भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 इन समस्याओं को दूर करने और इस समुदाय को न्याय दिलाने में कितना सक्षम होगा? (150 शब्द)
05 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण:
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‘ट्रांसजेंडर’ शब्द का उपयोग प्राय: उन लोगों को संदर्भित करने के लिये किया जाता है जिनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म लिंग से भिन्न होती है। भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय लंबे समय से पुरुष वर्चस्ववादी सामाजिक पूर्वाग्रहों और वैकल्पिक यौनिकता को अपराध मानने वाले क्रूर कानूनों का खामियाज भुगत रहे हैं।
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की प्रमुख समस्याएँ
भेदभाव: शिक्षा, रोज़गार और सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच के मामले में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। पुलिस द्वारा भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और वे सामाजिक न्याय के लिये संघर्षरत होते हैं।
पारिवारिक समर्थन का अभाव: उनकी लैंगिक पहचान की सिद्धि के बाद उन्हें समाज द्वारा माता-पिता का घर छोड़ने के लिये मज़बूर किया जाता है क्योंकि उन्हें सामान्य समुदाय और वर्ग का हिस्सा नहीं माना जाता है।
अवांछित ध्यान: सार्वजनिक स्थल पर ये लोगों के अवांछित ध्यान का शिकार बनते हैं।
चिकित्सीय सहायता की कमी: ये एच.आई.वी., अवसाद, हार्मोन की गोली के दुरुपयोग, तंबाकू एवं शराब सेवन, पेनेकटॉमी (penectomy) जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हैं।
वे वैवाहिक और गोद लेने संबंधी कानूनी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 के प्रावधान
इस विधेयक में कहा गया है कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को स्व-कथित लिंग पहचान का अधिकार होगा और यह विभिन्न आधारों पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार के साथ रहने का अधिकार होगा और यदि निकटस्थ संबंधी उसका देखभाल रखने में असमर्थ है तो उसे पुनर्वास केंद्र में रखा जा सकता है।
सरकार ट्रांसजेंडर लोगों के लिये शिक्षा, खेल और मनोरंजक सुविधाएँ प्रदान करेगी। विधेयक के अनुसार सरकार द्वारा उनके लिये अलग एच.आई.वी. निगरानी केंद्र और ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के प्रावधानों और कार्यों के अनुपालन के लिये सरकार राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद (National Council for Transgender Persons–NCT) की स्थापना करेगी। यह निकाय केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर लोगों के लिये बनाई गई नीतियों और योजनाओं पर सलाह देने तथा उसकी निगरानी एवं समीक्षा का कार्य करेगा।
एक उदार और समग्र दृष्टिकोण के बावजूद ट्रांसजेंडर विधेयक की आलोचना निम्नलिखित कारणों से की जा रही है-
यह व्यक्तियों को पहचान प्रमाण पत्र जारी करने के लिये विशेषज्ञों की एक ‘स्क्रीनिंग कमेटी’ का प्रस्ताव करता है जिस बारे में कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि यह ट्रांसजेंडर लोगों को दुर्व्यवहार के लिये भेद्य बना सकता है।
भिक्षावृत्ति भारत में ट्रांस व्यक्तियों के लिये आजीविका का एक प्राथमिक स्रोत रही है। इस गतिविधि को आपराधिक कृत्य घोषित करने वाला यह विधेयक उन्हें वंचना की ओर धकेलता है।
ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये शिक्षा तथा सकारात्मक कार्रवाई के बारे में किसी विशेष प्रावधान का अभाव इस विधेयक की एक और बड़ी कमी है।
यौन अभिविन्यास और लैंगिक पहचान प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा तथा मानवता के साथ अभिन्न है और यह किसी लोकतांत्रिक समाज में भेदभाव या दुर्व्यवहार का आधार नहीं होना चाहिये। इस प्रकार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 इस दिशा में उठाया गया एक सराहनीय कदम है।