भारत में भूमि सुधारों की दिशा में किये गए प्रयास अत्यधिक धीमे रहे हैं। भारत में भूमि सुधारों की मंद प्रगति के कारणों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
15 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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भारत की स्वतंत्रता के समय भूमि का वितरण अत्यधिक असमान एवं विकृत था। भूमि का स्वामित्व कुछ ही लोगों के पास था जिसमें ग्रामीण भारत का सामाजिक-आर्थिक विकास बाधित रहा तथा किसानों का शोषण बढ़ा। स्वतंत्रता के पश्चात् भू-स्वामित्व में सुधार, भूमि के समवितरण, मध्यस्थों का उन्मूलन, काश्तकारी सुधार, चकबंदी, प्रति परिवार भूमि की सीमा का निर्धारण तथा अधिशेष भूमि को भूमिहीनों के बीच वितरित करने के उद्देश्य से भारत में भूमि सुधार कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
भारत में भूमि सुधार के प्रमुख घटक इस प्रकार हैं-
वस्तुत: भूमि सुधारों के उद्देश्य अत्यधिक प्रगतिशील होने के बावजूद इन सुधारों की गति अत्यधिक धीमी व मंथर है जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
वर्तमान समय में भारतीय कृषि अपने परंपरागत अर्द्ध-सामंती चरित्र तथा उभरते आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों के बीच संक्रमण की अवस्था में है। ऐसे बदलते परिदृश्य में भूमि सुधारों के महत्त्व को समझना चाहिये जिसके लिये राजनीतिक-प्रशासनिक प्रतिबद्धता का होना अति आवश्यक है जिसके लिये पुराने भू-स्वामित्व संबंधी कानूनों में व्यावहारिक बदलाव लाए जाने की ज़रूरत है। इसके लिये, भूस्वामी-पट्टाधारकों के अवैधानिक साँठ-गाँठ को तोड़ते हुए कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन कर, कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, अधिशेष भूमि का समवितरण सुनिश्चित कर, भूधारिता तथा भूमि रिकॉर्ड को अद्यतित तथा डिजिटलाइज़्ड किये जाने की आवश्यकता है।
उपर्युक्त प्रक्रियाओं के माध्यम से भारत में भूमि सुधारों को उचित गति प्रदान की जा सकती है जिससे भूमि का समवितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा तथा कृषि की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकियों का प्रयोग कर उत्पादन में वृद्धि की जा सकेगी।