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प्रश्न :
भारत में बंधुआ मजदूरी प्रथा के उन्मूलन के लंबे समय पश्चात् भी यह प्रथा विद्यमान है। वे कौन-से कारण हैं जिन्होंने बंधुआ मजदूरी प्रथा को अभी भी जीवित रखा है? (150 शब्द)
20 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में बंधुआ मज़दूरी की पृष्ठभूमि को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में बंधुआ मज़दूरी की निरंतरता के कारणों पर प्रकाश डालिये।
- बंधुआ मज़दूरी को समाप्त करने की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
बंधुआ मज़दूरी (उन्मूलन) अधिनियम 1976 बंधुआ मज़दूरी को किसी मज़दूर से अत्यधिक कार्य करवाने के बावजूद उसे मज़दूरी न देना या नाममात्र मज़दूरी देना तथा जीवन भर मज़दूर बनाकर शोषण करने के रूप में परिभाषित करता है। भारत में बंधुआ मज़दूरी की जड़ें अत्यधिक गहरी हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत में बंधुआ मज़दूर अधिकतर निचली जातियों, अल्पसंख्यक तथा प्रवासी मज़दूर होते थे, जिन्हें बंधुआ मज़दूरी के साथ-साथ सामाजिक भेदभाव एवं अस्पृश्यता की दोहरी मार झेलनी पड़ती थी।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने बंधुआ मज़दूरी के पूर्ण उन्मूलन के लिये त्रि-स्तरीय रणनीति अपनाई है-
- पहले स्तर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-23 के तहत बंधुआ मज़दूरी पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- दूसरे स्तर पर केंद्र सरकार ने बंधुआ मज़दूरों की पहचान, पुनर्वास तथा इस कुप्रथा के पूर्ण उन्मूलन पर रोक लगाने हेतु बंधुआ मज़दूरी (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 लागू किया है।
- तीसरे स्तर पर बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिये वर्ष 1978 में एक केंद्र प्रायोजित योजना लागू की गई है।
इन उपायों के बावजूद भारत में इस कुप्रथा का पूर्ण उन्मूलन नहीं हो पाया है, जिसके वर्तमान में भी कई उदाहरण सामने आते रहते हैं। इस कुप्रथा की निरंतरता के पीछे कई आर्थिक-सामाजिक एवं धार्मिक कारण मौजूद हैं, जिन्हें निम्नवत् देखा जा सकता है-
- अत्यधिक गरीबी, बेरोज़गारी एवं आजीविका के साधनों का अभाव।
- परिवार का पालन-पोषण करने के लिये कृषि जोत का अत्यधिक छोटा आकार।
- ग्रामीण एवं शहरी निर्धनों के लिये वैकल्पिक लघु-स्तरीय ऋणों की कमी, जिससे वे साहूकारों, ज़मींदारों एवं सामंतों के ऋणजाल में फँसकर बंधुआ मज़दूरी करने हेतु मजबूर हैं।
- प्राकृतिक आपदाओं (जैसे- बाढ़, सूखा आदि) के कारण कृषि उत्पादन का कम होना।
- धर्म, नृजातीयता एवं जाति के आधार पर प्रभावशाली वर्गों द्वारा किया जाने वाला शोषण।
- श्रमिकों में अशिक्षा तथा कानूनी प्रावधानों की जानकारी का अभाव।
- स्थानीय वित्त एवं श्रम बाज़ारों पर साहूकारों तथा सामंतों का एकाधिकार।
- श्रमिकों का आपस में संगठित न होना, जिससे वे नियोक्ता से सौदेबाजी नहीं कर पाते।
उपर्युक्त कारणों के परिणामस्वरूप यह कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिये कानूनी प्रावधान नाकाफी प्रतीत हो रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकारों, स्थानीय सरकारों एवं समुदायों को आपस में संगठित कर, इस कुप्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। साथ में लोगों में समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति संवेदनशीलता की भावना उत्पन्न करने एवं जनजागरूकता फैलाने का प्रयास कर इस कुप्रथा का उन्मूलन किया जा सकता है।
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