‘‘प्रथम लोकपाल की नियुक्ति हालाँकि कुछ समय की देरी से हुई, परंतु सरकार की घूसखोरी के विरुद्ध लड़ाई की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।’’ टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
28 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
|
लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम के लागू होने के पांच वर्ष बाद भारत के प्रथम लोकपाल के रूप में न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को नियुक्त किया गया। इस अधिनियम में कुछ विशेष श्रेणी में शामिल लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की जाँच करने हेतु केंद्र में लोकपाल तथा राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति की परिकल्पना की गई।
लोकपाल की नियुक्ति हालांकि कुछ समय की देरी से हुई, परंतु सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि:
लोकपाल का एक विस्तृत क्षेत्राधिकार है; इसके अधीन किसी भी व्यक्ति यथा प्रधानमंत्री, या केंद्र सरकार के मंत्री या संसद सदस्य, साथ ही A, B, C और क् समूह के अंतर्गत केंद्र सरकार के अधिकारी हों या भूत में रहे हों, के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का एक व्यापक अधिकार क्षेत्र है।
यह संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या केंद्र द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्त पोषित सभी बोर्ड, निगम, सोसाइटी, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय के अध्यक्षों, सदस्यों, अधिकारियों एवं निदेशकों को भी शामिल करता है। इसमें सोसाइटी या ट्रस्ट या निकाय भी शामिल है जो विदेशी अंशदान द्वारा ₹10 लाख रुपए से ऊपर की राशि प्राप्त करता है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत शिकायत प्राप्त होने के पश्चात् लोकपाल प्रारंभिक जाँच शुरू कर सकता है। यदि शिकायत सही पाई जाती है, तो लोकपाल सरकार को लोक सेवक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिये कह सकता है और केंद्र द्वारा स्थापित होने वाले एक विशेष न्यायालय में एक केस भी दर्ज कर सकता है।
लोकपाल के अधीन अभियुक्त मामलों की जाँच एवं मुकदमा करते समय सी.बी.आई., सी.वी.सी. जैसी किसी भी जाँच एजेंसी के लिये लोकपाल के पास अधीक्षण और निर्देश देने की शक्ति है।
यह लोक सेवकों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध नागरिकों को लोकपाल से शिकायत करने का भी अधिकार प्रदान करता है।
हालाँकि लोकपाल कुछ सीमाओं का सामना करती है जैसे:
लोकपाल प्रधानमंत्री के विरुद्ध किसी भी भ्रष्टाचार के आरोपों में पूछताछ नहीं कर सकता है यदि वे आरोप अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष से संबंधित हैं।
यह अधिनियम यह भी प्रावधान करता है कि अपराध की गई तिथि से सात वर्ष बाद की गई किसी भी शिकायत पर लोकपाल पूछताछ या जाँच नहीं करेगा। यह लोकपाल के कार्यविधियों को प्रतिबंधित करता है।
लोकपाल को भ्रष्टाचार एवं कुप्रशासन के मामलों का स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार से वंचित किया गया है।
इन सीमाओं के बावजूद लोकपाल की नियुक्ति विशेषत: भ्रष्टाचार और कुप्रशासन से निपटने के लिये, प्रशासनिक मशीनरी में व्याप्त कुरीतियों पर अंकुश लगाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है। भविष्य में लोकपाल को और अधिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिये संवैधानिक दर्जा दिया जा सकता है।