- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
स्वतंत्र भारत में सहकारी आंदोलनों के उद्भव के लिये उत्तरदायी सामाजिक-आर्थिक कारक कौन-से थे? साथ ही इन आंदोलनों की मुख्य विशेषताओं को भी रेखांकित कीजिये। (150 शब्द)
04 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सहकारिता आंदोलन की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ भूमिका लिखिये।
- भारत में सहकारी आंदोलन के उद्भव के लिये उत्तरदायी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिये।
- इन आंदोलनों की प्रमुख विशेषताओं को बताइये।
- सहकारी आंदोलन के प्रभाव के साथ निष्कर्ष लिखिये।
भारत में सहकारिता आंदोलन का एक लंबा एवं विस्तृत इतिहास रहा है। लगभग 100 वर्ष से भी अधिक अवधि के दौरान इन आंदोलनों ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक बदलाव में अहम भूमिका निभाई है। भारत में वर्ष 1904 में सहकारी समिति विधेयक लाया गया था तथा वर्ष 1912 में यह कानून बन गया। वर्ष 1919 में रिफॉर्म एक्ट पारित कर सहकारी विषय राज्यों को हस्तांतरित किया गया। इसके बाद समय-समय पर सहकारी संस्थाओं के लिये अनेक कानून बनाए गए।
भारत में सहकारी आंदोलन के उद्भव हेतु निम्नलिखित आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
भारतीय जनता में व्याप्त अशिक्षा एवं गरीबी के कारण वे साहूकारों के ऋण जाल में फँसे तथा उनका अत्यधिक शोषण हो रहा था।
अत्यधिक विभाजित एवं विखंडित जोत का आकार, वैकल्पिक रोज़गार का अभाव, अकाल, बीमारी, बाढ़ एवं सूखे की समस्या, मुकदमेबाजी तथा अत्यधिक ऋणग्रस्तता की उपस्थिति।
सहकारी व्रेडिट सोसायटीज़ के 50 वर्षों से अस्तित्व में होने के बावजूद, ग्रामीण ऋण आवश्यकताओं के लिये औपचारिक ऋण संस्थाओं की हिस्सेदारी 9 प्रतिशत से कम थी, और इसके भीतर सहकारी समितियों का हिस्सा 5% से कम था।
व्यापारियों और अमीर ज़मींदारों द्वारा दिये गए उधार में 75 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण ऋण थे।
भारत में इन सहकारी आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं-
लंबे एवं सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन तथा कृषक आंदोलनों की औपनिवेशिक विरासत को इन आंदोलनों ने सफलतापूर्वक बदल दिया।
इसने संसाधनों और स्वामित्व की उनकी बढ़ती हुई वर्ग परंपरा द्वारा वर्गीकृत संगठनों के सामूहिक स्वामित्व को आगे बढ़ाया।
ये आंदोलन कृषि सुधार के साथ-साथ ग्रामीण हस्तशिल्पों एवं लघु उद्योगों के सुधार पर केंद्रित रहे।
इन आंदोलनों ने अनगिनत भागीदारी व्यवसाय-प्रतिष्ठान, प्राइवेट लिमिटेड फर्म के रूप में तथा मिश्रित पूंजी कंपनियों आदि के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस प्रकार देखा जाए तो सहकारी आंदोलन ने भारत में अभूतपूर्व सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा कृषि स्थायित्व के साथ-साथ कृषक अशांति को कम करने का अद्वितीय कार्य किया।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print