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प्रश्न :
प्रभावी शासन के एक घटक के रूप में कार्य-संस्कृति के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। चर्चा कीजिये कि कैसे भारतीय कार्य-संस्कृति पश्चिमी कार्य-संस्कृति से भिन्न है? (150 शब्द)
07 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- कार्य-संस्कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रभावी शासन के एक घटक के रूप में इसके महत्त्व को बताइये।
- भारतीय कार्य-संस्कृति व पश्चिमी कार्य-संस्कृति में अंतर बताइये।
- संतुलित निष्कर्ष दीजिये।
कार्य-संस्कृति को किसी संगठन अथवा कार्यालय के उस संपूर्ण वातावरण के रूप में परिभाषित किया जाता है जो कि उस संगठन की कार्य करने की प्रथाओं, मूल्यों तथा साझा मान्यताओं को दर्शाता है जो वहाँ कार्य करने वाले कर्मचारियों की मनोवृत्ति को निर्धारित करती है। जिस प्रकार हमारी संस्कृति हमें बताती है कि हमें क्या करना चाहिये क्या नहीं, किसी विशेष परिस्थिति में कैसे व्यवहार करना चाहिये कैसे नहीं, किन मूल्यों का अनुगमन करना चाहिये या नहीं उसी प्रकार किसी संगठन की कार्य-संस्कृति उसके कर्मचारियों को इन सब विषयों से जुड़े दिशा-निर्देश प्रदान करती है।
प्रभावी प्रशासन के एक घटक के रूप में कार्य-संस्कृति का महत्त्व निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
- एक अच्छी कार्य-संस्कृति अधिकारियों को समयबद्ध एवं सहानुभूति रखने वाला बनाती है जिससे वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन बेहतर रूप में कर सकते हैं।
- एक स्वस्थ कार्य-संस्कृति संगठन में टीम भावना को बढ़ाती है तथा सकारात्मक रूप से प्रतिस्पर्धी वातावरण बनाती है।
- विविधता का सम्मान करने वाली कार्य-संस्कृति बेहतर प्रतिभा को आकर्षित करती है जो भेदभाव, पक्षपात, भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर प्रतिभा को महत्त्व देती है।
- एक अच्छी कार्य- संस्कृति महिलाओं, दिव्यांगों तथा समाज के अन्य कमज़ोर वर्गों की आनुपातिक हिस्सेदारी को बढ़ावा देती हैं तथा इनके प्रति संवेदनशीलता का भाव उत्पन्न करती है।
यदि देखा जाए तो हर संगठन अथवा राष्ट्र की अपनी कार्य-संस्कृति होती है जिसे उस देश की परंपरागत सांस्कृतिक-सामाजिक पद्धतियाँ तथा कानूनी ढाँचा निर्धारित करते हैं। ऐसे ही पश्चिमी राष्ट्रों की कार्य-संस्कृति व भारतीय कार्य-संस्कृति भी बनी हैं जिनके मध्य मुख्य अंतर को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
- लगभग सभी पश्चिमी देशों में लोग समय के अत्यधिक पाबंद होते हैं तथा सार्वजनिक कार्यों एवं बैठकों में समय से पहुँचते हैं जबकि समय की पाबंदी के संदर्भ में भारतीय अत्यधिक लचर होते हैं।
- पश्चिमी देशों में व्यक्तिगत जीवन एवं पेशेवर जीवन में एक बेहतर संतुलन बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं जबकि भारत में उचित कार्य ढूंढ़ने तथा उसकी निरंतरता को बनाए रखने पर अधिक समय व्यतीत करते हैं जिससे व्यक्तिगत इच्छाओं की अनदेखी होती है।
- भारत में वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य संबंध अत्यधिक औपचारिक एवं सामंती प्रवृत्ति के होते हैं जबकि पश्चिमी देशों में वरिष्ठ अधिकारी अधीनस्थों के साथ अत्यधिक उदार एवं मैत्री भाव के साथ रहते हैं।
- भारतीय कार्य-संस्कृति नवीन परिवर्तनों को आसानी से स्वीकार नहीं करती जिसमें नए प्रयोग करने पर अत्यधिक विरोधों का सामना करना पड़ता है जबकि पश्चिमी कार्य-संस्कृति परिवर्तनों को सहर्ष स्वीकारती है।
यदि देखा जाए तो भारत में समय प्रबंधन, समय की पाबंदी तथा समय को महत्त्व देने की धारणा अभी अत्यधिक नवीन है किंतु यह समय के साथ-साथ परिवर्तित हो रही है। वैश्वीकरण के पश्चात् भारतीय कार्य-संस्कृति में अभूतपूर्व सकारात्मक परिवर्तनों की शुरुआत हुई है जिसके भविष्य में और बेहतर होने की संभावना है।
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