रोहित ने, सरकार को उपलब्ध कराए गए सामान के बिलों का तेज़ी से भुगतान करके एक व्यापारी की मदद की है। चूँकि भुगतान बड़ा था ऐसे में रोहित की मदद ने व्यापारी को नकदी की कमी से बचने में सक्षम बनाया। व्यापारी इतना प्रभावित हुआ कि उसने रोहित को अपनी कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में उपहार भेजे। रोहित ने उन्हें लेने से मना कर दिया। इसके तुरंत बाद, रोहित अपने परिवार के साथ एक हिल स्टेशन जाता है जहाँ उस व्यवसायी का एक होटल है। वह व्यापारी को पहले ही बता देता है कि वह उसके होटल में रुकना चाहता है और उसी होटल में चेक इन भी करता है। होटल प्रबंधन, व्यवसायी के निर्देश पर, रोहित और उसके परिवार के साथ मेहमानों जैसा व्यवहार करता है और रोहित से भुगतान स्वीकार करने से भी इनकार कर देता है। यहाँ तक कि रोहित भी भुगतान करने की बहुत ज़िद नहीं करता है।
प्रश्न 1. मामले में शामिल नैतिक मुद्दों एवं दुविधाओं पर चर्चा कीजिये।
प्रश्न 2. यदि आप रोहित के स्थान पर होते तो आप कैसा व्यवहार करते? उन उपायों का सुझाव दीजिये जो आप अपनाते।
उत्तर :
ऊपर दिया गया मामला सार्वजनिक विभागों के कामकाज में प्रक्रियाओं में देरी की समस्या को दर्शाता है और दिखाता है कि कैसे एक लोक सेवक अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये एक व्यक्ति को दूसरे पर प्राथमिकता देता है। यह मामला सरकारी विभागों की स्थिति को दर्शाने का सबसे अच्छा उदाहरण है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि एक कर्मचारी को इसका फायदा उठाना चाहिये बल्कि उसे चीजों को ठीक करने की कोशिश करनी चाहिये।
मामले में शामिल नैतिक मुद्दे इस प्रकार हैं:
- सत्यनिष्ठा की कमी: रोहित ने पहले तोहफे को ठुकरा दिया लेकिन बाद में आवश्यक राशि का भुगतान किये बिना आतिथ्य स्वीकार कर लिया।
- आचार संहिता: रोहित का एक विशेष विक्रेता के साथ विशेष व्यवहार और बिना भुगतान के आतिथ्य स्वीकार करना सही नहीं है। उनकी ये हरकतें अखिल भारतीय सेवा नियमों के खिलाफ हैं।
- नीति संहिता के खिलाफ: नैतिक रूप से वह नोलन समिति द्वारा दिए गए मूल्यों के सेट की अवहेलना कर रहे हैं।
- अवसरवादी रवैया / व्यवहार: पहले पकड़े जाने के डर से उपहार को अस्वीकार करना लेकिन बाद में गुमनामी के कारण आतिथ्य स्वीकार करना उसके अवसरवादी व्यवहार को दर्शाता है।
- सत्ता/आधिकारिक पद का दुरुपयोग (आत्म-उन्नति): एक लोक सेवक होने के नाते यह देखना उसकी प्रमुख ज़िम्मेदारी है कि वह सरकार द्वारा उसे सौंपे गए संसाधनों और शक्ति का उपयोग जनहित में करे।
- निष्पक्षता का अभाव: एक लोक सेवक के रूप में उसे एक दूसरे का पक्ष लिये बिना सभी विक्रेताओं के साथ समान व्यवहार करना चाहिये लेकिन एक विक्रेता को दूसरे पर प्राथमिकता देने का उसका कार्य निष्पक्षता की कमी को दर्शाता है।
- रिश्वत देने का मामला: व्यवसायी रोहित को बिना किसी शुल्क के आतिथ्य प्रदान करने और उपहार द्वारा रिश्वत देने का कार्य करता है।
मामले में शामिल नैतिक दुविधाएँ इस प्रकार हैं:
- ईमानदारी बनाम मौद्रिक लाभ: आतिथ्य की निशुल्क पेशकश को स्वीकार करना उसकी ईमानदारी पर सवाल उठाता है लेकिन अगर वह ईमानदारी के लिये जाता है तो इससे उसे प्राप्त होने वाला मौद्रिक लाभ प्राप्त नहीं होगा।
- व्यक्तिगत हित बनाम जनहित: यदि वह व्यवसायी के साथ अपने व्यक्तिगत संबंध बनाए रखने के लिये जाता है तो यह सार्वजनिक हित के साथ संघर्ष की स्थिति में है।
मामले में हितधारक:
- रोहित और उनका परिवार
- व्यवसायी
- पूरा सार्वजनिक विभाग
स्थिति से निपटने के लिये मेरी कार्यशैली:
- सबसे पहले, अगर मैं रोहित की स्थिति में होता तो मैं ईमानदारी, निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा, जनहित, आदि जैसे मूल्यों और आचार संहिता जैसे नियमों तथा विनियमों पर अडिग रहता, क्योंकि यह देखना मेरी प्रमुख जिम्मेदारी है कि किसी भी निर्णय से जनहित प्रभावित न हो।
- यहां तक कि अगर मुझे उस विशेष व्यवसायी की चिंता का समाधान करना होता तो मैं उसे उचित माध्यमों के माध्यम से संबोधित करने की कोशिश करता, जैसे कि भुगतान में देरी के मुद्दे को उठाने के लिये उसे अपनी ओर से शिकायत करने के लिये कहता।
- और अगर मेरी सलाह से उसकी समस्या का समाधान हो गया होता और उसने मेरे प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिये मुझे नकद या किसी तरह का उपहार दिया होता तो मैं स्पष्ट रूप से उसके उपहारों के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता । ै
- चूँकि उनसे उपहार प्राप्त करना मुझे उनके प्रति दायित्व में डाल देगा और वह भविष्य में भी मुझसे उनके लिये कुछ करने की उम्मीद करेंगे, इसलिये स्पष्ट रूप से उनके उपहारों को ना कहना एक बेहतर विकल्प है।
दिन-प्रतिदिन के प्रशासन में लोक सेवकों के मामले में भ्रष्टाचार और भ्रष्ट मूल्यों की समस्या बहुत आम हो गई है। ऐसे मामलों में, विभाग की ओर से सख्ती और व्यक्तिगत स्तर पर सार्वजनिक मूल्यों और नैतिकता का पालन करने की आवश्यकता है।