1789 की फ्राँसीसी क्रांति की प्रचण्ड तरंगों ने न केवल फ्राँस की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक व्यवस्था को झकझोरा बल्कि अगली दो शताब्दियों तक वे विश्व को भी झकझोरती रहीं। विवेचना करें।
13 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर की रूपरेखा :
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1789 ई. की फ्राँसीसी क्रांति विश्व इतिहास की युगान्तकारी घटना है। भीषण बवंडर के रूप में घटित होकर इस क्रांति ने फ्राँस व अन्य विश्व के सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक जीवन को झकझोर कर एक नूतन संसार को जन्म देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। फ्राँसीसी क्रांति का फ्राँस एवं विश्व पर पड़ने वाले प्रभावों को निम्न प्रकार से देख सकते हैं:
सामाजिक स्तर परः क्रांति के फलस्वरूप फ्राँस में सामंतवादी व्यवस्था की समाप्ति हुई। इसके फलस्वरूप समानता के न्यायोचित सिद्धांत को स्थापित करके साधारण व्यक्तियों को उपयुक्त सामाजिक स्थान प्रदान किया गया। कुलीनों के विशेषाधिकारों की समाप्ति हुई। साथ ही दक्षिण व मध्य अमेरिका में अनेक आंदोलन इससे प्रेरित हुए। अमेरिका में फ्राँसीसी उपनिवेश में दासता की प्रथा समाप्त कर उसे हैती गणतंत्र बनाया गया। इसके अतिरिक्त हॉलैंड से आज़ादी पाने में बेल्जियम, पोलैंड, वेनेजुएला इत्यादि को भी फ्राँसीसी क्राँति ने प्रभावित किया। यूरोप के अन्य देशों में भी सामंतवादी व्यवस्था का अंत अवश्यंभावी हो गया। विशेष लोगों के विशेषाधिकार लगभग सभी यूरोपीय देशों से समाप्त हुए। समानता के इस विचार ने यूरोप के अतिरिक्त विश्व के अन्य देशों को आज तक प्रभावित किया हुआ है।
आर्थिक स्तर परः कुलीनों के विशेषाधिकारों की समाप्ति के साथ ही कर की समान व्यवस्था का उदय हुआ। यह व्यवस्था आर्थिक समानता के सिद्धांत पर आधारित थी। इसके साथ फ्राँसीसी क्रांति के परिणामस्वरूप पूंजीवादी व्यवस्था का उदय हुआ। इस व्यवस्था ने न केवल फ्राँस अपितु पूरे विश्व को प्रभावित किया। पूंजीवाद ने समाजवादी अर्थव्यवस्था व इन दोनों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसी अवधारणाओं के विकास में सहायता प्रदान की। पूंजीवाद-समाजवाद की परिणति के रूप में शीतयुद्ध विश्व को 20वीं शताब्दी के अंत तक प्रभावित करता रहा है।
राजनैतिक स्तर परः फ्राँस की क्रांति ने राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राजतंत्र या दैवी सिद्धांतों का अंत कर ‘लोकप्रिय संप्रभुता’ के सिद्धांत को मान्यता दी। क्रांति के उपरांत सभी नागरिक राजनीति में सक्रियता से भाग लेने लगे। मानवाधिकारों की घोषणा, स्वतंत्रता, समानता के सिद्धांतों का प्रतिपादन करके फ्राँस की क्रांति ने व्यक्ति की महत्ता को स्वीकार किया। इन राजनैतिक विचारों ने फ्राँस, यूरोप व अन्य देशों तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम को ऊर्जा प्रदान की। फ्राँस की सामाजिक व्यवस्था में प्रथम व द्वितीय एस्टेट के विशेषाधिकारों की समाप्ति हुई तथा तृतीय एस्टेट (मध्यम वर्ग, किसान इत्यादि) की सामाजिक स्थिति में अल्प सुधार हुआ।
निष्कर्षः इस प्रकार समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, लोकप्रिय प्रभुसत्ता, धर्मनिरपेक्षता, कल्याणकारी राज्य इत्यादि फ्राँसीसी क्रांति के उत्तम विचार हैं। ये विचार आज भी विश्व को गतिशीलता प्रदान कर रहे हैं।