के मूल्यों के साथ-साथ वैज्ञानिकता (एक मौलिक कर्त्तव्य के रूप में निहित) और तर्कसंगतता के आधार पर स्कूलों और कॉलेजों / विश्वविद्यालयों में बच्चों के उत्कृष्ट मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करने, के मूल्य-उन्मुख शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता है जो सांप्रदायिक भावनाओं को रोकने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
- सांप्रदायिक दंगों को रोकने हेतु प्रशासन के लिये संहिताबद्ध दिशा-निर्देश जारी कर तथा, पुलिस बल के लिये विशेष प्रशिक्षण साथ ही, जाँच और अभियोजन एजेंसियों का गठन कर सांप्रदायिकता के कारण होने वाली हिंसक घटनाओं में कमी की जा सकती है।
- सरकार, नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों को सांप्रदायिकता के खिलाफ जागरूकता के प्रसार में मदद करने वाली परियोजनाओं को चलाने के लिये उन्हें प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान कर सकती है, ताकि आने वाली पीढ़ियों में मजबूत सांप्रदायिक सद्भाव के मूल्यों का निर्माण किया जा सके और इस प्रकार एक बेहतर समाज का निर्माण करने में मदद मिल सकती है ।
- सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिये मज़बूत कानून की आवश्यकता होती है।अत: सांप्रदायिक हिंसा (रोकथाम, नियंत्रण और पीड़ितों का पुनर्वास) विधेयक, 2005 को मज़बूती के साथ लागू करने की आवश्यकता है।
- साथ ही बिना किसी भेदभाव के युवाओं की शिक्षा एवं बेरोज़गारी की समस्या का उन्मूलन किये जाने की आवश्यकता है ताकि एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सके।
निष्कर्ष
साम्प्रदायिकता न केवल एक व्यक्ति के लिये खतरनाक है बल्कि यह पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये एक गंभीर खतरा है। इस प्रकार, सांप्रदायिकता का उन्मूलन आज के समय की आवश्यकता है।