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प्रश्न :
भारत में सिविल सेवकों के लिये नैतिक संहिता की आवश्यकता का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
16 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- नैतिक संहिता को परिभाषित कीजिये।
- इसके लाभों तथा इसे वैधता प्रदान करने के मार्ग में विद्यमान चुनौतियों को भी बताइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
नैतिक संहिता किसी संगठन द्वारा जारी किये गए दिशा-निर्देशों का एक समूह है जो कि संगठन के प्राथमिक मूल्यों तथा उनके आचरण को नैतिक मानकों के अनुरूप संचालित करने हेतु निर्देशित करती है। इसमें सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, समर्पण, जवाबदेहिता, लोक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता तथा समानुभूति जैसे मूल्यों को शामिल किया जाता है। आमतौर पर यह अत्यधिक व्यापक एवं गैर-विशिष्ट प्रकृति की होती है जो कि कर्मचारियों को निर्णयन प्रक्रिया में सबसे उपयुक्त कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है।
लोक सेवक जनता को सेवाएँ देने हेतु उत्तरदायी होते हैं तथा ये आधिकारिक तौर पर सरकारी संसाधनों का प्रबंधन करते हैं जो कि जनता को सीधे प्रभावित करता है तथा जनता सरकार पर सीधे निर्भर रहती है जिसके लिये वह लोक सेवकों से उच्च स्तरीय नैतिक आचरणों की अपेक्षा रखती है।
नैतिक संहिता के लाभ
- नैतिक संहिता लोक सेवकों के कार्यों की प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करके व्यक्तिगत एवं सांगठनिक सत्यनिष्ठा को बनाए रखने में सहायता करती है।
- नैतिक संहिता लोक सेवकों को एक आधारभूत ढाँचा उपलब्ध कराती है जो कि राजनीतिक व जनसेवा के प्रति इनकी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने में सहायता करती है।
- यह अस्पष्ट एवं अस्वीकार्य व्यवहारों को स्पष्ट करती है तथा सरकारी अधिकारियों को लोक सेवा के प्रति एक विज़न प्रदान करती है।
वस्तुत: नैतिक संहिता एक अमूर्त व विस्तृत परिकल्पना है जिसका पोषण दशकों में न होकर कई पीढ़ियों में होता है। यह मानव जीवन के सभी पहलुओं को शामिल करती है किंतु इसका पालन तुलनात्मक रूप से अधिक कठिन कार्य है। हालाँकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि नैतिक संहिता की कठोर प्रकृति के कारण इसका पालन करने से लोक अधिकारी बचते हैं।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि नैतिक संहिता को लोचशील एवं व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है जो लोक सेवकों को ज़िम्मेदारी का एहसास कराने के साथ-साथ इसके पालन को बिना किसी अतिरिक्त दबाव सृजित किये सुनिश्चित करे तथा जनता तक सेवाएँ की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। गौरतलब है कि भारत जैसे लोकतंत्र में जहाँ लोक सेवाएँ प्रशासन की मेरुरज्जु हैं वहाँ कानूनों, नियमों व विनियमों के साथ-साथ नैतिक संहिता को भी अपनाए जाने की आवश्यकता है ताकि विधि तथा न्याय का प्रशासन स्थापित किया जा सके।
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