भूमध्य रेखा के आस-पास प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में घटित होने वाली अल-नीनो एवं ला-नीना की घटनाएँ पूरे विश्व के जलवायु चक्र को प्रभावित करती हैं। वर्णन करें।
14 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल उत्तर की रूपरेखा :
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प्रशांत महासागर में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहा जाता है। दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम तटीय देश पेरू एवं इक्वेडोर के समुद्री मछुआरों द्वारा, प्रतिवर्ष क्रिसमस के आसपास प्रशांत महासागरीय धारा के तापमान में होनेवाली वृद्धि को अल-नीनो कहा जाता था। किंतु आज इस शब्द का इस्तेमाल उष्णकटिवंधीय क्षेत्र में केन्द्रीय और पूर्वी प्रशांत महासागरीय जल के औसत सतही तापमान में कुछ अंतराल पर असामान्य रूप से होने वाली वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप होने वाले विश्वव्यापी प्रभाव के लिये किया जाता है। दरअसल, प्रशांत महासागर में बीते कुछ वर्षों से समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, जिससे हवाओं का रास्ता और रफ्तार बदल जाती है। इस कारण मौसम का चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है। मौसम के बदलाव की वजह से कई जगह सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है। इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है।
वैसे तो अल-नीनो की घटना भूमध्य रेखा के आस-पास प्रशांत क्षेत्र में घटित होती है लेकिन हमारी पृथ्वी के सभी जलवायु-चक्र पर इसका असर पड़ता है। लगभग 120 डिग्री पूर्वी देशान्तर के आस-पास इंडोनेशियाई क्षेत्र से लेकर 80 डिग्री पश्चिमी देशान्तर पर मेक्सिको की खाड़ी और दक्षिण अमेरिकी पेरू तट तक का समूचा उष्ण क्षेत्रीय प्रशांत महासागर अल-नीनो के प्रभाव क्षेत्र में आता है।
जिस साल अल-नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर उसका निश्चित असर पड़ता है। इससे पृथ्वी के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्से अकाल की मार सहते हैं। भारत में तो यह मानसून सीजन में ही अपना असर दिखाता है, लेकिन इसकी सक्रियता की कुल अवधि 9 महीने तक होती है। अक्सर 2 से 7 साल के अंतराल में इसके सक्रिय होने का ट्रेंड देखा गया है। बीते दो दशकों के दौरान 1991, 1994, 1997 के वर्षों में व्यापक तौर पर अल-नीनो का प्रभाव दर्ज किया गया जिसमें वर्ष 1997-98 में इस घटना का प्रभाव सबसे ज़्यादा रहा।
ला-नीना भी मानसून का रुख तय करने वाली सामुद्रिक घटना है। यह घटना सामान्यतः अल-नीनो के बाद होती है। अल-नीनो में समुद्री सतह गर्म होती है वहीं ला-नीना में समुद्री सतह का तापमान बहुत कम हो जाता है। यूं तो सामान्य प्रक्रिया के तहत पेरु तट की समुद्री सतह ठंडी होती है लेकिन यही घटना जब काफी देर तक रहती है तो तापमान में असामान्य रूप से गिरावट आ जाती है। इस घटना को ला-नीना कहा जाता है। ला-नीना के समय पश्चिमी प्रशांत महासागर में अत्यधिक बारिश होने से पानी का स्तर बढ़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ पूर्वी प्रशांत महासागर में वर्षा बहुत कम होती है।
अल-नीनो की तुलना में, जो कि विषुवतीय प्रशांत में गर्म समुद्री तापमान से युक्त होता है, यह विषुवतीय प्रशांत में ठंडे समुद्री तापमान की विशेषता से युक्त होता है। सामान्यतः ला-नीना अल-नीनो की तुलना में आधी होती है। विश्व के मौसम एवं समुद्री तापमान पर ला नीनो का प्रभाव अल-नीनो के विपरीत होता है। ला-नीना वर्ष के दौरान यू.एस. में दक्षिण-पूर्व में शीतकालीन तापमान सामान्य से कम होता है एवं उत्तर-पश्चिम में सामान्य से ठंडा होता है। दक्षिण-पूर्व में तापमान सामान्य से ज्यादा गर्म एवं उत्तर-पश्चिम में सामान्य से अधिक ठंडा होता है।
पश्चिमी तट पर हिमपात एवं वर्षा तथा अलास्का में असामान्य रूप से ठंडे मौसम का अनुभव किया जाता है। इस अवधि के दौरान यहाँ पर, अटलांटिक में सामान्य से अधिक संख्या में तूफान आते हैं।
अल-नीनो एवं ला-नीना पृथ्वी की सर्वाधिक शक्तिशाली घटनाएँ हैं जो पूरे ग्रह के आधे से अधिक भाग के मौसम को परिवर्तित करती हैं।