केंद्रीय सूचना आयोग (सी.आई.सी.), आर.टी.आई. अधिनियम के अंतर्गत सर्वोच्च अपीलीय निकाय है, यद्यपि इसकी अपनी कई सीमाएँ भी हैं।’’ इस कथन के संदर्भ में सी.आई.सी. की शक्तियों और कार्यों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
05 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
|
केंद्रीय सूचना आयोग (सी.आई.सी.) एक सांविधिक निकाय है जिसे केंद्र सरकार ने वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के अंतर्गत एक आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से स्थापित किया था।
सी.आई.सी. एक उच्च अधिकार संपन्न स्वतंत्र निकाय है जो अन्य बातों के साथ इसके समक्ष प्रस्तुत शिकायतों पर विचार करता है और दायर अपीलों पर निर्णय लेता है। यह केंद्र सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों के अधीन कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि से संबंधित शिकायतों तथा अपीलों की सुनवाई करता है।
यह आयोग आर.टी.आई. अधिनियम के अंतर्गत सर्वोच्च अपीलीय निकाय के रूप में कार्य करता है और इसकी निम्नलिखित शक्तियाँ तथा कार्य हैं:
ऐसे किसी व्यक्ति की शिकायत प्राप्त करना और उसकी जाँच करना आयोग का कर्तव्य है, जो एक लोक सूचना अधिकारी (PIO) को इस कारण से अनुरोध प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा है कि इस अधिनियम के अधीन ऐसे अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है या उसके आवेदन को भेजने की स्वीकृति से इनकार कर दिया गया है; जिन्हें उनके सूचना अनुरोध का उत्तर नहीं मिला है या जो सोचते हैं कि अपेक्षित शुल्क अनुचित है या दी गई सूचना अधूरी, भ्रामक या गलत है; और सूचना प्राप्त करने से संबंधित कोई भी अन्य मामला।
आयोग किसी भी मामले में जाँच का आदेश दे सकता है यदि उसके लिये युक्तियुक्त आधार हो।
जाँच के समय आयोग को ऐसे मामलों के संबंध में किन्हीं व्यक्तियों को समन करने और उन्हें उपस्थित करने तथा शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने के लिये और दस्तावेज या वस्तुएं पेश करने के लिये उनको विवश करने जैसी वही शक्तियाँ प्राप्त हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचरण करते समय दीवानी न्यायलय में निहित होती हैं।
किसी शिकायत की जाँच के दौरान सभी सार्वजनिक रिकॉर्ड आयोग को सौंपे जाने चाहिये।
आयोग के पास यह अधिकार भी है कि वह सार्वजनिक प्राधिकरण से अपने निर्णयों का पालन कराना सुनिश्चित करे। इसमें एक लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति के लिये सार्वजनिक प्राधिकरण को निर्देश देना यदि कोई ऐसा अधिकारी नियुक्त न हो; सूचना के अधिकार पर अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण प्रावधान की अभिवृद्धि करना; इस अधिनियम के अनुपालन पर सार्वजनिक प्राधिकरण से वार्षिक रिपोर्ट माँगना; आर.टी.आई. अधिनियम के तहत अर्थदंड लगाना आदि शामिल है।
जब एक सार्वजनिक प्राधिकरण आर.टी.आई. अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं होता है तो आयोग इस तरह की अनुरूपता को बढ़ावा देने के लिये उठाए जाने वाले कदमों की सिफारिश उस प्राधिकरण को कर सकता है।
यद्यपि सी.आई.सी. कुछ सीमाओं से आक्रांत भी है, जैसे:
केंद्र सरकार इसके कार्यालय, वेतन एवं भत्ते और सेवा के अन्य नियमों व शर्तों को नियंत्रित करती है।
सी.आई.सी. के आदेशों का अनुपालन नहीं होना।
केंद्र/राज्य स्तर पर आर.टी.आई. आवेदकों के किसी केंद्रीकृत डेटाबेस का नहीं होना।
कार्मिक और ढाँचागत अवरोध।
लंबित मामलों की उच्च दर आदि।
महत्त्वपूर्ण होगा कि आर.टी.आई. संशोधन विधेयक 2019 के माध्यम से लाया गया कोई भी परिवर्तन ऐसा न हो जो इस स्वायत्त निकाय को स्थापित करने के मूल उद्देश्य को पराजित करता हो और सूचना तक पहुँच से वंचित करने के किसी सरकारी कृत्य के औचित्य के निर्णय की शक्ति आयोग के पास ही बनी रहनी चाहिये।