जनजातीय विद्रोह भले ही समय और स्थान में एक-दूसरे से भिन्न थे लेकिन इनमें कुछ सामान्य विशेषताएँ थीं। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- आदिवासी विद्रोहों के विस्तार और ब्रिटिश शासन के तहत ऐसे विद्रोहों के कारणों को लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- जनजातीय विद्रोह की सामान्य विशेषताओं की चर्चा कीजिये।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इन विद्रोहों के महत्त्व को लिखकर निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
ब्रिटिश शासन के समय जनजातीय आंदोलन सभी आंदोलनों में सबसे सतत, उग्रवादी और हिंसक थे।
जनजातीय आंदोलनों को महाद्वीपीय जनजातीय विद्रोहों और सीमांत जनजातीय विद्रोहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जो मुख्य रूप से भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में केंद्रित हैं।
प्रारूप
वे कारक जिन्होंने जनजातीय विद्रोहों में योगदान दिया:
- महाद्वीपीय जनजातीय विद्रोह: अंग्रेजों की बस्तियों ने आदिवासियों के बीच संयुक्त स्वामित्व परंपरा को प्रभावित किया और उनके सामाजिक ताने-बाने को बाधित किया
- चूँकि कंपनी सरकार द्वारा कृषि को एक व्यवस्थित रूप में विस्तारित किया गया था, इससे आदिवासियों ने अपनी भूमि खो दी थी और इन क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों की आवक बढ़ गई थी।
- वनों में स्थानांतरित खेती पर अंकुश लगाया गया और इससे आदिवासियों की समस्याएँ और बढ़ गईं।
- पुलिस, व्यापारियों और साहूकारों (उनमें से अधिकांश 'बाहरी') द्वारा शोषण ने आदिवासियों की पीड़ा को और बढ़ा दिया।
- इन क्षेत्रों में आने वाली ईसाई मिशनरियों और उनके प्रयासों ने आदिवासियों के पारंपरिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप किया।
- उदाहरण- चुआर विद्रोह, कोल विद्रोह, संथाल विद्रोह, भील विद्रोह आदि।
- सीमांत जनजातीय विद्रोह (भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में): इनके विद्रोह अक्सर भारतीय संघ के भीतर राजनीतिक स्वायत्तता या पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में थे।
- ये आंदोलन वन आधारित या कृषि विद्रोह नहीं थे क्योंकि ये आदिवासी आम तौर पर भूमि और वन क्षेत्र के नियंत्रण में थे।
- गैर-सीमांत जनजातीय आंदोलनों की तुलना में यह लंबे समय तक जारी रहे। असंस्कृतीकरण आंदोलन सीमावर्ती आदिवासियों के बीच भी विस्तृत हुआ।
- उदाहरण-खासी विद्रोह, अहोम विद्रोह, सिंगफोस विद्रोह, कुकी विद्रोह आदि।
जनजातीय विद्रोहों की विशेषताएँ
- इन समूहों द्वारा दिखाई गई एकजुटता के पीछे जनजातीय पहचान या जातीय संबंध हैं।
- सभी 'बाहरी लोगों' को दुश्मन के रूप में नहीं देखा गया था: गरीब जो अपने शारीरिक श्रम या पेशे से जीवनयापन करते थे और गाँव में सामाजिक/आर्थिक रूप से सहायक भूमिका निभाते थे, उन्हें इन विद्रोहों में लक्षित नहीं किया गया था; हिंसा को साहूकारों और व्यापारियों की ओर निर्देशित किया गया था जिन्हें औपनिवेशिक सरकार के विस्तार के प्रभाव के रूप में देखा जाता था।
- विदेशी सरकार के विरुद्ध: एक सामान्य कारण 'विदेशी सरकार' द्वारा कानूनों को लागू करने के विरुद्ध नाराजगी थी जिसे आदिवासियों के पारंपरिक सामाजिक आर्थिक ढाँचे को नष्ट करने के प्रयास के रूप में देखा गया था।
- कई विद्रोहों का नेतृत्त्व मसीहा जैसी शख्सियतों ने किया, जिन्होंने अपने लोगों को विद्रोह के लिये प्रोत्साहित किया और इस वादे को पूरा किया कि वे 'बाहरी लोगों' द्वारा लाए गए उनके कष्टों को समाप्त कर सकते हैं।
- तकनीकी रूप से पिछड़ा: आदिवासी विद्रोह शुरू से ही कमज़ोर हो गए थे, उन्होंने अपने विरोधियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले आधुनिक हथियारों और तकनीकों का मुकाबला अपने पुराने व पारंपरिक हथियारों से किया।
निष्कर्ष
यह स्पष्ट है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के दिनों में भी औपनिवेशिक शासन में कई विद्रोह और अशांति देखी गई। अंग्रेजों के विरुद्ध असंतुष्टि वर्ष 1857 के विद्रोह में अपने चरम पर पहुँच गईं। ऐसा माना जाता है कि जनजातीय विद्रोह भारतीयों के कुछ समूहों तक सीमित होने के बावजूद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत से पहले अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले प्रमुख विद्रोहों के ध्वजवाहक थे।