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प्रश्न :
भारत की धार्मिक भूमि में, आनुष्ठानिक लैंगिक दासता की शोषणकारी प्रथा, कन्याओं का देवता से विवाह करने की जोगिनी प्रथा (देवदासी प्रथा का एक स्थानीय रूप) मौजूद है। देवदासी (समर्पण का निषेध) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद आज तक यह सामाजिक बुराई निरंतर चली आ रही है। आप एक ज़िले में ज़िलाधिकारी के रूप में पदस्थ हैं तथा आपको अपने अधिकार क्षेत्र में हो रही ऐसी प्रथा के बारे में पता चलता है। दो दलित कन्याओं को देवदासियों के रूप में ईश्वर के प्रति समर्पित होने के लिये तैयार किया जा रहा है। बच्चों को उनके अपने माता-पिता द्वारा देवदासी बनने के लिये मजबूर किया जाता है क्योंकि अधिकतर मामलों में कन्याएँ उनकी आय का एकमात्र स्रोत होती हैं। एक समाज में जहाँ अक्सर एक बच्ची को दायित्व माना जाता है, उन्हें देवदासी बनाना पितृसत्ता का उन्हें संपत्ति में बदलने जैसा है। साथ ही देवदासी के नाम पर प्रचलित बाल वेश्यावृत्ति के बारे में भी आपको पता चलता है।
(a) ऐसे परिदृश्य में आप क्या कार्रवाई करेंगे?
01 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
(b) देवदासी प्रथा के विरुद्ध कानूनों की मौजूदगी के बावजूद इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने में कौन-कौन से मुद्दे शामिल हैं? (250 शब्द)उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- केस स्टडी में शामिल हितधारकों को बताइये।
- भारत में देवदासी प्रथा का संक्षिप्त परिचय देते हुए आपके द्वारा की जाने वाली कार्रवाई को बताएँ।
- इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने में मौजूद चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
प्रमुख हितधारक
- कन्याएँ: जिनके माता-पिता उन्हें देवदासी बनाने के लिये तैयार कर रहे हैं।
- गरीब परिवार: जो कि अधिकतर समाज के निम्न वर्गों से हैं।
- मंदिर प्रणाली/पुरोहित वर्ग: जोकि गरीब परिवारों की निर्धनता का लाभ उठाकर देवदासी प्रथा के पोषक हैं।
- ज़िला प्रशासन: जो कि इस प्रकार की प्रथाओं पर रोक लगाने हेतु उत्तरदायी है।
- बड़े पैमाने पर आम जनता: जो कि इस प्रकार की प्रथाओं से प्रभावित होती है।
देवदासी प्रथा भारतीय समाज में अत्यधिक प्राचीन व शोषणकारी प्रथा है। देवदासी का शाब्दिक अर्थ ‘देवता के लिये समर्पित महिला दास’ है। इस प्रथा की शुरुआत भारत में लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी। उस समय देवदासी बनना अत्यधिक सम्मान की बात थी, किंतु समय बीतने के साथ ही इस प्रथा में विकृति आ गई जो कि वर्तमान में वेश्यावृत्ति का पर्याय बन गई है।
(a) इस क्षेत्र के ज़िलाधिकारी के रूप में इस सामाजिक बुराई से निपटने के लिये में निम्नलिखित कदम उठा सकता हूँ-
- मैं सबसे पहले उन कन्याओं को मुक्त कर उनके पुनर्वास का कार्य करूंगा।
- तत्पश्चात् मैं उनके माता-पिता एवं इस कृत्य में शामिल अन्य व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करूंगा, ताकि वे इस प्रकार के कृत्य को दोहरा न सकें।
- इसके बाद मैं वेश्यावृत्ति की समस्या से निपटने के लिये विश्वसनीय जानकारी जुटाऊंगा, जिसके बाद इसमें शामिल सभी पक्षों पर कार्रवाई करूंगा।
- तत्पश्चात् लोगों को इस कुप्रथा को रोकने के लिये रिपोर्ट़िग करने के लिये प्रेरित करूंगा, जिसके लिये एक हेल्पलाइन नंबर बनाने का प्रयत्न करूंगा।
- इस प्रथा का मूल कारण गरीबी है, जिसके लिये मैं गरीबी निवारण हेतु मनरेगा जैसी योजनाओं का ग्राउंड लेवल क्रियान्वयन सुनिश्चित करवाऊंगा तथा वैकल्पिक रोज़गार के अन्य साधनों को उपलब्ध कराने का प्रयास करूंगा।
- कन्याओं का सरकारी सकूलों में नामांकन सुनिश्चित करवाऊंगा तथा व्यापक स्तर पर जनता में जागरूकता पैलाने का कार्य करूंगा।
- चूँकि, इस मामले में धार्मिक एंगल शामिल है तो मैं इस बात का ध्यान रखूंगा कि हर कदम सावधानीपूर्वक उठाऊँ, ताकि जनभावनाएँ आहत न हों।
(b) देवदासी प्रथा के विरुद्ध कानून होने के बावजूद इस प्रथा पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका, जिसके लिये कई कारण ज़िम्मेदार हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- सामाजिक स्वीकृति: इस प्रथा को समाज में स्वीकृति मिली हुई है। लोगों ने इस प्रथा को सामाजिक-धार्मिक दबावों के चलते स्वीकृति प्रदान की है।
- जागरूकता कार्यक्रमों का अप्रभावी होना: इस प्रथा के विरुद्ध सरकारी एवं गैर-सरकारी जनजागरूकता कार्यक्रम धार्मिक अनुष्ठान के आगे अधूरे महसूस होते हैं।
- पुलिस कार्रवाई का प्रभावी न होना: पुलिस धार्मिक मामलों में कार्रवाई करने से बचती है।
कानूनों का क्रियान्वयन अत्यधिक कमज़ोर होना: देवदासी (समर्पण का निषेध) अधिनियम, पोक्सो एक्ट तथा वेश्यावृत्ति निषेध अधिनियम इत्यादि कानूनों का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से न हो पाना।
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