सिर्फ शांति के बारे में बात करना पर्याप्त नहीं है, इस पर विश्वास भी करना चाहिये तथा सिर्फ विश्वास करना ही पर्याप्त नहीं है, इस पर कार्य भी करना चाहिये।’ इस कथन को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में विश्लेषित कीजिये। (150 शब्द)
07 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण:
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वर्तमान युग विज्ञान-प्रौद्योगिकी का युग है जहाँ विज्ञान के विकास ने एक तरफ मानव जीवन को सरल एवं सुलभ बनाया है तो वहीं दूसरी तरफ महाविनाश के हथियारों जैसे परमाणु बम, मिसाइल, टैंक आदि का आविष्कार किया है। कुछ देशों की महत्त्वाकांक्षाओं ने बीसवीं सदी में विश्व को दो विश्वयुद्धों में झोंक दिया जिसने व्यापक नरसंहार व सामाजिक-आर्थिक विनाश तो किया ही साथ में विश्व शांति के महत्त्व को भी उजागर किया।
वर्तमान विश्व तकनीकी रूप से एकीकृत होने के बावजूद कई विचारधाराओं में बँटा हुआ है एवं सभी देश स्वयं की स्वार्थपूर्तियों में लगे हुए हैं। कुछ देशों के द्वारा स्वयं के हितों के लिये विश्व में अशांति पैलाने का कार्य किया गया है, जैसे- वर्तमान में उत्तर कोरिया, ईरान, इराक, सीरिया आदि देशों के संदर्भ में देखा जा सकता है। सैन्य प्रतिद्वंद्विताओं ने जहाँ एक तरफ हथियारों की होड़ को बढ़ाया है, वहीं दूसरी तरफ अन्य नवीन चुनौतियों जैसे साइबर वार, ट्रेडवार आदि को भी जन्म दिया है।
मतभेदों के इस दौर में रूजवेल्ट महोदया का यह कथन, ‘‘सिर्प शांति की बात करना पर्याप्त नहीं, इस पर विश्वास भी करना चाहिये तथा सिर्प विश्वास करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि इस पर कार्य भी करना चाहिये’’ अत्यधिक तार्किक प्रतीत होता है। हालाँकि विश्व शांति हेतु कई प्रयास किये जा चुके हैं, उदाहरणस्वरूप- इजराइल व फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन द्वारा ओस्लो अकार्ड पर हस्ताक्षर करना लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को सुलझाने का गंभीर प्रयास था। वर्ष 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाहौर की यात्रा भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर करने की एक अनुकरणीय पहल थी। वर्तमान इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद अली द्वारा इरिट्रिया के साथ किया गया समझौता एक प्रशंसनीय पहल है, जिसके लिये उन्हें वर्ष 2019 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
वस्तुत: विश्व में शांति की पहल के अनेकों उदाहरण विद्यमान हैं किंतु कई ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ कुछ देश स्वयं को शांतिप्रिय घोषित करते हैं, वैश्विक मंचों पर विश्व शांति की बात तो करते हैं; किंतु वास्तविकता यह है कि वे उस पर अमल नहीं करते जैसा कि चीन द्वारा वन चाइना नीति को पूरा करने के लिये हॉन्गकॉन्ग में पैलाई गई अशांति। रूस व अमेरिका की आपसी प्रतिद्वंद्विता ने वैश्विक अशांति को जन्म दिया है। ऐसे में यह तथ्य तार्किक प्रतीत होता है कि सिर्प शांति की बात करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस पर अमल भी करना चाहिये।
इस प्रकार देखा जाए तो वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय संबंध, देशों के स्वहितों से परिचालित हैं। ऐसे में वैश्विक शांति वह महत्त्वपूर्ण विचार है जो कि इनके बीच मतभेदों को समाप्त कर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को मूर्त कर सकती है। इस संदर्भ में भारतीय विदेश नीति एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करती है जो कि विश्व-बंधुत्व एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को चरितार्थ करती है एवं ‘‘वसुधैव कुटुंबकम्’’ का लक्ष्य रखती है।