भारत की धार्मिक भूमि में, आनुष्ठानिक लैंगिक दासता की शोषणकारी प्रथा, कन्याओं का देवता से विवाह करने की जोगिनी प्रथा (देवदासी प्रथा का एक स्थानीय रूप) मौजूद है। देवदासी (समर्पण का निषेध) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद आज तक यह सामाजिक बुराई निरंतर चली आ रही है। आप एक ज़िले में ज़िलाधिकारी के रूप में पदस्थ हैं तथा आपको अपने अधिकार क्षेत्र में हो रही ऐसी प्रथा के बारे में पता चलता है। दो दलित कन्याओं को देवदासियों के रूप में ईश्वर के प्रति समर्पित होने के लिये तैयार किया जा रहा है। बच्चों को उनके अपने माता-पिता द्वारा देवदासी बनने के लिये मजबूर किया जाता है क्योंकि अधिकतर मामलों में कन्याएँ उनकी आय का एकमात्र स्रोत होती हैं। एक समाज में जहाँ अक्सर एक बच्ची को दायित्व माना जाता है, उन्हें देवदासी बनाना पितृसत्ता का उन्हें संपत्ति में बदलने जैसा है। साथ ही देवदासी के नाम पर प्रचलित बाल वेश्यावृत्ति के बारे में भी आपको पता चलता है।
(a) ऐसे परिदृश्य में आप क्या कार्रवाई करेंगे?
(b) देवदासी प्रथा के विरुद्ध कानूनों की मौजूदगी के बावजूद इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने में कौन-कौन से मुद्दे शामिल हैं? (250 शब्द)
हल करने का दृष्टिकोण:
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प्रमुख हितधारक
देवदासी प्रथा भारतीय समाज में अत्यधिक प्राचीन व शोषणकारी प्रथा है। देवदासी का शाब्दिक अर्थ ‘देवता के लिये समर्पित महिला दास’ है। इस प्रथा की शुरुआत भारत में लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी। उस समय देवदासी बनना अत्यधिक सम्मान की बात थी, किंतु समय बीतने के साथ ही इस प्रथा में विकृति आ गई जो कि वर्तमान में वेश्यावृत्ति का पर्याय बन गई है।
(a) इस क्षेत्र के ज़िलाधिकारी के रूप में इस सामाजिक बुराई से निपटने के लिये में निम्नलिखित कदम उठा सकता हूँ-
(b) देवदासी प्रथा के विरुद्ध कानून होने के बावजूद इस प्रथा पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका, जिसके लिये कई कारण ज़िम्मेदार हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
कानूनों का क्रियान्वयन अत्यधिक कमज़ोर होना: देवदासी (समर्पण का निषेध) अधिनियम, पोक्सो एक्ट तथा वेश्यावृत्ति निषेध अधिनियम इत्यादि कानूनों का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से न हो पाना।