भारत में काफी समय से लंबित श्रम सुधारों के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं? साथ ही श्रम सुधारों को अवरुद्ध करने वाली प्रमुख बाधाओं को भी रेखांकित कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में श्रम सुधारों की आवश्यकता की पृष्ठभूमि के साथ भूमिका लिखिये।
- इन सुधारों के व्रियान्वयन के मार्ग में उपस्थित प्रमुख बाधाओं की चर्चा कीजिये।
- रोज़गार सृजन एवं आर्थिक विकास में श्रम सुधारों के महत्त्व को बताइये।
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भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ उद्योगों का तीव्रता से विकास हो रहा है, वहाँ श्रमिकों की आवश्यकता भी तीव्रता से बढ़ रही है। ऐसे में उचित श्रम कानूनों के न होने से नियोक्ताओं द्वारा इनके मूल अधिकारों तथा मानवाधिकार का हनन किया जाता है। ऐसे में एक श्रम संहिता का होना अति आवश्यक है, जो एक तरफ श्रमिकों को शोषण से मुक्त कराएगा, वहीं दूसरी तरफ भारत में औपनिवेशिक काल के जटिल श्रम कानूनों से मुक्ति दिलाएगा।
भारत में लंबित श्रम सुधारों के उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
- श्रम कानूनों में सुधारों के माध्यम से औद्योगिक संबंधों को सरल बनाने, अर्थव्यवस्था में उत्पादकता सुधारने, उचित मज़दूरी, काम करने की मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित कराने तथा सामाजिक सुरक्षा को बेहतर बनाने जैसे महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं, जो अंतत: श्रम बलों की औपचारिकता को प्रोत्साहित करेगा।
- केंद्रीय श्रम कानूनों के संहिताबद्धीकरण के माध्यम से इनकी जटिलता को कम किया जाना।
- श्रम सुधारों के माध्यम से देश के संपूर्ण श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना। महिलाओं के लिये रात्रि में कार्य करने की अनुमति तथा शिशु गृहों की स्थापना आदि के प्रावधान के माध्यम से इनकी भागीदारी को बढ़ावा देना।
- श्रमिकों हेतु न्यूनतम मज़दूरी, बीमा एवं अन्य सामाजिक सुरक्षाओं को सुनिश्चित करना।
- कानूनों के सरलीकरण एवं उचित व्रियान्वयन के माध्यम से ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की तरफ बढ़ना।
श्रम सुधारों के मार्ग में प्रमुख बाधाएँ
- भारत में अधिकतर श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिनका सही आँकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है, जो कि श्रमिकों के कल्याण के मार्ग में मुख्य बाधा है।
- असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाला अधिकतर श्रम बल सरकारी कानूनों एवं सामाजिक सुरक्षा कार्यव्रमों से आच्छादित नहीं है। भारत में अत्यधिक श्रम कानूनों की उपस्थिति श्रम बाज़ार की प्रकृति को जटिल बनाते हैं, जो इनके अनुपालन के मार्ग में प्रमुख बाधा है।
- अधिकतर श्रमिकों का अकुशल होना भी एक बाधा है। भारत कौशल रिपोर्ट, 2018 के अनुसार उच्च शिक्षा प्राप्त श्रमिकों का केवल 47% ही उच्च कौशल प्राप्त है।
- अधिकतर श्रमिकों का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना तथा श्रम की निम्नस्तरीय स्थिति भी एक बाधा है।
वस्तुत: यह बात सत्य है कि भारत में श्रम सुधारों की प्रगति अत्यंत ही धीमी है, किंतु यदि इन सुधारों को एक बार पूर्णत: व्रियान्वित किया जाता है तो निश्चित ही ये श्रमिक कल्याण ही नहीं बल्कि उद्योगों की उत्पादकता में वृद्धि हेतु भी उत्तरदायी होंगे, जो भारत में ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ की दिशा में अभूतपूर्व कदम साबित हो सकता है।