नोलन समिति द्वारा लोक जीवन के मानकों को किस रूप में व्याख्यायित किया गया है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका में लोक सेवकों के लिये लोक सेवा के मानकों की आवश्यकता को संक्षेप में बताइये।
- नोलन समिति द्वारा अनुशंसित प्रमुख लोक सेवा मानकों की चर्चा कीजिये।
- संतुलित निष्कर्ष दीजिये।
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भारतीय लोकतंत्र में सार्वजनिक पदों पर आसीन सिविल सेवक जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं, उन पर नीति-निर्माण, एवं नीतियों के क्रियान्वयन के साथ-साथ सरकारी संसाधनों के प्रबंधन एवं उनके समतामूलक वितरण की महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होती है। सिविल सेवकों द्वारा लिये गए निर्णय आम जनता को वृहद् स्तर पर प्रभावित करते हैं। ऐसे में जनता सार्वजनिक जीवन में उनसे निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता गैर तरफदारी, सत्यनिष्ठा आदि मूल्यों के पालन की अपेक्षा करती है।
सिविल सेवकों हेतु सार्वजनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण मानकों के पालन के लिये वर्ष 1994 में गठित नोलन समीति ने निम्नलिखित अनुशंसाएँ दी हैं-
- नि:स्वार्थता : सार्वजनिक पदों पर आसीन पदाधिकारियों को व्यक्तिगत लाभों एवं अनुरागों से तटस्थ होकर व्यापक जन हित हेतु कार्य करना चाहिये।
- सत्यनिष्ठा : सार्वजनिक पदों पर बैठे अधिकारियों को बाहरी व्यक्तियों या संगठनों के साथ वित्तीय या भौतिक लाभों आदि के वशीभूत न होकर पूरी ईमानदारी से सरकारी कार्यों का निष्पादन करना चाहिये।
- वस्तुनिष्ठता : सरकारी पद पर रहते हुए एक सिविल सेवक को कई महत्त्वपूर्ण कार्य, जैसे- नियुक्तियों, संविदाओं की स्वीकृति, पंड का निष्कासन आदि करने होते हैं। इन कार्यों को करते हुए उसे व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों, पक्षपातों, अनुराग-द्वेषों आदि से तटस्थ रहने की आवश्यकता है।
- जवाबदेहिता : सिविल सेवकों को निर्णयन एवं नीतियों के क्रियान्वयन को पूरी निष्पक्षता व ईमानदारी से कर अंतत: जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिये।
- पारदर्शिता : सार्वजनिक पदों पर बैठे पदाधिकारियों को खुले एवं पारदर्शी तरीके से कार्य करना चाहिये। जहाँ तक संभव हो जनता के लिये सरकारी निर्णयों संबंधी सूचना की प्राप्ति सुनिश्चित करनी चाहिये।
- ईमानदारी : सार्वजनिक अधिकारियों को अपने कृत्यों एवं अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियों के प्रति ईमानदार होना चाहिये।
- नेतृत्व : सार्वजनिक अधिकारियों में उच्च नेतृत्व क्षमता होनी चाहिये ताकि समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चला जा सके तथा नीतियों का प्रभावकारी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
इस प्रकार देखा जाए तो उपर्युक्त सिद्धांत किसी भी सार्वजनिक कार्यालय एवं उसके पदाधिकारियों पर जनता का विश्वास बढ़ाते हैं तथा पदाधिकारियों को भी जन-केंद्रित नीति-निर्माण एवं उनके कार्यान्वयन हेतु मार्गदर्शन करते हैं।